पंजाब में किसान आंदोलन पर कड़ा एक्शन, आप सरकार ने क्यों बदला रुख?

पंजाब में किसान आंदोलन पर कड़ा एक्शन, आप सरकार ने क्यों बदला रुख?

प्रेषित समय :20:02:06 PM / Thu, Mar 20th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अजय कुमार, लखनऊ
पंजाब में किसान आंदोलन को लेकर लगातार बदलते घटनाक्रम ने सियासी पारा चढ़ा दिया है. शंभू और खनौरी बॉर्डर पर हुई पुलिस की कार्रवाई और बुलडोजर एक्शन से किसान संगठनों में गहरा असंतोष फैल गया है. पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार, जो अब तक किसानों के समर्थन का दावा करती रही थी, अचानक ही उनके खिलाफ नजर आ रही है. इसका असर यह हुआ कि न केवल किसान, बल्कि विपक्षी दल भी भगवंत मान सरकार पर हमलावर हो गए हैं. बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर पंजाब सरकार ने अचानक किसानों के मामले में यू-टर्न क्यों लिया?

लंबे समय से अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को पंजाब पुलिस ने 19 मार्च को हिरासत में ले लिया. उनके साथ-साथ किसान मजदूर मोर्चा के प्रमुख सरवन सिंह पंढेर और आंदोलन में शामिल अन्य किसानों को भी मोहाली में हिरासत में लिया गया. ये सभी किसान नेता चंडीगढ़ में केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक करके लौट रहे थे, जब पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. इसके बाद पुलिस ने देर रात शंभू और खनौरी बॉर्डर को खाली करा दिया. आंदोलनरत किसानों के स्थायी और अस्थायी ढांचों को भी बुलडोजर से हटा दिया गया. पंजाब सरकार के इस कड़े रुख ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी शुरू से ही किसानों के समर्थन में खड़ी रही है.

भगवंत मान का बदला हुआ रुख हैरान करने वाला है. शुरुआत में पंजाब सरकार ने कोर्ट में किसानों के पक्ष में दलील दी थी कि अगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है, तो इससे देशभर में अशांति फैल सकती है. इसके बावजूद सरकार ने किसान नेताओं के साथ बातचीत जारी रखी, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका. सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर कमेटी भी बनाई, लेकिन फिर भी समाधान नहीं निकला. किसानों का विरोध लगातार जारी रहा, खासकर जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया था.

10 जुलाई 2024 को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि एक हफ्ते के भीतर शंभू बॉर्डर को खोला जाए. हालांकि, हरियाणा सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई थी, लेकिन अब पंजाब सरकार ने खुद ही बॉर्डर को खाली करा दिया है. यह फैसला इसलिए चौंकाने वाला है, क्योंकि 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने किसान आंदोलन का समर्थन किया था और उनके साथ खड़े रहने का वादा किया था. किसानों के समर्थन के चलते आम आदमी पार्टी को पंजाब में सत्ता भी मिली थी.

शुरुआती दौर में पंजाब सरकार किसान आंदोलनकारियों का समर्थन करती दिखी और केंद्र सरकार पर निशाना साधती रही, लेकिन अब उसी पंजाब सरकार ने किसानों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई कर दी है. पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने इस मामले पर कहा कि सरकार शंभू और खनौरी बॉर्डर को खोलना चाहती है, ताकि राज्य में सुचारू यातायात व्यवस्था बनी रहे. उनका यह भी कहना था कि किसानों को विरोध-प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाना चाहिए, क्योंकि उनकी मांगें केंद्र सरकार से जुड़ी हुई हैं.

किसानों का कहना है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान की किसानों से निजी खुन्नस हो सकती है, जिसकी वजह से यह कार्रवाई हुई है. मार्च की शुरुआत में पंजाब सरकार और किसान नेताओं के बीच एक बैठक हुई थी, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका. किसानों ने अपनी मांगों को लेकर चंडीगढ़ में प्रदर्शन करने का ऐलान किया था, लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसका विरोध किया. बैठक के दौरान किसानों और मुख्यमंत्री के बीच तीखी बहस हुई, जिसके बाद भगवंत मान ने गुस्से में बैठक छोड़ दी और कहा कि अब कुछ नहीं होगा. इसके तुरंत बाद पंजाब पुलिस ने किसानों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी.

इसके अगले ही दिन भगवंत मान ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने बैठक छोड़ी थी और सरकार किसानों को हिरासत में लेगी. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि किसानों को रेलवे ट्रैक और सड़कों पर धरना देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इसके बाद पुलिस ने कई किसान नेताओं को उनके गांवों में ही रोक लिया. बलबीर सिंह राजेवाल और जोगिंदर उगराहां समेत कई बड़े किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया गया. इसके बाद पंजाब पुलिस ने बॉर्डर पर भी कड़ा एक्शन लिया. इस पूरे घटनाक्रम से यह समझना मुश्किल हो रहा है कि क्या यह कार्रवाई केवल भगवंत मान की नाराजगी के कारण हुई या फिर इसके पीछे अरविंद केजरीवाल का भी कोई निर्देश था.

अगर पंजाब सरकार को यह पता था कि किसानों की मांगें केंद्र सरकार से जुड़ी हैं, तो यह कार्रवाई पहले ही क्यों नहीं हुई? अगर सरकार पहले ही कदम उठा लेती, तो यह विवाद इतना बड़ा नहीं बनता. इससे आम आदमी पार्टी और भगवंत मान विपक्षी दलों के निशाने पर आने से बच सकते थे.

विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब सरकार इस पूरे मुद्दे पर केंद्र सरकार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रही है. पहले भी ऐसा देखा गया था, जब कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री थे. उस समय उन्होंने किसानों को दिल्ली बॉर्डर पर भेज दिया था और केंद्र सरकार को ही इसका समाधान निकालने के लिए मजबूर कर दिया था. तब केंद्र सरकार को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था और अंततः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े थे. लेकिन इस बार मामला उल्टा नजर आ रहा है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भगवंत मान और उनकी सरकार खुद ही इस विवाद को अपने सिर ले रही है.

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी हो रही है कि किसानों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की एक वजह लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट पर संभावित उपचुनाव भी हो सकता है. खबरों के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल को लुधियाना के व्यापारियों से यह फीडबैक मिला था कि अगर किसानों का प्रदर्शन जारी रहा, तो वे आम आदमी पार्टी को वोट नहीं देंगे. इससे व्यापारियों का कारोबार प्रभावित हो रहा था. इसी कारण पंजाब सरकार ने बॉर्डर खाली कराने का फैसला लिया. हालांकि, यह उपचुनाव अभी कब होगा, इसका भी कोई ठोस संकेत नहीं मिला है.

ऐसी भी संभावना थी कि बिहार विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लुधियाना वेस्ट सीट पर उपचुनाव हो सकता है. अगर ऐसा होता, तो आम आदमी पार्टी किसानों से बातचीत कर इस मामले का शांतिपूर्ण हल निकाल सकती थी. लेकिन सरकार ने जल्दबाजी में किसानों के खिलाफ कार्रवाई कर दी, जिससे मामला और बिगड़ गया.

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला सामने आया है. इसके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट में प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल की जमानत को चुनौती दी है. ऐसे में कुछ लोग मान रहे हैं कि इस मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए भी यह कार्रवाई हो सकती है.

पंजाब सरकार की इस कार्रवाई से आम आदमी पार्टी को राजनीतिक नुकसान हो सकता है. 2022 में किसानों के समर्थन के दम पर सत्ता में आई यह पार्टी अब उन्हीं किसानों के खिलाफ कड़े कदम उठा रही है. ऐसे में किसान संगठनों की नाराजगी भविष्य में आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, भगवंत मान सरकार ने इस मामले में जो जल्दबाजी दिखाई, वह नुकसानदायक साबित हो सकती है. अगर सरकार इस मसले को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आधार पर हल करने देती, तो पंजाब सरकार पर कोई दोष नहीं आता. लेकिन अब सरकार पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किसानों के खिलाफ इतना सख्त एक्शन क्यों लिया गया. पूरे घटनाक्रम को देखते हुए कहा जा सकता है कि मामला पूरी तरह से राजनीतिक है और इसके पीछे कोई न कोई रणनीति जरूर है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-