नजरिया. राजनेताओें के लिए पिछड़ेे, दलित, किसान, महिलाएं आदि सत्ता की सुरक्षा दीवारें हैं, यही वजह है कि सियासी संकट आने पर अपने बचाव केे लिए ये उन्हें राजनीतिक ढाल की तरह आगे कर देते हैं?
संसद का मॉनसून सत्र सोमवार से शुरू हो चुका है और खबर है कि सत्र के पहले दिन लोकसभा में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में नवनियुक्त मंत्रियों का परिचय कराया, लेकिन इस दौरान विपक्ष ने सदन में हंगामा शुरू कर दिया.
इस हंगामे के बीच प्रधानमंत्री ने नवनियुक्त मंत्रियों का परिचय कराते हुए कहा कि नए मंत्रियों का परिचय करने का आनंद होता, लेकिन शायद देश के दलित, महिला, ओबीसी, किसान परिवार के लोग मंत्री बनें ये बात कुछ लोगों को रास नहीं आ रही है.
सियासी सयानों का कहना है कि सत्ता में बैठे नेताओं का दलित प्रेम, महिला सम्मान, किसानों की कद्र केवल दिखावे के लिए होती है, यदि ऐसा नहीं है, तो मोदी ऐलान कर दें कि अगला पीएम दलित होगा? आधी आबादी को पूरा हक देते हुए महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण मिलेगा? किसानों की मांगे मान ली जाएंगी?
सियासी सच्चाई तो यही है कि अगले वर्ष यूपी सहित अनेक राज्यों के चुनाव हैं, यदि इन राज्यों के पिछड़े-दलितों-किसानों-महिलाओं के वोट नहीं मिले तो बीजेपी की सत्ता में वापसी मुश्किल हो जाएगी, इसीलिए इन्हें मंत्री बनाया गया है.
लेकिन! सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इनमें से कितनों को महत्वपूर्ण मंत्रालयों का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए तारीखों का ऐलान, यहां जानें पूरी डिटेल्स
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