प्रदीप द्विवेदी. जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, केवल कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही उन्हें लगातार एक्सपोज करते रहे हैं और अब वे इसमें काफी हद तक सफल भी हो गए हैं.
इसी का नतीजा है कि कांग्रेस के अप्रत्यक्ष सहयोग और पश्चिम बंगाल में सीएम ममता बनर्जी की आक्रामक सक्रियता के नतीजे में मोदी टीम को विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है और मोदी की इमेज को तगड़ा झटका लगा है.
पहले नरेंद्र मोदी लगातार बंगाल जा-जा कर दीदी-ओ-दीदी पर सियासी हमले करते रहे, लेकिन अब ममता बनर्जी तो सीएम बन गई हैं, लिहाजा पांच साल बाद उनका नंबर आएगा, लेकिन अब तो मोदी को 2024 में अपनी कुर्सी बचानी है और ममता बनर्जी ने दिल्ली आ कर उनकी सियासी घेराबंदी शुरू कर दी है.
हालांकि, यह भी संभव है कि 2024 में बीजेपी का पीएम फेस नरेंद्र मोदी नहीं, कोई और हो?
ममता बनर्जी ने विपक्ष को एकजुट करने की गरज से दिल्ली में खेला होबे तो शुरू कर दिया है, परन्तु बड़ा सवाल यह है कि यदि संयुक्त विपक्ष कामयाब होता है, तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
अगर सियासी समीकरण पर नजर डालें तो यह साफ है कि कांग्रेस के अलावा कोई भी राजनीतिक दल एक सौ से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने की हालत में नहीं है, मतलब- कमजोर होने के बावजूद पॉलिटिकल कैप्टेन तो कांग्रेस से ही बन सकता है.
हालांकि, राहुल गांधी के नाम पर बीजेपी ने लंबे समय से बड़ी चतुराई से योग्यता का सवालिया निशान लगा रखा है, किन्तु बगैर आजमाए किसी को अयोग्य कैसे करार दिया जा सकता है?
बगैर परीक्षा के किसी को फेल कैसे घोषित किया जा सकता है? बड़ा सवाल तो यह भी है कि केवल योग्यता ही पैमाना है, तो मोदी के बजाय नीतीश कुमार को पीएम बनने का अवसर क्यों नहीं दिया गया, जो अपने भाषणों में मोदी के सामान्य ज्ञान के आधार पर उन्हें बहुत पहले ही पप्पू साबित कर चुके हैं?
खबरें हैं कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं, क्यों?
इसके दो कारण हैं, एक- केवल कांग्रेस और बीजेपी, दो ही ऐसे दल हैं जो लोकसभा में बहुमत हांसिल कर सकते हैं और जिनका पूरे देश में आधार है, अर्थात- यदि प्रशांत किशोर को देश में राजनीति करनी है, तो उन्हें कांग्रेस या बीजेपी के साथ जाना होगा!
और, दो- प्रशांत किशोर को 2024 में कांग्रेस का भविष्य उज्जवल नजर आ रहा है?
खबरों पर भरोसा करें तो प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. राहुल गांधी ने इस संबंध में पार्टी के नेताओं से राय भी मांगी है.
सियासी सयानों का मानना है कि यदि ममता बनर्जी पीएम की कुर्सी को नजरअंदाज करके केवल विपक्षी एकता पर फोकस होंगी, तो ही उन्हें इस सियासी अभियान में कामयाबी मिलेगी,
वरना तो विपक्षी एकता को तोड़ने के लिए मोदी टीम को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी!
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