नई दिल्ली. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की खंडपीठ ने तेलंगाना के साथ कृष्णा नदी के पानी को साझा करने पर आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई से सोमवार को खुद को अलग कर लिया. उन्होंने इसके कारण भी बताए हैं.
चीफ जस्टिस रमना की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा कि वह मामले में शामिल कानूनी मुद्दों पर फैसला नहीं कर सकता, क्योंकि यह दोनों राज्यों (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) से संबंधित है. मामले को 4 अगस्त को सुनवाई के लिए दूसरी पीठ के लिए दे दिया गया. चीफ जस्टिस ने कहा कि वह दोनों राज्यों से ताल्लुक रखते हैं और वह इस मामले में शामिल कानूनी मुद्दों पर फैसला नहीं करना चाहते हैं.
सीजेआई ने आंध्र प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से कहा, ''यदि पक्ष मध्यस्थता के माध्यम से मामले को सुलझा सकते हैं, तो कृपया ऐसा करें. अन्यथा, हमें इस मामले को दूसरी पीठ को भेजना होगा." दवे ने नॉर्थ ईस्ट में हालिया समस्या और अन्य घटनाओं का हवाला देते हुए मामले में निर्देश लेने के लिए और समय मांगा.
आंध्र प्रदेश सरकार ने 14 जुलाई को तेलंगाना और उसके अधिकारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके लोगों को पीने, सिंचाई के पानी के "वैध हिस्से" से वंचित किया गया है.
आंध्र प्रदेश अपने नागरिकों के जीवन के अधिकार, पीने, सिंचाई, पानी सहित अपने लोगों के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. आंध्र प्रदेश ने आरोप लगाया है कि तेलंगाना और उसके अधिकारियों की ओर से असंवैधानिक, अवैध और अन्यायपूर्ण कृत्यों के कारण लोगों के अधिकार गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं.
याचिका की प्रति में आगे लिखा गया है कि तेलंगाना सरकार के कुछ अधिकारियों के अवैध कृत्यों के परिणामस्वरूप आंध्र प्रदेश के लोगों को पीने और सिंचाई के लिए पानी के वैध हिस्से से वंचित होना पड़ा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-तेलंगाना: वोटर्स को रिश्वत देने का मामला, टीआरएस सांसद मलोथ कविता को 6 महीने की जेल
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