नजरिया. बिहार के सीएम नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का साथ-साथ दिल्ली आना और इस तरह मुस्कुराना, कइयों के सियासी तनाव का कारण बन गया है?
दरअसल, सियासी मजबूरी में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हैं, वरना तो राजनीतिक विचारधारा के नजरिए से तो यह तेल-पानी संगम है, कभी-न-कभी फिर जुदा होना ही है!
खबर है कि बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनी जाति आधारित जनगणना को लेकर बिहार के दस राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी, जिसके बाद सीएम नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने संयुक्त-स्वर में कहा कि- प्रधानमंत्री मोदी ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गौर से सुना है, अब उन्हें इस पर फैसला लेना चाहिए, उन्हें पीएम मोदी के निर्णय का इंतजार है?
यही नहीं, तेजस्वी यादव का तो यह भी कहना था कि राष्ट्रीय हित और विकास के मुद्दों पर विपक्ष हमेशा सरकार का साथ देने को तैयार रहता है!
साफ है, सीएम नीतीश की बीजेपी से विविध मुद्दों पर दूरी और तेजस्वी से नजदीकी, सियासी समीकरण के बदलने का संकेत दे रही है?
बीजेपी की परेशानी यह है कि बिहार में उसकी ताकत तो बढ़ी है, लेकिन उतनी नहीं कि अपने अकेले दम पर सत्ता हांसिल कर ले और बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी के अलावा कोई ऐसी पार्टी नहीं है जिसे बीजेपी साथ ले सके, मतलब.... नीतीश कुमार ने सियासी पाला बदला तो बिहार की सत्ता बीजेपी के हाथ में नहीं रहेगी!
तेजस्वी यादव यह तो जान ही गए हैं कि वे बीजेपी से आगे निकल सकते है, बिहार की सत्ता भी हांसिल कर सकते हैं, लेकिन उसके लिए नीतीश कुमार का साथ जरूरी है?
इधर, नीतीश कुमार को भी सियासी अहसास है कि यदि बीजेपी का हाथ छोड़ते हैं, तो तेजस्वी का साथ जरूरी है, ऐसे में.... जातीय जनगणना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करवाने के प्रस्ताव का पूरा क्रेडिट नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को दिया, तो सबका चौंकना स्वाभाविक है?
खबरों पर भरोसा करें तो सीएम नीतीश ने कहा कि- नेता प्रतिपक्ष के प्रस्ताव पर ही प्रधानमंत्री मोदी से जातीय जनगणना के मुद्दे पर बात हो सकी है!
सियासी सयानों का मानना है कि बिहार की राजनीति जेडीयू, आरजेडी और बीजेपी के त्रिकोण में उलझी है और सत्ता में बने रहने के लिए किन्हीं दो दलों का साथ रहना जरूरी है, क्योंकि बीजेपी-आरजेडी साथ आ नहीं सकते, लिहाजा बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की जरूरत हमेशा रहेगी!
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