रूढ़ियों और बेड़ियों को तोड़ने वाली बहन सत्यवती, दिल्ली की पहली महिला सत्याग्रही

रूढ़ियों और बेड़ियों को तोड़ने वाली बहन सत्यवती, दिल्ली की पहली महिला सत्याग्रही

प्रेषित समय :10:39:56 AM / Sat, Aug 28th, 2021

बहन सत्यवती को दिल्ली की पहली महिला सत्याग्रही भी कहा जाता है. आर्य समाज से जुड़े स्वामी श्रद्धानंद की पोती सत्यवती देवी का जन्म 26 जनवरी 1906 में पंजाब के जालंधर में हुआ था. इनकी मां महात्मा गांधी का अनुसरण करती थीं एवं अहिंसा की पुजारी थीं. सत्यवती का विवाह वर्ष 1922 में हुआ और वह दिल्ली आ गईं. उनके पति वीरभद्र दिल्ली कपड़ा मिल में अधिकारी थे.

दिल्ली आने पर सत्यवती पहले पहल कपड़ा मिल के मजदूरों की समस्या से वाकिफ हुईं और उनकी जिंदगी को नजदीक से जाना. धीरे-धीरे सामाजिक आंदोलनों की पृष्ठभूमि तैयार हुई. कांग्रेस में रहकर कांग्रेस महिला समाज और कांग्रेस सेवा दल जैसे संगठन खड़े किए. बाद में वह कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की संस्थापक सदस्य भी बनीं और उन्होंने दिल्ली के कपड़ा मिलों के श्रमिकों को विशेषकर महिला श्रमिकों को राजनीतिक रूप से जागरूक करने का काम किया. उनके भाषणों को सुनकर हिंदू कालेज और इंद्रप्रस्थ कालेज की छात्राएं और अन्य महिलाएं भी स्वतंत्रता आंदोलन में शरीक होने के लिए प्रेरित हुईं. स्वतंत्रता आंदोलन में फिर चाहे वह नमक सत्याग्रह हो या सविनय अवज्ञा आंदोलन, दिल्ली में उसके समर्थन में प्रतिरोध की जमीन आम महिलाओं के साथ मिलकर सत्यवती ने ही तैयार की. इस संदर्भ में दिल्ली अभिलेखागार विभाग के निदेशक संजय गर्ग कहते हैं कि सविनय अवज्ञा आंदोलन छह अप्रैल 1930 में शुरू हुआ. महात्मा गांधी जी ने दांडी से आंदोलन का सूत्रपात किया. आंदोलन के लक्ष्यों में नमक कानून का उल्लंघन कर स्वयं नमक का निर्माण करना, महिलाओं द्वारा शराब, अफीम और विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना देने एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आदि शामिल था. दिल्ली में बहन सत्यवती ने आंदोलन को धार देने का काम किया. वह न दिन देखतीं न रात. घर-घर जाकर महिलाओं से मिलतीं और उन्हेंं आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करतीं. इसका असर यह हुआ कि महिलाएं पहली बार आंदोलन में बड़ी संख्या में शामिल हुईं.

सत्यवती ने महिलाओं के साथ मिलकर शाहदरा में नमक बनाया और करीब 10 दिन तक नमक के पैकेट लोगों में बांटे गए. पुलिस ने इन्हेंं पकड़कर दो साल के लिए जेल भेज दिया. वर्ष 1931 में जब गांधी-इरविन समझौता हुआ तो बहन सत्यवती को जेल से रिहा किया गया, लेकिन आंदोलन के दौरान बहन सत्यवती के नेतृत्व में पहली बार जिस तरह हजारों की तादाद में महिलाएं शराब की दुकानों के बाहर विरोध करने आईं और नमक कानून तोड़ा वो दिल्ली के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था. बहन सत्यवती से प्रभावित होकर हिंदू और इंद्रप्रस्थ कालेज की छात्रों ने अनोखी पहल की. छात्राओं ने बस्तियों में जाकर शादीशुदा महिलाओं की भी टीम बनाई ताकि वे अन्य महिलाओं को भी आंदोलन के लिए प्रेरित कर सकें.

महिलाओं को सक्रिय किया: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ग्रंथमाला-10 में लेखक फूलचंद जैन ने बृजकृष्ण चांदीवाला का एक साक्षात्कार प्रकाशित किया था. इसमें चांदीवाला कहते हैं कि वर्ष 1920 के दौरान हुए आंदोलनों के दौरान महिलाओं की भागीदारी कम थी. कारण, महिलाएं पर्दा अधिक करती थीं, लेकिन वर्ष 1930 में बहन सत्यवती ने घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक किया. इसका बहुत सकारात्मक असर हुआ. महिलाएं सक्रिय रूप से आंदोलनों में भाग लेने लगीं. इनमें शादी शुदा महिलाएं भी शामिल थीं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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