पलपल संवाददाता, जबलपुर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण पर स्टे बरकरार रखा है, अब अगली सुनवाई 20 सितम्बर को होगी, राज्य सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा स्थगन आदेश हटाने या अंतरिम आदेश देने की मांग को चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक ने खारिज कर दिया, उन्होने कहा कि ढाई साल से केस चल रहा है अब मामला आखिरी दौर में है, इतना आगे बढऩे के बाद कोर्ट स्टे हटाने या अंतरिम आदेश जारी नहीं करगी, पूरी सुनवाई के बाद ही अंतिम फैसला सुनाएगी.
आज हाईकोर्ट में शुरु हुई फाइनल हियरिंग में राज्य सरकार ने सभी स्टे आर्डर हटाने का अंतरिम आवेदन लगाया था, जिसमे सरकार की ओर सालिसिटर जनरल तुषार मेहता व महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव ने पक्ष रखा, चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक की अध्यक्षता वाली डबल बेंच में मामले में लम्बी बहस चली. राज्य सरकार की ओर से कहा किया गया एमपी में 50 प्रतिशत से अधिक ओबीसी की आबादी है, इनके सामाजिक, आर्थिक व पिछड़ेपन को दूर करने के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण जरूरी है, ये भी हवाला दिया कि 1994 में इंदिरा साहनी केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने विशेष परिस्थितियों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने का प्रावधान रखा है.
एमपी हाईकोर्ट में सरकार के 27 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती देने वाली छात्रा असिता दुबे सहित अन्य की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने बहस का जवाब देते हुए कहा कि 5 मई 2021 को मराठा रिजर्वेशन को भी सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण होने के आधार पर ही खारिज किया है. इसी तरह की परिस्थितियां एमपी में भी है. यही जजमेंट सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में इंदिरा साहनी के मामले में भी दिया था. एमपी हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को मध्यप्रदेश में 14 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने पर रोक लगाई थी. इस मामले में ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से भी अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने पक्ष रखा. दोनों पक्षों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली डबल बेंच ने अगली सुनवाई 20 सितंबर तय करते हुए बढ़े हुए आरक्षण पर रोक बरकरार रखी है. हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद ही अंतिम फैसला सुनाया जाएगा. याचिकाकर्ता को बहस के लिए 45 मिनट और अन्य पक्ष को 15-15 मिनट का समय दिया जाएगा.
एमपी सरकार को महाधिवक्ता भी दे चुके है अभिमत-
पिछले दिनों महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने भी राज्य सरकार को अभिमत देते हुए कोर्ट में चल रहे 6 प्रकरणों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए स्वतंत्र बताया था. अन्य सभी नियुक्तियों, प्रवेश परीक्षाओं आदि में सरकार 27 प्रतिश आरक्षण लागू कर सकती है. हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई अंतिम दौर में पहुंच चुकी है. अब बहस के दौरान सभी आवेदकों का पक्ष सुना जा रहा है.
कांग्रेस इंद्रा जयसिंह व अभिषेक मनु सिंघवी से कराएगी पैरवी-
एमपी के जबलपुर में हाईकोर्ट की मुख्यपीठ में चल रहे 27 प्रतिशत आरक्षण के मामले में कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता इंद्रा जयसिंह व अभिषेक मनु सिंघवी से पैरवी कराने का फैसला किया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आज दिल्ली में दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं से मुलाकात की.
मामले को सबसे पहले कांग्रेस ने पकड़ा था-
वर्ष 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में जब कांग्रेस बनी, फिर सरकार ने 2019 में कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर राज्य में ओबीसी का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का फैसला किया था. बाद में राज्य विधानसभा ने इसे सर्वानुमति से मंजूरी भी दे दी थी. वह मामला आगे बढ़ता उससे पहले ही एमपी लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाले कुछ छात्रों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी और कोर्ट ने मामले पर स्टे दे दिया. तब से ही मामला न्यायालय में विचाराधीन है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जबलपुर में 18 माह बाद खुले स्कूल, कम रही बच्चों की संख्या..!
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