नजरिया. किसान आंदोलन शुरू होने के बाद से लगातार किसान, मोदी सरकार का विरोध कर रहे हैैं और शुरूआत में जो गैर-राजनीतिक आंदोलन था, मजबूरन उस पर राजनीतिक रंग चढ़ रहा है!
बड़ा सवाल यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
मोदी सरकार ने जिद करके, किसानों को लगातार नजरअंदाज करके, किसानों को बीजेपी विरोधी दलों की ओर धकेला है!
नतीजा यह है कि पंजाब में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 32 किसान संगठनों ने बैठक की, जिसमें बीजेपी को छोड़कर अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया गया था.
क्या बीजेपी के लिए यह विचारणीय नहीं है?
हो सकता है, पीएम मोदी कृषि कानूनों को लेकर जिद पर अड़े हों, लेकिन इसका लंबा नुकसान तो बीजेपी को ही होगा ना? क्योंकि- पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में बीजेपी की एंट्री बहुत देर से हुई थी, इतना ही नहीं, इन राज्यों में बीजेपी को सत्ता-सुख भी बाहरी समर्थन से मिलता रहा है. इसलिए यदि समय रहते हालात नियंत्रण में नहीं आए, तो बीजेपी को बहुत बड़ा राजनीतिक झटका लग सकता है.
सियासी सयानों का मानना है कि बीजेपी नेतृत्व को मोदी सरकार को जिद छोड़ने के लिए तैयार करना चाहिए, क्योंकि यह साफ है कि किसान तो आंदोलन खत्म करेंगे नहीं और आंदोलन चलता रहा, तो आनेवाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी का बड़ा नुकसान हो सकता है!
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