रांची. झारखंड हाईकोर्ट ने रिम्स में इलाज की लचर व्यवस्था व कोरोना संक्रमण को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की. चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सरकार से जानना चाहा कि ओमिक्रोन से बचाव के लिए क्या कदम उठाये जा रहे हैं. बचाव की क्या रणनीति है. तैयारियों को लेकर स्पष्ट जवाब नहीं मिलने पर खंडपीठ ने पूछा कि झारखंड में जिनोम सीक्वेंसिंग मशीन क्या तब आएगा, जब ओमिक्रोन हाहाकार मचा कर चला जायेगा?
कोर्ट ने कहा, कोरोना संक्रमित का सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए हेलीकॉप्टर से भुवनेश्वर भेजा जाता है. ऐसे में जांच रिपोर्ट आने में विलंब होती है. कोर्ट ने सरकार को पूर्व में भी जीनोम सीक्वेंसिंग रिम्स में लगाने का निर्देश दिया था. उसका क्या हुआ. राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता पीयूष चित्रेश ने पक्ष रखा. वहीं याचिका पर सुनवाई के दौरान रिम्स निदेशक के वर्चुअल उपस्थित नहीं रहने पर खंडपीठ ने नाराजगी जतायी.
खंडपीठ ने निदेशक को कड़ी हिदायत दी तथा 13 दिसंबर को दिन के 10.30 बजे सशरीर उपस्थित रहने का निर्देश दिया. इससे पूर्व शपथ पत्र दायर कर माफी मांगी गयी. उल्लेखनीय है कि रिम्स में इलाज की दयनीय स्थिति को गंभीरता से लेते हुए झारखंड हाइकोर्ट ने उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.
कोरोना वायरस के नये वेरिएंट की पहचान के लिए राज्य में इस समय मशीन नहीं है. मशीन की खरीदारी की प्रक्रिया चल रही है. प्रक्रिया में लगभग एक महीने का समय लग सकता है. स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने कहा कि जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन काफी महंगी है और सीमित कंपनियां इसे बनाती हैं. दो जीनोम मशीन की खरीदारी की प्रक्रिया चल रही है. हमारा प्रयास है कि एक महीने के अंदर इस मशीन को मंगा लिया जाये. एक मशीन रिम्स के लिए और दूसरी मशीन एमजीएम जमशेदपुर मेडिकल कॉलेज के लिए आनी है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-झारखंड में साइबर अपराधियों को पकड़ने गई पुलिस टीम पर हमला, 2 एसआई समेत 6 पुलिसकर्मी घायल
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