नई दिल्ली. म्यांमार के एक बौद्ध भिक्षु संकट में फंसे सांपों के लिए ‘पिता’ बन गए हैं. यह भिक्षु अपने मठ में कोबरा, अजगर और वाइपर जैसे सांपों को अपने घर में शरण दिए हुए हैं. इन सांपों का वह एक पिता की तरह से ध्यान रखते हैं.
सामान्य तौर पर जहरीले सांपों को देखकर लोग दूर भागते हैं लेकिन म्यांमार में एक ऐसे बौद्ध भिक्षु भी हैं जो न केवल इन सांपों की जान बचाकर उन्हें अपने घर में शरण देते हैं बल्कि उन्हें प्यार भी करते हैं. उनका ध्यान भी रखते हैं. इस बौद्ध भिक्षु का नाम है विलथा. बौद्ध भिक्षु ने अब तक सैकड़ों की संख्या में सांपों की जान बचाई है. बौद्ध भिक्षु अगर इन सांपों की जान न बचाते तो इन सांपों की या तो हत्या कर दी जाती या फिर उन्हें ब्लैक मार्केट में बेच दिया जाता. विलथा ने जिन सांपों की जान बचाई है, उसमें अजगर से लेकर कोबरा तक शामिल हैं.
वलिथा बोले, सांप मेरे लिए बच्चे की तरह से हैं
बौद्ध भिक्षु का यह सांपों का मठ सेईकता थूखा टेटो रंगून में स्थित है. करीब 5 साल पहले इसे सांपों का घर बनाए जाने के बाद बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और सरकारी एजेंसियां पकड़े हुए सांपों को बौद्धभिक्षु के पास लेकर आते हैं. विलथा ने कहा, ‘जब लोग सांपों को पकड़ते हैं तो वे संभवत: खरीददार तलाशने का प्रयास करेंगे.’ उन्होंने कहा कि ये सांप उनके ‘बच्चे’ की तरह से हैं. इसी वजह से बौद्ध भिक्षु इन खतरनाक सांपों की पूरी देखरेख करते हैं. वलिथा ने कहा कि बौद्ध बहुल म्यांमार में सांपों को बेचने या उनकी हत्या करने की बजाय लोग उन्हें भिक्षुक को दान करके इसे पुण्य मानते हैं.
चीन और थाइलैंड में होती है सांपों की तस्करी
विलथा ने कहा कि सांपों की जान बचाकर वह प्राकृतिक पारिस्थितिकीय चरण को बचाने में मदद कर रहे हैं. दक्षिणपूर्वी एशियाई देश म्यांमार वन्यजीवों के अवैध व्यापार का केंद्र बन गया है. वन्यजीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि म्यांमार से तस्करी करके सांप पड़ोस के देशों चीन और थाइलैंड ले जाए जाते हैं. दुनिया के कई देशों में बेहद हमलावर समझे जाने वाले बर्मा या म्यामांर के अजगर को ‘असुरक्षित’ घोषित किया गया है. वन्यजीवों के लिए काम करने वाले कल्यार प्लाट ने कहा, ‘आमतौर पर लोगों के आसपास ज्यादा समय तक रहने पर सांपों के अंदर तनाव पैदा हो जाता है.
बौद्ध मठ में दान से मिलता है सांपों को भोजन
कल्यार प्लाट ने कहा कि आज जरूरत है कि इन सांपों को जल्द से जल्द जंगल में छोड़ दिया जाए. वलिथा ने बताया कि उन्हें सांपों को खिलाने के लिए करीब 300 डॉलर दान मिल जाता है, इससे उनका काम चलता रहता है. उन्होंने कहा कि इन सांपों को उनके मठ में तभी तक रखा जाता है जब तक कि यह महसूस किया जाता है कि ऐसा करने की जरूरत है. ये सांप जब जंगल में जाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो उन्हें छोड़ दिया जाता है. हाल ही में एक सांप को हल्गवा नेशनल पार्क में छोड़े जाने पर उन्होंने खुशी जताई लेकिन साथ ही उन्हें यह भी डर सता रहा था कि कहीं उन्हें फिर से न पकड़ लिया जाए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एयरशेड स्तर के नियंत्रण से 2030 तक दिल्ली की सर्दियों में प्रदूषण 35% तक किया जासकता है कम: TERI
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