मुंबई. गुरुवार को महाराष्ट्र में बैलगाड़ी रेस के आयोजन पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए सशर्त मंजूरी दे दी है. यह मंजूरी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के अंतिम आदेश तक जारी रहेगी. पीठ इस सवाल पर विचार करेगी कि क्या तमिलनाडु राज्य का पशु क्रूरता निवारण के संशोधित अधिनियम इस अदालत के दो निर्णयों में बताए गए दोषों को दूर करता है या नहीं. महाराष्ट्र की याचिका में भी वैसे ही सवाल हैं, जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु की याचिका में उठाए गए थे. ऐसे में कोर्ट तीनों मामलों की सुनवाई एक साथ करेगी.
अदालत के इस फैसले के बाद पूरे राज्य में जश्न का माहौल है. लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकार अदालत के फैसले को सेलिब्रेट कर रहे हैं. कई जगहों पर पटाखे फोड़ और मिठाई खिला जश्न मनाया गया. तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पर लगी पाबंदी हटाने के लिए विधेयक लाया गया था, जिसके बाद महाराष्ट्र में भी इसी तरह का विधेयक लाई थी. हालांकि, इसमें एक बड़ी शर्त या रखी गई थी कि दौड़ में शामिल होने वाले बैल के साथ किसी प्रकार की क्रूरता होने पर तीन साल कैद या पांच लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान रखा गया था.
बुधवार को महाराष्ट्र बैलगाड़ी रेस मामले में न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार की पीठ में सुनवाई पूरी होने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था. दो जजों की खंडपीठ ने बैलगाड़ी रेस से जुड़ी सभी याचिकाओं में अंतरिम राहत की प्रार्थना को भी संविधान पीठ में स्थानांतरित कर दिया.
महाराष्ट्र सरकार ने पूर्ण प्रतिबंध हटाने की उठाई मांग
इससे पहले बुधवार को महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राज्य में बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया था. सरकार ने कहा था कि तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में इसका आयोजन किया जा रहा है. राज्य में 2017 के नियमों के अनुरूप बैलगाड़ी दौड़ आयोजित करने की अनुमति दी जानी चाहिए. महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन नियमों के क्रियान्वन पर रोक लगा दिया था, जिसके द्वारा राज्य सख्त नियमों के तहत बैलगाड़ी दौड़ आयोजित करना चाहता था. उन्होंने बेंच से कहा, प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए और हमें 2017 के नियमों के अनुरूप दौड़ संचालित करने की अनुमति दी जाए.
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जल्लीकट्टू, बैल-दौड़ और बैलगाड़ी दौड़ पर देशभर में प्रतिबंध लगा दिया था. उस दौरान अदालत ने कहा था कि पीसीए अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं. हालांकि, कर्नाटक और तमिलनाडु सरकार ने नियमित बैल दौड़ की अनुमति देने के लिए पीसीए अधिनियम में संशोधन किया था, जो अब भी चुनौती के अधीन हैं और 3 साल से अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य के संशोधनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका 2018 से सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष लंबित है. जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली सुको की बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र संशोधनों की वैधता भी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ संविधान पीठ द्वारा तय की जाएगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में भाजपा के चंद्रशेखर बावनकुले ने कांग्रेस के रवींद्र भोयर को हराया
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