कच्चे तेल की राजनीति से रूबरू कराता नीलाक्षी सिंह का उपन्यास- खेला

कच्चे तेल की राजनीति से रूबरू कराता नीलाक्षी सिंह का उपन्यास- खेला

प्रेषित समय :08:57:32 AM / Wed, Jan 5th, 2022

नीलाक्षी सिंह हिंदी कथाकारों में पहचाना हुआ नाम है. हिंदी कथा संसार में उनका अभ्युदय एक घटना सरीखा है. उनके लिखे हुए को पढ़ना हिंदी भाषा भाषियों के लिए संबल रहा है. उसी संबल की अगली कड़ी उनका उपन्यास ‘खेला’ है.

“खेला” उपन्यास साहित्य की दुनिया में एक दमदार उपस्थिति देता है. उपन्यास का विषय विश्व की कच्चे तेल की राजनीति है. कहानी की नायिका वरा कुलकर्णी के इर्दगिर्द उपन्यास की पूरी कहानी बुनी गई है. वरा कुलकर्णी का मुंबई में एक तिकोना ऑफिस है जहां तेल की खरीद-फरोख्त के नियम निर्धारित होते हैं. वरा कुलकर्णी विश्व बाजार में कच्चे तेल की उठापटक वाली दुनियां से रोज दोचार होती है.

उपन्यास के सभी पात्र आज के हैं जो वैश्विक अर्थव्यवस्था से आक्रांत हैं. ये सब शेयर बाजार के एक ऑफिस में काम करते हैं. सभी उपभोक्तावादी दौर के चंगुल में फंसे हुए नौजवान हैं, जहां एक अज्ञात दौड़ सबका पीछा कर रही है और मानवीय संवेदनाओं को रोज खरोंचे लगती हैं. पात्रों की मनःस्थितियां बिखरी-बिखरी सी हैं. विडम्बनाएं उनके साथ परछाई सी लगी हैं. उन्हीं के बीच उन्हें चलते चले जाना है रुकना नहीं है.

साथ ही चलती रहती हैं मध्यवर्गीय जीवन की भांति-भांति की उलझनें… पर वरा कहीं हताश नहीं होती वह पूरी चौकन्नी मध्यवर्गीय लड़की है. हर बात का कोई न कोई तोड़ निकाल लेती है. और न ही वह लड़की होने की कमजोरी से आहत है.

वरा कुलकर्णी जहां दफ्तर में काम करती है वहां शेयर बाजार की सूचनाएं हैं. साथ में छः तिलों वाली दिलशाद काम करती है और एक लड़का अफरोज़ भी. अमिय रस्तोगी और दीप्ति सकलानी भी काम करते हैं जिनसे दोस्ती और प्यार की हल्की आंच की गर्माहट मध्यमवर्गीय परिवेश में सजती संभलती दिखाई देती है.

वरा कुलकर्णी का अफ़रोज़ के प्रति अनकहा प्रेम है जो भूल-भुलैया में गुम होता रहता है. दिलशाद शादीशुदा है. दिलशाद ने प्रेम विवाह किया है पर प्रेम की परछाइयां उसके वैवाहिक जीवन से उतर रही हैं. वह कहीं कुछ और तलाश कर रही है. क्या….शायद उसे पता नहीं. इसी कुछ को पाने के क्रम में वरा कुलकर्णी के बुडापेस्ट जाने के बाद वह अफ़रोज के और करीब हो जाती है.

वरा इस उपन्यास की नायिका है जो चुहलबाज और बड़े-बड़े कामों को चुटकियों में अंजाम देने वाली है. वह छोटे से संयुक्त परिवार के बीच से निकल कर मुंबई के आफिस में पहुंच जाती है और फिर वहां से वैश्विक बाजार के कच्चे तेल के पेशेवर लोगों में पहुंचकर ऊपर-नीचे होती हुई स्वयं को बार-बार चोट पहुंचाती है पर हारती कहीं नहीं है.

वरा कुलकर्णी की खूबी यह है कि उस पर मध्यवर्गीय जीवन बेमौसम भी अपने छींटे मारता रहता है. उसे सब कुछ याद है. लोढ़ी-सिलबट्टे में पीसे गए मसाले की खुशबू. संयुक्त परिवार में बोरे की झिर्रियों से दूसरे परिवार को उचक कर देखा जाना. एड़ियों का तिरछापन सब तेल बाजार के साथ-साथ चलता है.

लेखिका अपने साथ संजोये चल रहे चरित्रों का सूक्ष्मता से चित्रण करती हैं. जैसे- अमिय रस्तोगी बहुत शरारती था. उसने पेंसिल से एक कार्टून बनाया जिसमें खाड़ी देशों से बहता तेल उस चित्र तक आ रहा था और एक लड़की उसके बढ़ते स्तर से बेखबर आकंठ तेल में डूबी थी. कई एक देशों की लड़ाई में इस कच्चे तेल दूसरा नाम काला सोना पड़ा.

सऊदी अरब सस्ता तेल बेंचकर ईरान पर दबाव बनाता है कि वह पश्चिमी देशों और अमेरिका के सामने घुटने टेके और परमाणु सन्धि पर हस्ताक्षर करे. उधर अमेरिका भी खुश कि उसका प्रिय चेला सऊदी अरब अपने सस्ते तेल वाली नीति से रूस और वेनेजुएला पर भी दबाव बना रहा है. तेल की विश्व राजनीति को उपन्यास बारीकी से रेशा-रेशा उधेड़ता चलता है बहुत सारी गुफ्तगू और दिलचस्पियों के साथ.

अपने कामों के प्रति समर्पित वरा कुलकर्णी बुडापेस्ट पहुंच जाती है तेल के ऑफिस में काम करने. इस आवाजाही में अफरोज छूट जाता है. उसका छूटना बिलकुल स्वाभाविक है जैसे वह मिला ही वरा को इसलिए हो कि उसे वरा से एक दिन दूर हो जाना है. वरा के ध्यान में अफ़रोज देर तक नहीं रह पाता. वह मिली हुई स्थितियों को स्वीकार कर आगे बढ़ जाती है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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