जबलपुर. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि प्रदेश भर के जिला एवं सिविल अस्पतालों में कार्यरत सरकारी डॉक्टर पीजी कोर्स के लिए प्रवेश प्रक्रिया में आरक्षण के लाभ के पात्र हैं. कोर्ट ने कहा कि 30 प्रतिशत आरक्षण इस उद्देश्य से लाया गया ताकि सभी सरकारी डॉक्टरों को आरक्षण का फायदा मिले. हालांकि कोर्ट ने उन डॉक्टरों को प्रोत्साहन अंक देने से इनकार किया है जिन्होंने कोविड प्रभावित जिलों में सेवाएं दी हैं.
न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल और न्यायमूर्ति अरुण शर्मा की पीठ एमबीबीएस-योग्य डॉक्टरों द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जो राज्य के स्वास्थ्य सेवा विभाग में नियमित कर्मचारियों के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि सरकार उन्हें इससे वंचित नहीं कर सकती. जस्टिस सुजय पॉल व जस्टिस अरुण शर्मा की युगल पीठ ने कहा कि पीजी डिग्री कोर्स में राज्य सरकार द्वारा 30 प्रतिशत आरक्षण इस उद्देश्य से लाया गया है कि उससे सभी सरकारी डॉक्टरों को आरक्षण का फायदा मिले.
कोर्ट ने आगे कहा कि उसे मात्र दूरस्थ, ग्रामीण एवं कठिन क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों तक सीमित नहीं रखा जा सकता. हालांकि कोर्ट ने 10 फीसदी अतिरिक्त अंक देने की प्रार्थना को आंशिक रूप से खारिज करते हुए, कहा कि 1.5 साल से उनकी पोस्टिंग की जगहों को “कठिन क्षेत्र” मानते हुए पीजी एडमिशन का आधार नहीं मान सकते.
जिला अस्पतालों के डॉक्टरों की ओर से नवंबर 2021 में याचिका दायर कर शासन द्वारा तैयार की गयी वरीयता सूची को चुनौती दी गयी थी. इसको निरस्त करने की मांग की गयी थी. याचिकाकर्ता डॉक्टरों की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य शासन द्वारा अगस्त 2021 में प्रदेश में ग्रामीण, दूरस्थ एवं कठिन क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों के लिए 30 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया था. तर्क दिया गया कि इस प्रकार का भेदभाव आरक्षण का लाभ देने के लिए किया जाना पूर्णतः: असंवैधानिक एवं अनुचित है. वर्तमान नियमों के अनुसार सभी शासकीय डॉक्टर इस लाभ के हकदार हैं एवं इसको एक विशेष वर्ग तक सीमित नहीं रखा जा सकता. प्रार्थना की गई कि वरीयता सूची जब तक पुनरीक्षित नहीं होती तब तक काउंसलिंग प्रक्रिया पर रोक लगायी जाए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-31 जनवरी तक बंद रहेंगे एमपी के सभी स्कूल: शिवराज सरकार ने जारी की नई कोरोना गाइडलाइन
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