शहरी और ग्रामीण व्यवस्था में भेदभाव से संकट के आसार! गहराएगा कोरोना संकट?

शहरी और ग्रामीण व्यवस्था में भेदभाव से संकट के आसार! गहराएगा कोरोना संकट?

प्रेषित समय :19:29:48 PM / Sun, Jan 16th, 2022

जयपुर, कोरोना की तीसरी लहर के चलते राजस्थान के शहरी क्षेत्रों के विद्यालय में 30 जनवरी तक अवकाश रखा गया हैं व गांवो की स्कूलो को नियमित चलाने की व्यवस्था की गई हैं. सरकार की इस व्यवस्था से जानकार और शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि, दोनो  असमझ के हालात में हैं. इस बात को लेकर कई कार्टून भी आ रहे हैं कि कोरोना वायरस ने गाँव के लोगो को छूट दी हैं इसलिये सरकार ने ऐसा इंतजाम किया हैं. बताया जाता हैं कि संगठन ने भी स्कूलों को बंद कर ऑनलाईन शिक्षण की मांग की है और जानकार कहते हैं कि कुछ दिनों में संक्रमण फैलने के बाद स्कूल बंद करने पर जो परेशानी होगी उसे भुगतना पडेगा.

हालात यह हैं कि सभी उपाय करने और तमाम तैयारियों के बावजूद दो गज दूरी, मास्क जरूरी जैसी व्यवस्था पूरी तरह नहीं हो पा रही हैं. टीकाकरण को लेकर भी शिक्षकों को पापड बेलने पड रहे हैं. इन सब के बीच निर्वाचन की व्यवस्था, मतदाता सूचीओ के काम आदि से जुड़े बीएलओ दूसरी दौड़ भाग में लगे हैं. संगठन कहते हैं कि सर्वप्रथम कोरोना से निपटने व टीकाकरण पर ध्यान देने के बाद अन्य चुनावी काम आदि गतिविधियां की जानी चाहियें. दूसरी और छात्रवृत्ति आवेदन से लेकर आनलाइन व ऑफलाइन शिक्षण करवाना, पढ़ाई की गतिविधियों को आगे भेजना, पात्र विद्यार्थियों के वोटर आई डी बनाना, विधालय में नियमित निर्माण कार्य की देखरेख, विधालय के एस आर रजिस्टर से आधार व जनाधार को समन्वित करना, स्वास्थ्य शिविर में विद्यार्थियों की स्वास्थ्य जांच करवाना, विधालय प्रबन्ध समिति व शिक्षकों के विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों को जारी रखना आदि हैं.

समस्या यह है कि सरकार हर काम से शिक्षा विभाग को जोड़कर शिक्षकों को एक के बाद एक जिम्मेदारी सौंपी जा रही हैं और शिक्षक हर काम का बोझ उठाकर काम कर रहे हैं और दूसरो के काम भी अपने सर लेकर पूरा कर रहे हैं साथ ही कमी पेशी होने पर फटकार भी खा रहे हैं और नोटीस रूपी प्रशंसा पत्र भी जमा करते जा रहे हैं. आश्चर्यजनक यह है कि शिक्षकों के ऊपर काम की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही हैं और आमजन के मन में शिक्षकों के समर्पण के प्रति सम्मानभाव जैसी बात नहीं हैं और नकारात्मक चर्चाओं का दौर जारी हैं. शिक्षा विभाग के अधिकारी, शिक्षक व कर्मियों की सहनशीलता  स्तुत्य हैं, लेकिन देखना यह हैं कि यह सहनशीलता कब तक बनी रहती हैं? दुर्भाग्यपूर्ण हालात यह हैं कि शिक्षकों की टांग खींचने दूसरों को इतनी मेहनत नहीं करनी पड रही हैं क्योकि कुछ विद्वान शिक्षक यह जिम्मेदारी भी पूरी निष्ठा से करने में जुटे हैं!
ओमिक्रॉन के ताजा रवैये को लेकर देश के प्रमुख कार्टूनिस्ट हाड़ा 
 का कहना है कि.....
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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