माउंट एवरेस्ट पर दिखा जलवायु परिवर्तन का असर, महज 25 सालों में पिघला 2000 साल में बनकर तैयार हुआ ग्लेशियर

माउंट एवरेस्ट पर दिखा जलवायु परिवर्तन का असर, महज 25 सालों में पिघला 2000 साल में बनकर तैयार हुआ ग्लेशियर

प्रेषित समय :10:55:48 AM / Sat, Feb 5th, 2022

नई दिल्ली. जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट पर मौजूद सबसे ऊंचाई वाले ग्लेशियर पर हर साल बड़ी मात्रा में बर्फ पिघल रही है. एक नई स्टडी में इसकी जानकारी दी गई है. ये नतीजे एक चेतावनी हैं, क्योंकि पृथ्वी के सबसे ऊंचे इलाके पर बर्फ का तेजी से पिघलना जलवायु परिवर्तन के कुछ सबसे खराब प्रभाव को सामने ला सकता है. इसकी वजह से हिमस्खलन बढ़ सकता है और पानी के सोर्स सूख सकते हैं. हिमालय के पर्वत श्रृंखलाओं के जरिए मिलने वाले पानी पर लगभग 1.6 अरब लोग निर्भर हैं. इस पानी का इस्तेमाल पीने, सिंचाई और हाइड्रोपावर के लिए किया जाता है.

माउंट एवरेस्ट पर मौजूद साउथ कोल ग्लेशियर को बनने में लगभग 2000 साल का वक्त लगा. लेकिन ये पिछले 25 सालों में पिघल गया है. इसका मतलब ये है कि जितने दिनों में यहां पर बर्फ बनी, उसकी तुलना में ये लगभग 80 गुना तेजी से पिघल गई. जहां दुनियाभर में ग्लेशियर के पिघलने पर व्यापक तौर पर अध्ययन किया जाता है. लेकिन पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी पर मौजूद ग्लेशियर पर बहुत ही कम ध्यान दिया गया है. ग्लेशियर को लेकर की गई स्टडी को ‘क्लाइमेट एंड एटमोस्फेरिक साइंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया.

मेन यूनिवर्सिटी के छह वैज्ञानिकों सहित पर्वतारोहियों की एक टीम 2019 में ग्लेशियर के ऊपर पहुंची. टीम ने यहां पर 10 मीटर लंबे बर्फ के टुकड़े से सैंपल्स इकट्ठा किए. उन्होंने डेटा इकट्ठा करने और एक सवाल का जवाब जानने के लिए दुनिया की दो सबसे ऊंची ऑटोमैटिक मौसम स्टेशन को भी स्थापित किया. उनका सवाल ये था कि क्या इंसान से जुड़े जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी के सबसे अधिक दूर मौजूद वाले ग्लेशियर प्रभावित हैं? अभियान के लीडर और मेन यूनिवर्सिटी में जलवायु परिवर्तन संस्थान के डायरेक्टर पॉल मेवेस्की ने कहा, ‘हमें इसका जवाब हां के रूप में मिला. 1990 के दशक से ही ये प्रभावित होने लगे थे.’

रिसर्चर्स ने कहा कि नतीजों से न केवल इस बात की पुष्टि हुई कि इंसानों की वजह से पैदा हुआ जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के सबसे ऊंचे प्वाइंट तक पहुंच गया है. बल्कि ये उस महत्वपूर्ण संतुलन को भी बाधित कर रहा है, जो ये ग्लेशियर प्रदान करते हैं. रिसर्च से पता चला है कि एक बार ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हुए तो उन्होंने 25 सालों में लगभग 180 फीट बर्फ को खो दिया. रिसर्चर्स ने बताया कि 1990 के दशक के बाद से ही बर्फ का नुकसान सबसे अधिक रहा है. जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर सूरज से आने वाली रेडिएशन को रिफ्लेक्ट नहीं कर पाते हैं और अधिक तेजी से बर्फ पिघलने लगती है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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