शख्स ने की 30 साल बाद दोबारा MBBS कोर्स में दाखिले की मांग, गुजरात हाई कोर्ट ने पूछा- इस उम्र में कर पाएंगे इंटर्नशिप

शख्स ने की 30 साल बाद दोबारा MBBS कोर्स में दाखिले की मांग, गुजरात हाई कोर्ट ने पूछा- इस उम्र में कर पाएंगे इंटर्नशिप

प्रेषित समय :19:11:17 PM / Sat, Feb 19th, 2022

अहमदाबाद. गुजरात हाई कोर्ट के सामने एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. जहां एक 50 वर्षीय व्यक्ति ने तीन दशक से अधिक समय बाद एमबीबीएस कोर्स में फिर से दाखिले की मांग को लेकर याचिक दायर की. मामले में बुधवार को सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने उसे फटकार लगायी और कहा कि याचिकाकर्ता को उसकी मर्जी के अनुसार काम करने और लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

न्यायमूर्ति भार्गव डी करिया की अदालत कंदीप जोशी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जोकि वर्ष 1988 में बड़ौदा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की द्वितीय वर्ष की परीक्षा में शामिल हुए थे और बाद में व्यक्तिगत कारणों से कोर्स बीच में ही छोड़ दिया था. जोशी के वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता, जो वर्तमान में किसी अन्य व्यवसाय में है, अपना एमबीबीएस कोर्स पूरा करना चाहते हैं और उसी कॉलेज में परीक्षा देने के इच्छुक हैं, जहां वह करीब 30 साल से अधिक समय पहले पढ़ रहे थे.

जस्टिस करिया ने पूछा कि “इसके बाद उन्हें क्या मिलेगा? क्या वह 50 साल की उम्र में इंटर्नशिप कर सकते हैं? यह संभव नहीं है. कितने बच्चे हैं? 50 साल की उम्र में, उनके बच्चों की एमबीबीएस कोर्स करने की उम्र है. क्या वह कोर्स के लिए अपने बच्चों के साथ पढ़ाई करेंगे?” अदालत ने जानना चाहा कि क्यों याचिकाकर्ता को जीवन के इस पड़ाव पर एमबीबीएस कोर्स करना जारी रखना चाहिए. अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ”मान लीजिए (इस तरह के प्रवेश के लिए) इस तरह का कोई नियम नहीं है. फिर भी, आपको अपनी मर्जी से काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर तब, जब आप लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने जा रहे हैं.’

2013 में कॉलेज में तीसरे वर्ष में प्रवेश की करी थी मांग
‘जब जोशी के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता परीक्षा देने से पहले तीसरे वर्ष के पाठ्यक्रम के अध्ययन के इच्छुक हैं, तो अदालत ने कहा कि ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती. याचिकाकर्ता कंदीप जोशी ने पहली बार 2013 में कॉलेज में तीसरे वर्ष में प्रवेश की मांग की थी, और इनकार करने के बाद, उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसने 2019 में उनकी याचिका को खारिज कर दिया, जबकि उन्हें प्रतिनिधित्व के साथ भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी थी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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