प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो बच्चों की कस्टडी उनकी मां को सौंपते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि एक बच्चे के जीवन में विश्वास और भावनात्मक अंतरंगता की एक मजबूत नींव स्थापित करने के लिए उसको मां का प्यार बिना किसी शर्त के मिलना चाहिए. जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने यह आदेश नाबालिग कुमारी सान्या शर्मा की तरफ से मां सीमा शर्मा द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करते हुए दिया. इस याचिका में बच्चों की मां ने अपने दो बच्चों की कस्टडी की मांग की थी, जो अपनी दादी के साथ रह रहे हैं.
मामले के अनुसार सीमा शर्मा ने मार्च 2016 में कपिल शर्मा नामक व्यक्ति से शादी की थी. इस दंपत्ति से 2 बच्चे पैदा हुए, जिसमें एक 5 साल की नाबालिग बेटी और ढाई साल का एक बेटा है. पति की आत्महत्या के मामले में सीमा शर्मा को 5 अन्य लोगों के साथ आरोपी बनाया गया है. मामले की जांच अभी चल रही है और अभी तक कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है. अपने पति की मृत्यु के बाद, शर्मा अपनी बहन के साथ मुरादाबाद में रहने लग गई, जबकि उसके छोटे बच्चे उनकी दादी (दीपा शर्मा) के पास रह गए. इसलिए मां ने दोनों बच्चों की कस्टडी के लिए हाईकोर्ट का रुख किया.
हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी
हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956 की धारा 6 (ए) को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि यह विशेष प्रावधान नाबालिग बच्चे की संपत्ति के अभिभावक होने के एक पिता के अधिकार को सुरक्षित रखता है. लेकिन वह बच्चे का अभिभावक नहीं है, अगर बच्चा पांच वर्ष से कम उम्र का है.
कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान संरक्षकता के भेद में, अंतरिम कस्टडी के अपवाद को बताता है, और फिर निर्दिष्ट करता है कि जब तक बच्चा पांच साल से कम उम्र का है, तब तक बच्चे को मां की ही कस्टडी में रखा जाना चाहिए. यह देखते हुए कि वर्तमान मामले में चूंकि मां ( बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते) और दादी व पिता की बहन के बीच नाबालिग बच्चों की कस्टडी को लेकर झगड़ा चल रहा है, इस कारण कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मां उन बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते, दादी या उनके पिता की बहन (बुआ) की तुलना में बहुत अधिक ऊंचे पायदान पर खड़ी है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला- दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी भी होंगे पुरानी पेंशन के हकदार
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