पल-पल इंडिया ने पहले ही बताया था कि- मोदी सरकार को किससे सियासी खतरा है?

पल-पल इंडिया ने पहले ही बताया था कि- मोदी सरकार को किससे सियासी खतरा है?

प्रेषित समय :08:12:17 AM / Mon, Jun 13th, 2022

प्रदीप द्विवेदी. अपने आठ साल के कार्यकाल में पीएम नरेंद्र मोेदी कोे सबसे तगड़ा सियासी झटका विपक्ष से नहीं बल्कि अपने अमर्यादित समर्थकों के कारण लगा है और अमर्यादित समर्थकों को भी समझ में आ गया होगा कि अंधे भरोसे का क्या हश्र होता है?

अमर्यादित समर्थक लंबे समय से इतरा रहे थे और किसी के लिए कुछ भी बोल रहे थे, लेकिन क्योंकि सब कुछ देश की सीमा में और सत्ता के संरक्षण में था, तो मात्र- मन से माफ नहीं करूंगा, से काम चल गया, लेकिन जब मुद्दा देश की सीमा के पार गया तो 56 इंच, 5-6 इंच में बदल गया?

पल-पल इंडिया ने 19 जनवरी 2021 को लिखा था- मोदी सरकार को बड़ा सियासी खतरा अमर्यादिक समर्थकों से है!

किसी नेता का समर्थक होना अच्छी बात है, लेकिन उस नेता का सबसे ज्यादा नुकसान उसके वे ही समर्थक करते हैं, जो सही मुद्दे उठानेवाले विरोधियों से अमर्यादित व्यवहार करते हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय में लगे आपातकाल के दौरान कई गलतियां की गई, लेकिन अनियंत्रित सहयोगी न केवल इन ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करते रहे, बल्कि विरोधियों को प्रताड़ित भी करते रहे.

इसका नतीजा यह रहा कि सारी सरकारी-ग़ैरसरकारी संस्थाओं पर मजबूत पकड़ के बावजूद श्रीमती गांधी को जनता ने नकार दिया. उस समय के कुछ अच्छे काम भी किसी काम न आए?

कुछ ऐसा ही हाल इस वक्त अघोषित आपातकाल का है. अमर्यादित समर्थकों को मोदी सरकार की कोई गलती नजर नहीं आ रही है, बल्कि गलती की ओर ध्यान दिलाने वाले इनके निशाने पर आ जाते हैं.

देश में अचानक हुई नोटबंदी और बगैर पर्याप्त तैयारी के जीएसटी ने तो अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका दिया ही था, कोरोना लापरवाही ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है.
कोरोना संकट शुरू होने के साथ ही ये संकेत आने शुरू हो गए थे कि इससे न केवल अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी, बल्कि लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा भी दांव पर लग जाएगी, लेकिन पीएम मोदी सरकार ने जनता के विभिन्न मुद्दों को नजरअंदाज ही कर दिया.

यही वजह है कि आज भी लोगों को बिजली बिलों के झटके लग रहे हैं, तो मकान मालिक-किराएदार के विवाद आम हैं. स्कूलों को लेकर कोई ठोस समाधान नहीं है, तो करोड़ो युवाओं की नौकरियां जा चुकी हैं, लेकिन आगे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है.

किसान आंदोलन को जनता की आवाज समझने के बजाए विरोधियों की साजिश करार दिया जा रहा है?

क्या खेती-किसानी, रोजी-रोटी का समाधान चीन-पाकिस्तान हैं? बड़ा सवाल तो यह है कि जब बगैर बुलाए पाकिस्तान जाते हैं या चीन को गुजराती झूला झुलाते हैं, तब क्या हमें पता नहीं था कि ये दोनों देश किसी भी परिस्थिति में विश्वसनीय नहीं हैं?

हद तो यह है कि केन्द्र सरकार की चीन को झूला झुलाने वाली नीति ने स्वदेशी आंदोलन को ही बर्बाद कर दिया है.

अब तो यह साफ होता जा रहा है कि मोदी सरकार के हर फैसले के पीछे एकमात्र मकसद अपने करीबी कारोबारियों को लाभ पहुंचाना है.

इस वक्त विभिन्न न्यूज चैनल पर हो रही बहस को देखें तो लगता है कि आपातकाल का वह दौर लौट कर आ गया है, जब जनता में खराब हो रही इमेज से बेखबर और वास्तविकता को नजरअंदाज करते हुए सत्तापक्ष के नेता, विपक्ष के सामने इतरा रहे थे!

जागो! 5-6 इंच को 56 इंच समझने का नतीजा तो अब जगजाहिर है? 
https://twitter.com/PalpalIndia/status/1534568894525939712

Pushpendra Kulshrestha @Pushpendraamu
https://twitter.com/Pushpendraamu/status/1533690741901385728/photo/1

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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