दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराध के एक मामले में सुनवाई करते हुए भूलने के अधिकार को निजता के अधिकार के एक पहलू के रूप में स्वीकार किया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के व्यक्तिगत विवरण को छिपाने का आदेश दिया. दरअसल यौन अपराध की शिकार महिला ने सुप्रीम कोर्ट से विवरण छिपाने की मांग की थी. उसने कहा था कि मुकदमे से जुड़ा विवरण सार्वजनिक होने पर उसे शर्मिंदगी और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ेगा.
इस मामले में सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस प्रकार हम सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से इस मुद्दे की जांच करने और यह पता लगाने के लिए कहते हैं कि कैसे याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर-1 दोनों का नाम और पता छिपाया जा सकता है, ताकि वे किसी भी सर्च इंजन में न दिखें. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पीडि़त महिला की याचिका का निपटान करते हुए अपने आदेश में कहा कि रजिस्ट्री द्वारा आज से 3 सप्ताह के भीतर यह जरूरी काम किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि यदि प्रतिवादी संख्या 1 का नाम प्रकट होता है, तो भी यह वही परिणाम देता है. याचिकाकर्ता निजता का अधिकार होने के नाते भूलने का अधिकार की दलील देता है. याचिकाकर्ता के साथ-साथ प्रतिवादी का नाम, पता, पहचान से संबंधित विवरण और केस नंबर के साथ हटा दिया जाना चाहिए, मास्क किया जाना चाहिए. ताकि ये विवरण सर्च इंजन पर दिखाई नहीं दें. पीडि़त महिला की याचिका को प्रतिवादी नंबर 1 के वकील ने भी समर्थन दिया.
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त, 2017 को एक ऐतिहासिक फैसले में निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया था. सर्वसम्मत फैसले में, तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाले जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का एक हिस्सा है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-ज्ञानवापी मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- निचली अदालत के फैसले का करें इंतजार
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