नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 16 सितम्बर को एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पंजीकृत शैक्षणिक संस्थानों में कर्मचारियों और छात्रों के लिए एक समान ड्रेस कोड लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि समानता को सुरक्षित करने और बंधुत्व और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए एक ड्रेस कोड लागू किया जाना चाहिए.
जनहित याचिका याचिकाकर्ता निखिल उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि यह एक संवैधानिक मुद्दा है और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत एक निर्देश की मांग की. न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसे अदालत में निर्णय के लिए आना चाहिए.
न्यायमूर्ति गुप्ता की अध्यक्षता वाली यही पीठ राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. जनहित याचिका वकीलों अश्विनी उपाध्याय और अश्विनी दुबे के माध्यम से दायर की गई थी. इसने केंद्र को एक न्यायिक आयोग या एक विशेषज्ञ पैनल स्थापित करने का निर्देश देने की मांग की थी, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय, समाजवाद धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल्यों को विकसित करने के लिए कदम उठाने का सुझाव दे. छात्रों के बीच भाईचारे की गरिमा एकता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना.
जनहित याचिका में कहा गया है, शैक्षणिक संस्थानों के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए सभी स्कूल-कॉलेजों में एक कॉमन ड्रेस कोड लागू करना बहुत जरूरी है, अन्यथा कल नागा साधु कॉलेजों में प्रवेश ले सकते हैं और आवश्यक धार्मिक प्रथा का हवाला देते हुए बिना कपड़ों के कक्षा में शामिल हो सकते हैं.
पीठ ने कहा कि, शैक्षणिक संस्थान धर्मनिरपेक्ष सार्वजनिक स्थान हैं और ज्ञान और ज्ञान रोजगार, अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए हैं, न कि आवश्यक और गैर-जरूरी धार्मिक प्रथाओं का पालन करने के लिए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली ईओडब्ल्यू के ऑफिस पहुंची नोरा फतेही, मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ जारी
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