दिल्ली. कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जम्मू कश्मीर और उसपर शुरू हुए विवाद को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर बड़े आरोप लगाए हैं. उन्होंने एक लेख में जम्मू-कश्मीर को लेकर नेहरू की पांच बड़ी गलतियों का जिक्र किया है और आरोप लगाया है कि नेहरू की गलतियों की वजह से ही आज 75 साल बाद भी जम्मू कश्मीर पर विवाद चल रहा है.
किरेन रिजिजू ने अपने लेख में लिखा कि नेहरू की पहली गलती महाराजा की पेशकश को ठुकराना था. उन्होंने लिखा कि इसका ही नतीजा था, कि पाकिस्तान को सेना भेजने का मौका मिला. रिजिजू का मानना है कि अगर नेहरू महाराजा की पेशकश नहीं ठुकराते तो पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में घुसपैठ नहीं करता. उन्होंने कहा कि नेहरू ने ही पाकिस्तान को जम्मू कश्मीर में 20 अक्टूबर 1947 को घुसपैठ करने का मौका दिया. रिजिजू ने आरोप लगाया कि नेहरू यहीं नहीं रुके और उन्होंने भारत में शामिल होने के महाराजा के एक और पेशकश को ठुकराया.
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने आगे लिखा है कि कश्मीर पर नेहरू की दूसरी सबसे बड़ी गलती यह थी कि उन्होंने विलय को प्रोविजनल घोषित कर दिया. उन्होंने लिखा कि महाराजा हरि सिंह ने अन्य सभी रियासतों की तरह ही विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी रियासतों को स्पष्ट रूप से भारत में मिला लिया गया था. क्यों? क्योंकि खुद नेहरू थे, महाराजा नहीं, जिन्होंने विलय को प्रोविजनल घोषित किया था.
रिजिजू ने अपने लेख में लिखा है कि 26 अक्टूबर को, नेहरू ने एमसी महाजन को एक और चि_ी लिखी जिसमें उन्होंने कहा कि भारत सरकार इस घोषणा को अस्थायी रूप से स्वीकार करेगी. नेहरू ने का कहना था कि इस मामले को लोगों की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम रूप दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर जुलाई 1947 में नहीं, तो 27 अक्टूबर, 1947 को नेहरू को कश्मीर के विलय के सवाल को स्थायी रूप से बंद करने का एक और मौका दिया गया, लेकिन नेहरू की भूलों ने एक ऐसा रास्ता खोल दिया जिसने सात दशकों के संदेह, अलगाववादी मानसिकता और रक्तपात को जन्म दिया.
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि नेहरू की तीसरी सबसे बड़ी गलती ये थी कि उन्होंने 1 जनवरी 1948 को यूनाइटेड नेशन को आर्टिकल 51 के बजाय आर्टिकल 35 के तहत संपर्क किया. रिजिजू कहते हैं कि अगर नेहरू आर्टिकल 51 के तहत यूनाइटेड नेशन जाते तो वो जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे को उजागर करता, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. रिजिजू कहते हैं कि महाराजा ने सिर्फ एक विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया और वो भी भारत के साथ, लेकिन वह नेहरू ही थे जिन्होंने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के रूप में स्वीकार करके पाकिस्तान को ठिकाना दिया. इसके बाद से यूनाइटेड नेशन के प्रस्तावों ने भारत को परेशान करके रखा है.
किरेन रिजिजू कहते हैं कि कश्मीर पर नेहरू की चौथी भूल यह थी कि उन्होंने यह मिथक पनपने दी कि भारत कश्मीर में यूनाइटेड नेशन के अनिवार्य जनमत संग्रह को रोक रहा है. इसके अलावा किरेन रिजिजू ने नेहरू की पांचवीं गलती के रूप में आर्टिकल 370 का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा कि अनुच्छेद 370 को शामिल करना एक स्थायी था. पहले उदाहरण में, इस तरह के एक आर्टिकल के लिए कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि विलय का साधन वही था जैसा कि हर दूसरी रियासत ने हस्ताक्षर किया था. एकमात्र विशेष मामला जो अस्तित्व में था वह नेहरू के दिमाग में था.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-चीन ने अरुणाचल प्रदेश के लापता युवक को भारतीय सेना को सौंपा: किरेन रिजिजू
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