हर योग की तरह ये भी एक साधारण योग ही है और हर योग की तरह इसके नाम से भी काफी डराया जाता है, इस योग को साधारण योग कहने का कारण कोई एक ग्रह या योग आपके जीवन में सौभाग्य या दुर्भाग्य लेकर नहीं आ सकता हां कुछ सफलताएं या परेशानियां जरूर ला सकता है किसी क्षेत्र विशेष में.
इसके नाम से डराए जाने का कारण क्योंकि इसका नाम ही ऐसा है "पितृ दोष" व्यक्ति को भयभीत करने या लूटने का सबसे आसान तरीका है उस चीज का डर दिखाओ जिसे वो स्वयं खोज ना पाए उदाहरण के तौर गलत काम करोगे तो नर्क की यातनाएं सहनी पड़ेंगी खौलते तेल की कढ़ाही में तला जाएगा.
जबकि ज्ञानीजन जानते और मानते हैं हमारे ग्रंथों में लिखी ज्यादातर चीजें प्रतीकात्मक हैं ताकि व्यक्ति को आसानी से समझ में आए और उसे वो बातें समझाकर सही रास्ता दिखाया जा सके, लेकिन कुछ धूर्त लोगों ने इसे पैसें कमाने का हथियार बना लिया.
ख़ैर पितृ दोष की ओर लौटते हैं तो नवम भाव में जब सूर्य और राहू की युति हो यानी जब नवे भाव में दोनों ग्रह साथ हों तो यह माना जाता है कि पितृ दोष बन रहा है. अब इसे थोड़ा व्यवहारिक दृष्टि से समझते हैं पहला कारण नौवा भाव धर्म का भाव होता है और राहु हमेशा ही व्यक्ति को पथ से विचलित करता है, तो जब धर्म के भाव में राहु बैठता है तो व्यक्ति अपने धर्म से विचलित हो जाता है उसे आप अधर्मी भी क्या सकते हैं और नास्तिक भी ऐसे योग के कारण व्यक्ति धर्म से बाहर जाकर विवाह करते हुऐ भी देखे गए हैं, दूसरा कारण सूर्य जो है वह ज्योतिष में अनुशासन और आत्मा का कारक है और राहु तथा केतु चंद्रमा और सूर्य ग्रहण लगाते हैं, तो राहु के साथ सूर्य के होने पर व्यक्ति के अनुशासन उसकी आत्मा पर ग्रहण लग जाता है ऐसा व्यक्ति मौकापरस्त और झूठ बोलने वाला हो सकता है. अब इस पूरे योग का अध्यन करें तो एक ऐसा व्यक्ति जो अपने धर्म से विचलित है अनुशासन में नहीं है और झूठ बोलता है तो जाहिर सी बात है एक साधारण परिस्थिति में उसे जीवन में दुख मिलना स्वाभाविक ही है. क्योंकि वह चाहे कितनी भी तरक्की कर ले लेकिन उसका समाज उसे हमेशा कुदृष्टि से ही देखेगा.
लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अगर कुंडली में बृहस्पति की स्थिति अच्छी और मंगल की स्थिति अच्छी हो शनि की स्थिति अच्छी हो तो जरूरी नहीं है कि व्यक्ति बिल्कुल ऐसा ही हो जैसा ऊपर बताया है और साथ ही नवमांश कुंडली में भी अगर सूर्य और राहु वर्गोत्तम हो जाए तो मुमकिन है अधर्मी होकर भी व्यक्ति अन्य किसी कारण से सम्मानित कहलायेगा.
कुछ समय पहले एक व्यक्ति मेरे पास आए और उनका कहना था कि पितृदोष के चपेट में आने से उनका पूरा परिवार बिखर सा गया है, और उनके भी कई सारे काम बनते-बनते बिगड़ जा रहे हैं, मैंने उनसे कारण जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि उनके घर में उनकी दादी के साथ बुरा व्यवहार किया गया और दादी की मृत्यु के उपरांत उनके परिवार को ऐसे ही बुरे फल मिल रहे हैं. तो मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने भी बहुत बुरा व्यवहार किया था अपनी दादी के साथ ? उन्होंने कहा "नहीं मैंने कभी अपनी दादी के साथ बुरा व्यवहार किया" साथ ही उन्होंने कुछ एक अच्छी यादें साझा की.
मैंने उनसे पूछा की अगर आपने अच्छा व्यवहार किया तो आपको बुरे फल क्यों मिल रहे हैं ? इस बात का उनके पास कोई जवाब नहीं था वैसे मैंने उनकी कुंडली पहले देखी थी और उसमें पितृ दोष जैसा भी कुछ नहीं था, उनके काम ना बनने के कुछ अलग कारण थे उस पर फिर कभी अलग से बात करेंगे.
ऐसा बिल्कुल नहीं है की मैं पितृ दोष को नहीं मानता बिल्कुल मानता हूं और ये भी मानता हूं की अगर जानबूझकर आपने किसी का नुकसान किया है और उस वजह से उसकी आँख से एक आंसू भी निकला है तो आपको हिसाब चुकाना होगा, लेकिन मैं उस पितृ दोष को नहीं मानता जिसमें कहा जाता है अगर "हमारे बताए उपाय" नहीं किए तो पूरे खानदान पर विपत्ति आ जायेगी, पूरे खानदान का नाश हो जाएगा या दुर्घटनाएं होगी, अकाल मृत्यु होगी आदि, ऐसे पितृ दोष को ना मानने के दो तीन कारण हैं पहला कारण हम चाहे कहीं भी जन्म लें किसी भी व्यक्ति/खानदान से जुड़े हों सबके अपने कर्म होते हैं अपना भविष्य होता है. दूसरा कारण कई बार यह होता है कि हम तरक्की करते हैं तो सामने वाले का नुकसान (अप्रत्यक्ष) अपने आप हो जाता है तो इस नुकसान के लिए हम जिम्मेदार नहीं है मुझे नहीं लगता ऐसे वक्त में उसकी बद्दुआ का असर होता होगा और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण जिसका हमारे ग्रंथों में भी उल्लेख है वह ये की सूर्य ऊर्जा के स्रोत हैं उनसे ही सृष्टि चलायमान हैं वो हमारे हमारे प्रत्यक्ष देवता हैं. अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन में अपने पितरों को याद करते हुए सूर्य देव को सिर्फ जौ/तिल/अक्षत के साथ जल चढ़ा दें तो पितरों को शांति मिल जाती है.
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