नृसिंह द्वादशी व्रत के दिन इन तरीकों से करें भगवान् नरसिंह की पूजा

नृसिंह द्वादशी व्रत के दिन इन तरीकों से करें भगवान् नरसिंह की पूजा

प्रेषित समय :21:01:41 PM / Thu, Mar 2nd, 2023

भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार उनके 12 स्वरूपों में से एक है. ये ऐसा अवतार था जिसमें श्रीहरि के शरीर आधा हिस्सा मानव का और आधा हिस्सा शेर का था. इसीलिए इस अवतार को नरसिंह अवतार कहा गया. भगवान ने ये अवतार अपने प्रिय भक्त प्रहलाद के प्राण बचाने के लिए लिया था. नरसिंह भगवान एक खंभे को चीरते हुए बाहर आए थे.
जिस दिन ये घटना हुई, उस दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी. तभी से हर साल होली से तीन दिन पहले द्वादशी के दिन नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है और इस दिन को नरसिम्हा द्वादशी के रूप में जाना जाता है. आमलकी एकादशी के साथ नरसिंह द्वादशी का व्रत भी रखा जाएगा.
नृसिंह मंत्र 
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्. नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
(हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है. हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ।)
नृसिंह जी अवतरण कथा
सतयुग में ऋषि कश्यप के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरणाकश्यप, हिरण्याक्ष भगवान ब्रह्म से मिले वरदान की वजह से बहुत अहंकारी हो गया था. अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए वो भूदेवी को साथ लेकर पाताल में भगवान विष्णु की खोज में चला गया. भगवान विष्णु ने वराह अवतार में उसके साथ युद्ध किया और उसका विनाश कर दिया. लेकिन संसार के लिए खतरा अभी टला नही था क्योंकि उसका भाई हिरणाकश्यप अपने भाई के मौत की बदला लेने को आतुर था उसने देवताओ से बदला लेने के लिए अपनी असुरो की सेना से देवताओ पर आक्रमण कर दिया. हिरणाकश्यप देवताओ से लड़ता लेकिन हर बार भगवान विष्णु उनकी मदद कर देते.
हिरणाकश्यप ने सोचा “अगर मुझे विष्णु को हराना है तो मुझे अपनी रक्षा के लिए एक वरदान की आवश्यकता है क्योंकि मै जब भी देवताओ और मनुष्यों पर आक्रमण करता हु , विष्णु मेरी सारी योजना तबाह कर देता है 
हिरणाकश्यप की राजधानी को तबाह कर इन्द्रदेव ने हिरणाकश्यप के महल में प्रवेश किया जहा पर उनको हिरणाकश्यप की पत्नी कयाधू नजर आयी इंददेव ने हिरणाकश्यप की पत्नी को बंदी बना लिया ताकि भविष्य में हिरणाकश्यप के लौटने पर उसके बंधक बनाने के उपयोग कर पाए इंद्रदेव जैसे ही कयाधू को इंद्र लोक लेकर जाने लगे महर्षि नारद प्रकट हुए और उसी समय इंद्र को कहा “इंद्रदेव  रुक जाओ  आप ये क्या कर रहे हो ”   महर्षि नारद  इंद्रदेव के कयाधू को अपने रथ में ले जाते देख क्रोधित हो गये इंददेव में नतमस्तक होकर महर्षि नारद से कहा “महर्षि हिरणाकश्यप के नेतृत्व के बिना असुरो पर आक्रमण किया है और मेरा मानना है कि असुरो के आतंक को समाप्त करने का यही समय है” 
वहा के विनाश को देखकर महर्षि नारद ने क्रोधित स्वर में कहा “हा ये सत्य है मै देख सकता हु लेकिन ये औरत इसमें कहा से आयी , क्या इसने तुमसे युद्ध किया , मुझे ऐसा नही लग रहा है कि इसने तुम्हारे विरुद्ध कोई शस्र उठाया है फिर तुम उसको क्यों चोट पंहुचा रहे हो ? “इंद्रदेव ने महर्षि नारद  की तरफ देखते हुए जवाब दिया कि वो उसके शत्रु हिरणाकश्यप की पत्नी है जिसे वो बंदी बना करले जा रहा है ताकि हिरणाकश्यप कभी आक्रमण करे तो वो उसका उपयोग कर सके महर्षि नारद ने गुस्से में इन्द्रदेव को कहा कि केवल युद्ध जीतने के लिए दुसरे की पत्नी का अपहरण करोगे और इस निरपराध स्त्री को ले जाना महापाप होगा.
इंद्रदेव को महर्षि नारद  की बाते सुनने के बाद कयाधू को रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नही था इंद्रदेव ने कयाधू को छोड़ दिया और महर्षि नारद को उसका जीवन बचाने के लिए धन्यवाद दिया महर्षि नारद ने पूछा कि असुरो के विनाश के बाद वो अब कहा रहेगी कयाधू उस समय गर्भवती थी और अपनी संतान की रक्षा के लिए उसने महर्षि नारद को उसकी देखभाल करने की प्रार्थना की महर्षि नारद  उसको अपने घर लेकर चले गये और उसकी देखभाल की इस दौरान वो कयाधू को विष्णु भगवान की कथाये भी सुनाया करते थे जिसको सुनकर कयाधू को भगवान विष्णु से लगाव हो गया था उसके गर्भ में पल रहे शिशु को भी विष्णु भगवान की कहानियों ने मोहित कर दिया था
समय गुजरता गया एक दिन स्वर्ग की वायु इतनी गर्म हो गयी थी कि सांस लेना मुश्किल हो रहा था कारण खोजने पर देवो को पता चला कि हिरणाकश्यप की तपस्या बहुत शक्तिशाली हो गयी थी जिसने स्वर्ग को भी गर्म कर दिय था इस असहनीय गर्मी को देखते हुए देव भगवान ब्रह्मा के पास  गये और मदद के लिए कहा  भगवान ब्रह्मा को हिरणाकश्यप से मिलने के लिए धरती पर प्रकट होना पड़ा भगवान ब्रह्मा हिरणाकश्यप की कठोर तपस्या से बहुत प्रस्सन हुए और उसे वरदान मांगने को कहा.
हिरणाकश्यप अपनी पत्नी कयाधू को खोजकर घर लेकर आ गया कयाधू के विरोध करने के बावजूद हिरणाकश्यप मनुष्यों पर यातना ढाने लगा और उसके खिलाफ आवाज उठाने वाला अब कोई नही था अब कयाधू ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रहलाद रखा गया जैसे जैसे प्रहलाद बड़ा होता गया वैसे वैसे हिरणाकश्यप ओर अधिक शक्तिशाली होता गया हालांकि प्रहलाद अपने पिता से बिलकुल अलग था और किसी भी जीव को नुकसान नही पहुचता था. वो भगवान विष्णु का अगाध भक्त था और जनता उसके अच्छे व्यवाहर की वजह से उससे प्यार करती थी.
एक दिन गुरु शुक्राचार्य प्रहलाद की शिकायत लेकर हिरणाकश्यप के पास पहुचे और कहा “महाराज , आपका पुत्र हम जो पढ़ाते है वो नही पढ़ता है और सारा समय विष्णु के नाम ने लगा रहता है  ” हिरणाकश्यप ने उसी समय गुस्से में प्रहलाद को बुलाया और पूछा कि वो दिन भर विष्णु का नाम क्यों लेता रहता है. प्रहलाद ने जवाब दिया “पिताश्री , भगवान विष्णु ही सारे जगत के पालनहार है इसलिए मै उनकी पूजा करता हु मै दुसरो की तरफ आपके आदेशो को मानकर आपकी पूजा नही कर सकता हुआ “।
हिरणाकश्यप ने अब शाही पुरोहितो से उसका ध्यान रखने को  कहा और विष्णु का जाप बंद कराने को कहा लेकिन कोई फर्क नही पड़ा इसके विपरीत गुरुकुल में प्रहलाद दुसरे शिष्यों को भी उसकी तरह भगवान विष्णु की आराधना करने के लिए प्रेरित करने लगा.
हिरणाकश्यप ने परेशान होकर फिर प्रहलाद को बुलाया और पूछा “पुत्र तुम्हे सबसे प्रिय क्या है ?
प्रहलाद ने जवाब दिया “मुझे भगवान विष्णु का नाम लेना सबसे प्रिय लगता है ”
अब हिरणाकश्यप ने पूछा “इस सृष्टि में सबसे शक्तिमान कौन है ?”
प्रहलाद ने फिर उत्तर दिया “तीन लोको के स्वामी और जगत के पालनहार भगवान विष्णु सबसे सर्वशक्तिमान है  “
अब हिरणाकश्यप को अपने गुस्से पर काबू नही रहा और उसने अपने पहरेदारो से प्रहलाद को विष देने को कहा प्रहलाद ने विष का प्याला पूरा पी लिया लेकिन उसकी मृत्यु नही हुयी सभी व्यक्ति इस चमत्कार को देखकर अचम्भित रह गये. अब हिरणाकश्यप ने आदेश दिया कि प्रहलाद को बड़ी चट्टान से बांधकर समुद्र में फेंक दो लेकिन फिर चमत्कार हुआ और रस्सिया अपने आप खुल गयी भगवान विष्णु का नाम लेकर वो समुद्र जल से बाहर आ गया इसके बाद एक दिन जब प्रहलाद भगवान विष्णु के ध्यान में मग्न था तब उस  पर उन्मत्त हाथियों के झुण्ड को छोड़ दिया लेकिन वो हाथी उसके पास शांति से बैठ गये.
अब हिरणाकश्यप ने अपनी बहन होलिका और बुलाया और कहा “बहन तुम्हे भगवान से वरदान मिला है कि तुम्हे अग्नि से कोई नुकसान नही होगा , मै तुम्हारे इस वरदान क परखना चाहता हु , मेरा पुत्र प्रहलाद दिन भर विष्णु का नाम जपता रहता है और मुझसे सामना करता है …मै उसकी सुरत नही देखना चाहता हु मै उसे मारना चाहता हु क्योंकि वो मेरा पुत्र नही है 
मै चाहता हु कि तुम प्रहलाद को गोद में बिठाकर अग्नि पर बैठ जाओ   ”   होलिका ने अपने भाई की बात स्वीकार कर ली.
अब होलिका ने ध्यान करते हुए प्रहलाद को अपनी गोद में बिठाया और हिरणाकश्यप को आग लगाने को कहा हिरणाकश्यप प्रहलाद के भक्ति की शक्ति को नही जानता था फिर भी आग से प्रतिरक्षित होलिका जलने लग गयी और उसके पापो ने उसका नाश कर दिया जब आग बुझी तो प्रहलाद  उस जली हुयी जगह के मध्य अभी भी ध्यान में बैठा हुआ था जबकि होलिका कही भी नजर नही आयी.
अब हिरणाकश्यप भी घबरा गया और प्रहलाद को ध्यान से खीचते हुए ले गया और चिल्लाते हुए बोला “तुम कहते हो तुम्हारा विष्णु हर जगह पर है , बताओ अभी विष्णु कहा पर है  ? वो पेड़ के पीछे है या मेरे महल में है या इस स्तंभ में है बताओ ?
प्रहलाद ने अपने पिता की आँखों में आँखे मिलाकर कहा  “हां पिताश्री , भगवान विष्णु हर जगह पर है ”
क्रोधित हिरणाकश्यप ने अपने गदा से स्तम्भ पर प्रहार किया और गुस्से से कहा “तो बताओ वो कहा है “
हिरणाकश्यप दंग रह गया और देखा कि वो स्तम्भ चकनाचूर हो गया और उस स्तम्भ से एक क्रूर पशु निकला जिसका मुंह शेर का और शरीर मनुष्य जैसा था
. हिरणाकश्यप उस आधे पशु और आधे मानव को देखकर पीछे हट गया तभी उस आधे पशु और आधे मानव ने जोर से कहा “मै नारायण का अवतार नरसिंह हु और मै तुम्हारा विनाश करने आया हु “ हिरणाकश्यप उसे देखकर जैसे ही बच कर भागने लगा तभी नरसिंह ने पंजो से उसे जकड़ दिया हिरणाकश्यप ने अपने आप को छुडाने के बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहा.
नरसिंह अब हिरणाकश्यप को घसीटते हुए दरवाजे की चौखट तक ले गया [जो ना घर में था और ना घर के बाहर  और उसे अपनी गोद में  बिठा दिया [जो ना आकाश में था और ना ही धरती पर  और सांझ के समय ना ही दिन और ना ही रात  हिरणाकश्यप को अपने पंजो नाहे अस्त्र ना ही शस्त्र  से उसका वध कर दिया| हिरणाकश्यप का वध करने के बाद दहाड़ते हुए नरसिंह सिंहासन पर बैठ गया.
सारे असुर ऐसे क्रूर पशु को देखकर भाग गये और देवताओ की भी नरसिंह के पास जाने की हिम्मत नही हुयी अब बिना डरे हुए प्रहलाद आगे बढ़ा और नरसिंहा से प्यार से कहा “प्रभु , मै जानता हु कि आप मेरी रक्षा के लिए आये हो ” नरसिंह ने मुस्कुराकर जवाब दिया “हां पुत्र मै तुम्हारे लिए ही आया हु , तुम चिंता मत करो तुम्हे इस कहानी का ज्ञान नही है कि तुम्हारे पिता मेरे द्वारपाल विजय है 
ब्रह्मांड में उड़ते हुए भगवान सरबेश्वर, नृसिंह देव के निकट आ पहुंचे और सबसे पहले अपने पंखों की सहायता से उन्होंने नृसिंह देव के क्रोध को शांत करने का प्रयत्न किया. लेकिन उनका यह प्रयत्न बेकार गया और उन दोनों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया. यह युद्ध करीब 18 दिनों तक चला.
जब भगवान सरबेश्वर ने इस युद्ध को समाप्त करने के लिए अपने एक पंख में से देवी प्रत्यंकरा को बाहर निकाला, जो नृसिंह देव को निगलने का प्रयास करने लगीं. नृसिंह देव, उनके सामने कमजोर पड़ गए, उन्हें अपनी करनी पर पछतावा होने लगा, इसलिए उन्होंने देवी से माफी मांगी.
शरब के वार से आहत होकर नृसिंह ने अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया और फिर भगवान शिव से यह प्रार्थना की कि वह उनकी चर्म को अपने आसन के रूप में स्वीकार कर लें.
भगवान शिव ने नृसिंह देव को शांत कर सृष्टि को उनके कोप से मुक्ति दिलवाई थी. नृसिंह और ब्रह्मा ने सरबेश्वर के विभिन्न नामों का जाप शुरू किया जो मंत्र बन गए.
तब सरबेश्वर भगवान ने यह कहा कि उनका अवतरण केवल नृसिंह देव के कोप को शांत करने के लिए हुआ था. उन्होंने यह भी कहा कि नृसिंह और सरबेश्वर एक ही हैं. इसलिए उन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता.
नरसिम्हा द्वादशी का महत्व-
1 शास्त्रों में भगवान विष्णु के बारह अवतारों के बारे में बताया गया है.
2 मान्यताओं के अनुसार नरसिम्हा द्वादशी के दिन भगवान् विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह एक खंभे को चीर कर प्रकट हुए थे.
3 भगवान् नरसिम्हा के अवतार में उनका आधा शरीर मनुष्य का है और आधा शेर का.
4 भगवान् विष्णु ने यही रूप धारण करके असुरों के राजा हिरण्यकशिप का संघार किया था.
5 उसी दिन से इस दिन ये पर्व मनाया जाता है.
6 शास्त्रों के अनुसार नरसिंह द्वादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या का पाप भी मिट जाता है.
7 नरसिंह द्वादशी का व्रत करने से मनुष्य को सांसारिक सुख, भोग और मोक्ष तीनों की प्राप्ति होती  है.
8 जो भी मनुष्य सच्चे मन से नृसिंह द्वादशी के दिन भगवान् नरसिंह का व्रत करता है उसके सात जन्मों के पाप खत्म हो जाते है और वो अपार धन-संपत्ति का मालिक होता है.
9 भगवान विष्णु ने नरसिम्हा अवतार धारण करके अपने परम भक्त प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो भी मनुष्य नरसिम्हा द्वादशी के दिन शुद्घ मन से उनका व्रत और पूजा करेगा उसकी सभी मनोकामनायें पूरी होंगी.
नरसिंह द्वादशी से जुडी विशेष बातें-
10 शास्त्रों में बताया गया है की नरसिंह द्वादशी के दिन जो भी मनुष्य सच्चे मन से भगवान नृसिंह की पूजा -अर्चना करता है उसके जीवन से धन की कमी दूर हो जाती है और सुख -समृद्धि की प्राप्ति होती है.
11 भगवान् नृसिंह की पूजा करने से शत्रुओं का भी नाश होता है.
12 जो भी मनुष्य सच्चे मन से भगवान नृसिंह की आराधना करता है उसके जीवन के सभी दुःख दूर हो जाते हैं.
ॐ जय नरसिंह हरे॥
अन्य आरती
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की.
वेद विमल यश गाऊँ मेरे प्रभुजी॥
पहली आरती प्रह्लाद उबारे,
हिरणाकुश नख उदर विदारे.
दूसरी आरती वामन सेवा,
 बलि के द्वार पधारे हरि देवा.
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की.
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे,
सहसबाहु के भुजा उखारे.
चौथी आरती असुर संहारे,
भक्त विभीषण लंक पधारे.
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की.
पाँचवीं आरती कंस पछारे,
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले.
तुलसी को पत्र कण्ठ मणि हीरा,
हरषि-निरखि गावें दास कबीरा.
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की.
वेद विमल यश गाऊँ मेरे प्रभुजी॥

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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