जन्म कुंडली में मंगल की अंतर्दशा का फल

जन्म कुंडली में मंगल की अंतर्दशा का फल

प्रेषित समय :21:15:38 PM / Mon, Jan 30th, 2023

*मंगल में मंगल- की अंतर्दशा हो तो भाइयों से विरोध, शत्रुओं से युद्ध, शत्रु-नाश, सत्ता एवं अधिकार का लाभ, शौर्य, साहस, यश तथा पराक्रम में वृद्धि, परस्त्री अथवा वेश्यागमन एवं रक्त-पित्त-पीड़ा. यदि मंगल १/४/५/७/९ /१० वें भाव में हो अथवा लग्नेश से युक्त हो तो धन, वैभव, सुख एवं पुत्र का लाभ. उच्चस्थ अथवा स्वक्षेत्री हो तो कृषि, गृह एवं धन का लाभ . यदि ६.८.१२वें भाव में पाप-ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो सर्प, चोर, राजा से भय तथा चर्म रोग . यदि द्वितीयेश या सप्तमेश हो तो शारीरिक कष्ट .

मंगल में राहु
की अन्तर्दशा हो तो अग्नि, शस्त्र, चोर तथा शत्रु से भय, अनेक विपत्तियाँ, धन-नाश, परदेश-वास, भयंकर-कष्ट रोग तथा शारीरिक पीड़ा. राहु उच्चस्थ, मूल त्रिकोणस्थ, शुभ-ग्रह से दृष्ट अथवा १/४/५/७/६/१० वें भाव में हो तो राज-सम्मान, कृषि, गृह, पुत्र का लाभ, व्यवसाय में सफलता, परदेश-गमन . यदि पाप ग्रह से युक्त होकर ६/८/१२ वें भाव में हो तो राजा तथा चोर से भय एवं क्षय आदि रोग. यदि द्वितीय भाव में हो तो धन-राश. यदि राहु द्वितीयेश अथवा सप्तमेश में हो तो अल्प मृत्यु-भय . *मंगल में गुरु* की अन्तर्दशा हो तो राजा द्वारा धन-लाभ, स्त्री, पुत्र, मित्र, वाहन सुखदेव-द्विज में श्रद्धा, पुण्य कर्म, तीर्थ यात्रा, उद्योग में यश, सत्कर्म, बल तथा में वृद्धि मतान्तर स-राजा से अल्प- भय . गुरु उच्चस्थ अथवा १|४|५/७I/९ ११/१२वें भाव में हो तो धन-धान्य की वृद्धि, शासनाधिकार की प्राप्ति, स्त्री, पुत्र, तथा प्रसिद्धि का लाभ. यदि मंगल १|४|५|७|६|१०|११वें भाव में हो तो गृह, कृषि तथा व्यवसाय में वृद्धि, उद्योग का सफल, स्त्री-पुत्र, सुख, राज-सम्मान, आरोग्य तथा से यश लाभ. गुरु ६/८/१२व भाव में नीचस्थ, अस्तंगत अथवा पाप-ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो चोर तथा सर्प से पीड़ा, भ्रातृ-नाश, उन्मत्तता, एवं पित्त-विकार आदि

मंगल में शनि
 की अन्तर्दशा हो तो स्त्री, पुत्र एवं परिवारजनों मृत्यु-तुल्य-कष्ट, स्थान परिवर्तन की इच्छा, धन सम्बन्धी रुकावटें, व्यवसाय में हानि, पीड़ा, नौकरी में निम्न-स्थिति, सांसारिक त्रास, गार्हस्थ्य में संकट, हानि तथा अनेक प्रकार के कष्ट. शनि उच्चस्थ, मूल-त्रिकोणस्थ, स्वक्षेत्री अथवा १/४/५/७/९.१०वें भाव में स्थित हो तो राज-सुख, यश एवं पुत्र-पौत्र की वृद्धि . शनि नीचस्थ, शत्रुक्षेत्री अथवा ६/८/१२व भाव में हो तो धन-धान्य का नाश, कारावास तथा चिन्ता . शनि द्वितीयेश अथवा सप्तमेश हो तो मृत्यु . यदि ६/८/१२वें भाव में स्थित तथा पापग्रह से दृष्ट हो तो भी मृत्यु .

*मंगल में बुध
की अन्तर्दशा में शत्रु, रोग, चोर, अग्नि तथा राजा से भय, स्त्री-पुत्र तथा मित्रों से वियोग, किसी प्रकट अथवा गुप्त-शत्रु से त्रास, स्थावर-सम्पत्ति की हानि, स्वजनों से अपमान, किसी अत्यन्त क्रूर मनुष्य द्वारा मानसिक स्थिति में गिरावट तथा अल्प-सुख. यदि बुध १|४|५|७|६|१०वें भाव में हो तो सुन्दर कन्या-सन्तति का लाभ, उत्तम भोजन, न्याय तथा धन में प्रेम तथा यश-लाभ. बुध नीचस्थ, अस्त तथा ६.८.१२वें भाव में हो तो स्त्री तथा पुत्र की मृत्यु, बन्धु-बान्धवों का नाश, कठिन कारावास, मान-हानि, हृदय रोग तथा अनेक प्रकार के कष्ट. मंगल पाप ग्रह से युक्त होकर, ६/८/१२वें भाव में हो तो मान-हानि. बुध द्वितीयेश या सप्तमेश हो तो महा-व्याधि

*मंगल में केतु
 की अन्तर्दशा में बादल, बिजली, अग्नि, चोर तथा शस्त्र आदि से भय एवं कष्ट, गण्डान्तर-योग, मृत्यु-काल कष्ट, धन-नाश, स्त्री तथा सन्तान को कष्ट, व्यवसाय में हानि तथा अनेक दुःख . केतु १.४.५.७/९/१०/११वें भाव में शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो धन, दुत्र एवं भूमि का लाभ, उच्चपद की प्राप्ति एवं सम्मान. मंगल केतु से ६/८/१२ वें भाव में पाप ग्रह से युक्त हो तो पुत्र तथा स्त्री का कष्ट, भय, अविश्वास एवं व्याधि .

*मंगल में शुक्र
की अन्तर्दशा में व्यसन, रोग, धन, वाहन तथा परिजनों की
हानि, स्त्री-हानि, नीच संगति, निराधार स्थिति, परदेश यात्रा तथा अनेक व्यवसायों की ओर प्रवृत्ति मतान्तर से-शस्त्र- भय, शारीरिक व्याधि, उपद्रव एवं सकट . शुक्र उच्चस्थ मूल-त्रिकोणस्थ, स्वक्षेत्री अथवा १/४/५/७/६/१०वें भाव में हो तो राज्य लाभ, आभूषण एवं सुख-लाभ. शुक्रेश लग्न से युक्त हो तो पुत्र, स्त्री तथा ऐश्वर्य की वृद्धि . यदि शुक्र मंगल से १/२/४/५/७/६/१०/११वें स्थान में हो तो सन्तान, धन, सुख, उत्सव, तोर्थ-यात्रादि का लाभ तथा शुभ फल . शुक्र यदि दशमेश से युक्त हो तो धर्मशाला जलाशय आदि का निर्माण एवं परोपकार के कार्य मंगल से ६/८/१२वें भाव में हो तो धन-नाश, सन्तान- चिन्ता, मिथ्यापवाद, कलह, झंझट तथा अनेक प्रकार के कष्ट .

*मंगल में सूर्य
 की अन्तर्दशा में राज्य सम्मान, व्यवसाय से धन-लाभ, युद्ध में शौर्य-प्रदर्शन से विजय, प्रताप में प्रभाव में अत्यधिक वृद्धि, वाद-विवाद में सफलता तथा वाहन-सुख . मतान्तर से—दुर्गम-स्थान, वन, पर्वत आदि में भ्रमण की रुचि, पिता तथा भाइयों से विरोध, राजा के साथ शर्त लगाने पर विजय, राजा से वैमनस्य तथा राजदण्ड . सूर्य उच्चस्थ, मूलत्रिकोणस्थ, स्वक्षेत्री अथवा १/४/५/७/९/१०वें भाव में हो तो वाहन, धन, धान्य, पुत्र एवं यश का लाभ . सूर्य मंगल से ६.८.१२वें भाव में पाप-ग्रह अथवा दृष्ट हो तो धन-राश, कार्य में विघ्न, कष्ट, पीड़ा, सन्ताप तथा व्याधि .

युक्त
मंगल में चन्द्रमा की अन्तर्दशा में हीरा, मोती, आभूषण, धन, राज-सम्मान, उच्च्पद, पुत्र, स्त्री-सुख, विषयादि-सुख तथा अन्य अनेक प्रकार के सुखों का लाभ, नित्य-उत्सव, संकट-नाश एवं कफ-विकार आदि . चन्द्रमा उच्चस्थ, मूल-त्रिकोणस्थ, स्वक्षेत्री अथवा शुभ-ग्रह से युक्त हो तो माता-पिता का सुख, विवाह, उच्चपद, राज्य-लाभ, सम्मान तथा मनोरथ-सिद्धि . चन्द्रमा नीचस्थ, अशुभ राशिस्थ अथवा अस्तंगत होकर मंगल से ६/८/१२वें स्थान में हो तो धन, स्त्री, पुत्र, पशु, धान्य का नाश, चोर-भय, कष्ट आदि . चन्द्रमा द्वितीयेश अथवा सप्तमेश हो तो मृत्यु. 

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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