मुंबई. बिना पूर्व सूचना के विधानसभा चुनाव लडऩे के कारण रेलवे अस्पताल में नर्स की नौकरी से निकाली गई महिला कर्मचारी को बॉम्बे हाई कोर्ट ने राहत दी है. कोर्ट ने रेलवे प्रशासन को निर्देश दिया है कि 26 साल तक सेवा देने वाली कर्मचारी को बर्खास्त करने के अलावा कोई और दंड दे.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एस.वी. गंगापुरवाला व न्यायमूर्ति एस.वी. मारने की खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों व परिस्थितियों पर गौर करने के बाद कहा कि इस मामले में कर्मचारी को जो दंड दिया गया है, वह हमारे विवेक को झकझोरता है. लिहाजा, सरकारी कर्मचारी को नौकरी से निकालने से जुड़े आदेश को रद्द किया जाता है. खंडपीठ ने संबंधित अथॉरिटी को इस संबंध चार सप्ताह में फैसला लेने का निर्देश दिया है.
2009 में खेड से चुनाव लडऩे वाली स्वाति निलेगांवकर को 2013 में मिसकंडक्ट (गलत आचरण) के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था. उस वक्त वह भायखला स्थित डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अस्पताल में कार्यरत थीं. रेलवे की डिसिप्लिनरी अथॉरिटी के मुताबिक, निलेगांवकर ने न सिर्फ चुनाव लडऩे से जुड़ी जानकारी को छुपाया था, बल्कि 25 लाख की उस अचल संपत्ति की भी सूचना नहीं दी थी, जिसका खुलासा चुनाव के नामांकन फॉर्म में किया था. यह निलेगांवकर की गंभीर गलती को दर्शाता है, इसलिए नौकरी से बर्खास्त किया जाता है.
वीआरएस के लिए किया था आवेदन
अथॉरिटी के फैसले के खिलाफ निलेगांवकर रेलवे बोर्ड तक गई थी, लेकिन जब वहां से राहत नहीं मिली, तो उन्होंने केंद्रीय न्यायाधिकरण (कैट) में आवेदन किया. कैट ने 2019 में निलेगांवकर के आवेदन को खारिज कर दिया. कैट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. रेलवे कर्मचारी के वकील ने दावा किया कि निलेगांवकर को जो सजा सुनाई गई है, वह काफी कठोर है. इसके चलते वह सेवानिवृत्ति से जुड़े लाभ व पेंशन तक से वंचित हो गई हैं. चुनाव लडऩे से पहले निलेगांवकर ने रेलवे प्रशासन के सामने वीआरएस के लिए आवेदन किया था.
इस आवेदन के 8 दिन बाद निलेगांवकर ने चुनाव के लिए नामांकन भरा था. निलेगांवकर ने सिर्फ वीआरएस के आवेदन पर निर्णय होने से पहले चुनाव लड़ा है. इस लिहाज से उनको नौकरी से हटाने का फैसला अत्यधिक कठोर है. वहीं, रेलवे प्रशासन की वकील ने कहा कि सरकारी कर्मचारी का बिना सूचना दिए चुनाव लडऩा बेहद गंभीर गलती है.
कर्मचारी ने चुनाव लडऩे की इच्छा को नहीं छुपाई
दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का वीआरएस के लिए आवेदन करना यह दर्शाता है कि उसने चुनाव लडऩे की इच्छा को छुपाया नहीं था. वीआरएस पर निर्णय लेने से पहले उसे ड्यूटी जॉइन करने के लिए कहा गया, तो उसने ड्यूटी भी जॉइन कर ली. जहां तक बात संपत्ति के खुलासे की है, तो याचिकाकर्ता पर यह आरोप नहीं है कि उसने अचल संपत्ति अनुचित तरीके से अर्जित की है, इसलिए संपत्ति के मुद्दे को गंभीर नहीं माना जा सकता है. याचिकाकर्ता का निर्णय लेने का फैसला क्षणिक प्रेरणा से प्रेरित दिख रहा है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-NPS के खिलाफ रेलवे सहित सभी केेंद्रीय संस्थानों के कर्मचारियों का विशाल मशाल जुलूस 21 मई को
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