महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन के उबाल से भाजपा को फायदा!

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन के उबाल से भाजपा को फायदा!

प्रेषित समय :20:58:03 PM / Wed, Nov 8th, 2023
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नवीन कुमार
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की आग ऐसे समय में रह-रहकर उबाल में आ रही है जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार राजनीतिक अस्थिरता के ग्रहण से उबरने की कवायद में लगी हुई है और अगले साल लोकसभा के साथ स्थानीय निकायों और विधानसभा के भी चुनाव होने वाले हैं. इस मराठा आरक्षण आंदोलन को चुनावी राजनीति के तराजू पर ही देखा जा रहा है. इस पर शिंदे सरकार के साथ विपक्ष भी अपने फायदे को तौल रहा है. लेकिन इस पूरे आंदोलनात्मक घटनाक्रम में भाजपा की भूमिका बिल्कुल अलग है. भाजपा ने इस आंदोलन से विपक्ष की तरह खुद को सक्रिय रूप से जोड़कर नहीं रखा है. उसे अपना बड़ा फायदा दिख रहा है. इसलिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस आंदोलन पर अपनी नजर टिकाकर रखा हुआ है. राज्य में भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले देवेंद्र फडणवीस चुनावी राजनीतिक लाभ की रूपरेखा समय-समय पर भाजपा के बड़े चाणक्य अमित शाह के सामने पेश कर रहे हैं. यही वजह है कि आंदोलन के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र दौरे पर आए तो उन्होंने मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर कुछ नहीं कहा. यह चौंकाने वाली घटना नहीं थी बल्कि भाजपा की सोची-समझी रणनीति के तहत मोदी ने यह कदम उठाया था. हालांकि, मराठा आरक्षण के लिए उपोषण पर बैठे मराठा नेता मनोज जरांगे-पाटिल ने मोदी की चुप्पी की जमकर आलोचना करते हुए कहा था कि मोदी के कुछ नहीं बोलने का मतलब भाजपा मराठा को आरक्षण देना नहीं चाहती है. लेकिन इससे राज्य की भाजपा विचलित नहीं हुई. शायद भाजपा को अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा है कि किस तरह से इस आंदोलन से चुनावी फायदा उठाया जा सकता है. याद दिला दें कि 2014 के चुनावों से पहले अपने चुनावी लाभ के लिए राज्य की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठा और मुस्लिमों को आरक्षण देने का अध्यादेश लाया था. लेकिन इसका चुनावी फायदा कांग्रेस और एनसीपी को नहीं हुआ था बल्कि मराठों का समर्थन भाजपा ने अपने पक्ष में जुटाकर राज्य में अपनी सरकार बना ली थी. यह दीगर बात है कि भाजपा मराठों को आरक्षण दिलाने में अब तक नाकाम है. बावजूद इसके राजनीतिक और कानूनी पेंच की वजह से अगले चुनावों में भी भाजपा मराठों के वोट पाने में सफल होने की उम्मीद पाले हुए है.

आरक्षण की मांग के साथ एक मराठा लाख मराठा के नारे के साथ मराठों ने अपनी ताकत का इजहार तत्कालीन मुख्यमंत्री फडणवीस के कार्यकाल के दौरान किया था. लेकिन फडणवीस ने अपनी रणनीति के तहत काम किया और मराठा को आरक्षण नहीं मिलने का सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया. मराठा को आरक्षण देने के लिए जो अध्यादेश लाया गया था वह सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं पाया और मराठा आरक्षण कानूनी पेंच में फंस गया. तत्कालीन फडणवीस सरकार के बाद उद्धव ठाकरे की सरकार ने भी मराठा आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट में मेहनत की और उसे भी मुंह की खानी पड़ी थी. अब शिंदे सरकार ने भी कानूनी अड़चनों को दूर करके फिर से सुप्रीम कोर्ट की ओर रूख करने का फैसला लिया है. इसके लिए पूर्व न्यायाधीशों की मदद ली जा रही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट जाने से पहले ही यह आशंका जाहिर की जा रही है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को बार-बार नकारा है तो फिर से वही रोना रोने पर सुप्रीम कोर्ट कैसे पिघल सकता है. सुप्रीम कोर्ट भी कानूनी दायरे को लांघ नहीं सकता है. विपक्ष का मानना है कि मराठा को आरक्षण तभी मिल सकता है जब केंद्र सरकार इस पर फैसला लेगा और कानूनी अड़चनों को दूर करेगा. इस संदर्भ में पहले महाराष्ट्र के सभी दलों ने केंद्र से गुहार लगायी थी. लेकिन केंद्र ने कोई सकारात्मक रूख जाहिर नहीं किया है. इस समय भी सभी दल मराठा को आरक्षण देने के पक्ष में है और मोदी से सहयोग करने की अपील की है. लेकिन मोदी का रूख शून्य दिख रहा है. मराठों को आरक्षण की उम्मीद न दिखने के कारण राज्य में आंदोलन हिंसक भी हुआ है और आरक्षण की मांग को लेकर लगभग दो दर्जन मराठा युवाओं ने आत्महत्या भी कर ली है. यह शिंदे सरकार के लिए खतरनाक स्थिति है. मुख्यमंत्री शिंदे ने आश्वसनों के बल पर जरांगे-पाटिल का उपोषण तो खत्म करा लिया है. लेकिन दो महीने के अंदर आश्वासन पूरा नहीं हुआ तो जरांगे-पाटिल फिर से आंदोलन के लिए मैदान में उतर आएंगे. तब तक राज्य में लोकसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ जाएगी और मराठा आरक्षण का मुद्दा यूं ही एक तमाशा बनकर रह जाएगा.

मराठा आरक्षण आंदोलन नया नहीं है. यह देश की आजादी के बाद से ही चला आ रहा है. तकनीकी तौर पर मराठा कोई जाति नहीं है. यह एक समुदाय है और इस समुदाय में योद्धा कौम के लोग ज्यादा हैं. मराठा में आर्थिक रूप से संपन्न और आर्थिक रूप से कमजोर दोनों तरह के लोग हैं. इसमें खेती करने वाले किसान भी हैं. लेकिन जो आर्थिक रूप से समृद्ध लोग हैं वो खुद को कमजोर दिखाना नहीं चाहते हैं जिससे यह भी समस्या उत्पन्न हुई है कि सभी मराठा को आरक्षण मिलना मुश्किल है. आरक्षण संपन्न मराठा भी चाहते हैं. मराठा में जाति के तौर पर कुनबी है जो ओबीसी में आरक्षण का लाभ ले रहा है. जरांगे-पाटिल मराठा को कुनबी का प्रमाण पत्र देकर आरक्षण का लाभ देने की मांग कर रहे हैं. यह कानूनी तौर पर संभव नहीं है. अगर मराठा को कुनबी मान लिया जाता है तो इससे कुनबी और ओबीसी का हक मारा जाएगा. इसका विरोध ओबीसी समाज कर रहा है. इस विरोध से राज्य में जो राजनीतिक स्थिति पैदा हो रही है उसमें मराठा और ओबीसी के बीच कटुता स्पष्ट दिख रहा है. इसका राजनीतिक फायदा भाजपा उठाना चाहती है. राज्य में भाजपा ने शिंदे के नेतृत्व में सरकार तो बना ली है और उसमें शरद पवार के भतीजे अजित पवार के गुट को भी शामिल कर लिया है. लेकिन शिवसेना से बगावत करने वाले शिंदे सहित उनके गुट के विधायक अपात्रता के मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. अब अजित गुट भी इसी तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में शिंदे सरकार अस्थिरता की स्थिति में है. इस कानूनी पचड़े के कारण शिंदे और अजित गुट अपने अस्तित्व को बचाने में लगे हुए हैं तो भाजपा बेखौफ होकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए बूथ स्तर पर काम कर रही है ताकि उसे अगले चुनाव में अपने दम पर सरकार बनाने में तकलीफ न हो और मोदी के लिए भी ज्यादा से ज्यादा लोकसभा की सीटें जीतने में कामयाब हो सके. भाजपा को मराठा और ओबीसी की लड़ाई में फायदे के अलावा धनगर, मुस्लिम और सवर्ण की ओर से भी आरक्षण की मांग में भी राजनीतिक लाभ दिख रहा है. भाजपा को पता है कि मराठा को आरक्षण दिलाने से भी मराठा समाज सिर्फ भाजपा का नहीं हो सकता है. मराठा पहले से ही राजनीतिक रूप से बंटा हुआ है. कांग्रेस, भाजपा, शिवसेना और शरद पवार के साथ मराठा के लोग हैं. लेकिन मराठा आरक्षण आंदोलन के पीछे रणनीति यह है कि मराठा और ओबीसी को लड़ाकर ओबीसी के एक बड़े धड़ा को भाजपा के पक्ष में लाया जाए. महाराष्ट्र में बहुत से मराठा ओबीसी में हैं और सामान्य वर्ग में हैं. ऐसे में अब तक शरद पवार इसका लाभ उठाते रहे हैं. लेकिन इस मराठा आरक्षण आंदोलन से शरद पवार को अलग-थलग करने की चाल चली गई है. यह शरद पवार समझते हैं. इसलिए उन्होंने खुलकर कहा है कि ओबीसी का हक न मारते हुए मराठा को आरक्षण देना चाहिए. भाजपा ने शरद पवार खेमे से ओबीसी नेता छगन भुजबल को अपनी सरकार में शामिल किया है जो मोदी के लिए ओबीसी वोट जुटाएंगे. इधर महाराष्ट्र की चुनावी जमीन पर हकीकत कुछ ऐसी है-लोकसभा की 48 सीटों में से 20-22 सीटें और विधानसभा की 80-85 सीटों पर मराठा निर्णायक स्थिति में है. लोकसभा की 11 सीटें विदर्भ में है जिसमें से 10 सीटों पर भाजपा का कब्जा है. विधानसभा की 62 सीटों पर भी भाजपा मजबूत है. अब तो जरांगे-पाटिल के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि उनकी स्थिति गुजरात के हार्दिक पटेल की तरह होने वाली है. हार्दिक की तरह ही जरांगे-पाटिल भी पहले कांग्रेस में थे. मराठा आरक्षण आंदोलन से जरांगे-पाटिल की राजनीतिक हैसियत बन चुकी है. मराठा वोट के लिए लोकसभा चुनाव में भाजपा जरांगे-पाटिल को चुनाव मैदान में उतार सकती है और इससे गुजरात के पाटीदार आरक्षण आंदोलन की तरह मराठा आरक्षण का आंदोलन भी ठंडा करने की कोशिश हो सकती है. इसे राजनीतिक खेल की तरह देखा जा सकता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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