प्रदीप द्विवेदी (व्हाट्सएप- 8302755688).
ज्योतिष और अंकशास्त्र का गहरा संबंध है.
ग्रहों में तीन ग्रह- सूर्य, राहु और केतु ही निर्णायक माने जाने चाहिए, जो.... सूर्य वर्तमान को, राहु भविष्य को और केतु भूतकाल को दिखाता है, शेष ग्रह सूर्य पर निर्भर हैं.
क्योंकि सूर्य के प्रकाश में सब कुछ साफ नजर आता है, इसलिए वर्तमान कोई भी देख सकता है, लेकिन.... छाया ग्रह राहु-केतु अंधकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए भूत और भविष्य को देखना, जानना आसान नहीं है, जिनका केतु कारक होता है, वे भूतकाल की अच्छी जानकारी दे सकते हैं, तो जिनका राहु अच्छा हो वे सटीक भविष्यवाणी कर सकते हैं, इसका यह अर्थ भी है कि जिनका सूर्य प्रबल है वे वर्तमान के अच्छे मार्गदर्शक हो सकते है, तो जिनका राहु कारक है वे भविष्य के लिए अच्छे मार्गदर्शक हो सकते हैं.
गोचरवश जब सूर्य अच्छा हो तो व्यक्ति का वर्तमान सफलता प्रदान करता है, कर्म के सापेक्ष बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं, जबकि गोचरवश जब सूर्य अच्छा नहीं हो तो व्यक्ति को कर्म के सापेक्ष अच्छे परिणाम नहीं मिलते हैं, यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य कारक है, तो उसे अच्छे समय में बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं, तो खराब परिणाम में कमी आती है, जबकि सूर्य अकारक होने पर शुभ परिणाम में कमी आती है, तो अशुभ परिणाम में बढ़ोतरी होती है.
इसी तरह जब गोचरवश केतु अच्छा हो तो प्रारब्ध का अच्छा फल मिलता है, लेकिन गोचरवश केतु खराब हो तो पिछले जन्म के पापकर्म के खराब परिणाम मिलते हैं.
गोचरवश राहु अच्छा हो तो सुनहरे भविष्य की संभावना बनती है, तो राहु अच्छा नहीं होने पर भविष्य की आशंकाएं बेचैन कर देती हैं.
क्योंकि.... अंक 1 से 9 तक हैं तो यह चक्र 9 साल में पूरा हो जाता है, लेकिन.... राहु-केतु 18 वर्ष में चक्र पूरा करते हैं, इसलिए जब अंकशास्त्र को ज्योतिष से जोड़ा जाता है तो चक्र 18 वर्ष का ही देखना चाहिए.
इस दृष्टि से किसी भी व्यक्ति के लिए 2024 कैसा रहेगा यह जानके लिए अतीत में झांकना होगा कि 2006 कैसा था?
क्योंकि.... वर्ष 2006 में सूर्य, राहु और केतु का जो गोचर था, लगभग वैसा ही गोचर 2024 में रहेगा तथा अंक योग भी वैसा ही रहेगा!
वर्ष 2006 में राहु अधिकतम समय मीन राशि में था, तो केतु कन्या राशि में, जबकि 2024 में भी राहु मीन, तो केतु कन्या राशि में है.
वर्ष 2024 का योग 8 है, जिसका मतलब है कि यह शनि के प्रभाववाला वर्ष है, इसलिए जिनके लिए शनि कारक है, उन्हें अच्छे परिणाम मिलेंगे, तो अकारक है, उन्हें सतर्क रहने की जरूरत है, यदि गोचरवश भी शनि अच्छा है, तो शुभ परिणाम में बढ़ोतरी होगी, तो गोचरवश शनि अच्छा नहीं है, तो परिणाम को लेकर ज्यादा आशान्वित नहीं रहें.
शनि के मित्र-शत्रु देखें तो.... सूर्य पुत्र शनि के मित्र ग्रहों में बुध, राहु और शुक्र आते हैं, सूर्य, चंद्रमा और मंगल, इसके शत्रुओं की श्रेणी में आते हैं, जबकि गुरु, केतु को इसके समभाव का माना जाता है.
इस दृष्टि से देखें तो 2024.... जिनकी जन्म तारीख 8, 17, 26, 5, 14, 23, 4, 13, 22, 6, 15, 24 है उनके लिए 2024 बहुत अच्छा है, जिनकी जन्म तारीख 3, 12, 21, 30, 7, 16, 25 है उनके लिए 2024 साधारण है, तो 1, 10, 19, 28, 2, 11, 20, 29, 9, 18, 27 है उन्हें कर्म के सापेक्ष परिणाम कम प्राप्त हो सकता है.
राशि के नजरिए से देखें तो 2024 कुंभ, मकर, कन्या, मिथुन, तुला, और वृषभ राशिवालों के लिए अच्छा है, धनु और मीन राशिवालों के लिए साधारण है, तो सिंह, कर्क, वृश्चिक और मेष राशिवालों को मिले जुले फल प्रदान कर रहा है, खासकर कर्क राशि और जिनकी जन्म तारीख 2, 11, 20, 29, 4, 13, 22 है, उन्हें जनवरी, फरवरी, मार्च, जुलाई, अगस्त और सितंबर में अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं!
यह वर्ष महावीर हनुमान की आराधना का वर्ष है, क्योंकि शनि महाराज बजरंगबली के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते हैं, इसलिए इस वर्ष.... जय बोलो हनुमान की, जय बोलो!
* शनि की तीन स्थितियां है- कारक, अकारक और सम!
* जीवन में शनि अकारक है तो सहकर्मियों का सहयोग नहीं मिलता है, घर क्षतिग्रस्त हो जाता है, शुभ कार्य धीमी गति से होते हैं, शरीर के विविध अंगों के बाल झड़ने लगते हैं आदि.
* अकारक शनि होने पर शनि से संबंधित वस्तुओं... लोहा, काली उड़द, कोयला, तिल, जौ, काले वस्त्र, चमड़ा, काला सरसों आदि का यथाशक्ति दान करना चाहिए.
* शनिदेव, राम भक्त हनुमान के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते हैं इसलिए शनि द्वारा प्रदत्त परेशानियों से राहत के लिए नियमित रूप से महावीर हनुमान की पूजा-अर्चना करें!
भावार्थ- श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय हैं.
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा.नारद सारद सहित अहीसा॥
भावार्थ- श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुणगान करते हैं.
जम कुबेर दिकपाल जहां ते.कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥
भावार्थ- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पण्डित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते.
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा.राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
भावार्थ- आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बनें.
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना.लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
भावार्थ- आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बनें, इसको सब संसार जानता हैं.
जुग सहस्त्र योजन पर भानू .लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
भावार्थ- जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे. दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया.
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं.जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
भावार्थ- आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है.
दुर्गम काज जगत के जेते.सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
भावार्थ- संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते हैं.
राम दुआरे तुम रखवारे.होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
भावार्थ- श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ हैं.
सब सुख लहै तुम्हारी सरना.तुम रक्षक काहू को डरना॥
भावार्थ- जो भी आपकी शरण में आते हैं, उन सभी को आनन्द प्राप्त होता हैं, और जब आप रक्षक हैं, तो फिर किसी का डर नहीं रहता.
आपन तेज सम्हारो आपै.तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भावार्थ- आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते हैं.
भूत पिशाच निकट नहिं आवै.महावीर जब नाम सुनावै॥
भावार्थ- जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नहीं भटक सकतें.
नासै रोग हरै सब पीरा.जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
भावार्थ- वीर हनुमान जी! आपका निरन्तर जप करने से सब रोग चले जाते हैं, और सब पीड़ा मिट जाती हैं.
संकट ते हनुमान छुड़ावै.मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
भावार्थ- हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आप में रहता हैं, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते हैं.
सब पर राम तपस्वी राजा.तिन के काज सकल तुम साजा॥
भावार्थ- तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज में कर दिया.
और मनोरथ जो कोई लावै.सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥
भावार्थ- जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा फल मिलता हैं जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती.
चारों जुग परताप तुम्हारा.है परसिद्ध जगत उजियारा॥
भावार्थ- चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान हैं.
साधु सन्त के तुम रखवारे.असुर निकन्दन राम दुलारे॥
भावार्थ- हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं.
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता.अस बर दीन जानकी माता॥
भावार्थ- आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ हैं, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियाँ (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व) और नौ निधियाँ दे सकते हैं.
राम रसायन तुम्हरे पासा.सदा रहो रघुपति के दासा॥
भावार्थ- आप निरन्तर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है.
तुम्हरे भजन राम को पावै.जनम जनम के दुख बिसरावै॥
भावार्थ- आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते हैं, और जन्म जन्मान्तर के दुःख दूर होते हैं.
अन्तकाल रघुबर पुर जाई.जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
भावार्थ- अन्त समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते हैं और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे.
और देवता चित्त न धरई.हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
भावार्थ- हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती.
संकट कटै मिटै सब पीरा.जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
भावार्थ- हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती हैं.
जय जय जय हनुमान गोसाई.कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
भावार्थ- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए.
जो शत बार पाठ कर सोई.छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
भावार्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परम आनन्द मिलेगा.
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा.होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
भावार्थ- जो भी व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी. भगवान शंकर ने यह लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी.
तुलसीदास सदा हरि चेरा.कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥
भावार्थ- हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है. इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए.
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप.
राम लखन सीता सहित,ह्रदय बसहु सुर भूप॥
भावार्थ- हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है. हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली-एनसीआर में कोहरा, 134 फ्लाइटस लेट, एमपी के 6 शहरों में ओले गिरने के आसार
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