नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने भारत-विरोधी जॉर्ज सोरोस से जुड़े संगठित अपराध व भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट ओसीसीआरपी की एक रिपोर्ट को अप्रामाणिक करार दिया. जिस पर मीडिया ने अडानी समूह की कंपनियों द्वारा स्टॉक हेरफेर के हिंडनबर्ग रिसर्च के दावे को विश्वसनीयता देने के लिए भरोसा किया था.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला व न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपने मामले पूरी तरह से जांच रिपोर्टिंग में शामिल तीसरे पक्ष के संगठन ओसीसीआरपी की रिपोर्ट से निकाले गए निष्कर्षों पर रखे हैं. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने दावों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है. 24 नवंबर को जब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं व सेबी की दलीलों की सुनवाई पूर्ण की तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया था कि सेबी ने जांच के उद्देश्य से अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए ओसीसीआरपी को लिखा था.
हालांकि ओसीसीआरपी ने यह कहते हुए जवाब दिया कि नियामक प्रशांत भूषण द्वारा संचालित एक एनजीओ से वही दस्तावेज़ प्राप्त कर सकता है जिनका हमने उपयोग किया था. फैसला लिखते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी विशेष नियामक द्वारा व्यापक जांच पर सवाल उठाने के लिए तीसरे पक्ष के संगठनों द्वारा समाचार पत्रों के लेखों या रिपोर्टों पर निर्भरता आत्मविश्वास को प्रेरित नहीं करती है. स्वतंत्र समूहों द्वारा की गई ऐसी रिपोर्टें या समाचार पत्रों द्वारा खोजी अंशों की तरह कार्य कर सकते हैं. सेबी या विशेषज्ञ समिति के समक्ष इनपुट. हालांकि उन्हें सेबी द्वारा जांच की अपर्याप्तता के निर्णायक सबूत के रूप में भरोसा नहीं किया जा सकता है. याचिकाकर्ता यह दावा नहीं कर सकते कि समाचार पत्रों में एक अप्रमाणित रिपोर्ट को एक वैधानिक नियामक की जांच पर विश्वसनीयता होनी चाहिए जिसकी जांच को ठोस सामग्री या सबूत के आधार पर संदेह में नहीं डाला गया है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-OMG: दिल्ली मेट्रो में कपल की गंदी हरकत, जूते में कोल्ड ड्रिंक डाल दोनों ने मजे से पी
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