अभिमनोज. सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छी टिप्पणी की है कि- अदालतों में याचिका दाखिल करते समय वादी की जाति और धर्म का उल्लेख होता है, दशकों से चली आ रही यह परिपाटी बंद होनी चाहिए!
उल्लेखनीय है कि दो जजों- न्यायमूर्ति हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ की इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के बाद देशभर की अदालतों में बदलाव आने की उम्मीद जताई जा रही है.
खबरों की मानें तो.... सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की खंडपीठ ने साफ निर्देश दिया है कि- अदालतों में याचिका दाखिल करने वाले वादियों की जाति या धर्म का जिक्र नहीं किया जाए, यही नहीं, देशभर की हाईकोर्ट और निचली अदालतों को भी इस प्रथा को बंद करने का निर्देश दिया गया है.
इस निर्देश में देश के सभी उच्च न्यायालयों से कहा गया है कि- हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आने वाले अधीनस्थ न्यायालयों और हाईकोर्ट में दायर किसी भी याचिका में पक्षकारों की जाति और धर्म का उल्लेख न किया जाए, कोर्ट ने कहा कि इसका कोई कारण नहीं दिखता कि वादी की जाति-धर्म का उल्लेख होना चाहिए, इस परिपाटी को तत्काल बंद करना होगा, ऐसी प्रथा को त्यागना ही होगा.
इतना ही नहीं, अदालत ने स्पष्ट किया कि- इस संबंध में एक सामान्य आदेश भी पारित किया जाएगा कि- अब से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में पक्षकारों की जाति-धर्म का उल्लेख नहीं किया जाएगा, भले ही निचली अदालतों में ऐसे विवरण पहले से मौजूद हों, इसे अपील के दौरान दोहराया नहीं जाएगा.
उल्लेखनीय है कि कोर्ट का यह निर्देश राजस्थान से जुड़े मुकदमे के दौरान आया, राजस्थान की फैमिली कोर्ट में लंबित वैवाहिक मामले को दूसरी अदालत में भेजने की याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि वादी की जाति-धर्म का उल्लेख बंद किया जाए.
खबरें हैं कि जब इस पर अदालत ने प्रश्नचिन्ह लगाया कि- दोनों पक्षों की तरफ से प्रस्तुत अपील में पति-पत्नी दोनों की जाति का उल्लेख है, तो इस पर याचिकाकर्ता के एडवोकेट ने कोर्ट को बताया कि निचली अदालतों के समक्ष दायर दस्तावेजों में बदलाव पर ऊपरी अदालत की रजिस्ट्री आपत्ति उठाती है, क्योंकि दोनों पक्षों की जाति का उल्लेख निचली अदालत में भी हुआ, इसलिए स्थानांतरण की अपील के लिए दायर याचिका में उनकी जाति का उल्लेख करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था.
उनकी दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने निर्देश दिया कि- इस आदेश पर बार के सदस्यों के साथ-साथ रजिस्ट्री भी तत्काल ध्यान दे, इसके अलावा यह भी कहा गया कि- इस आदेश की एक प्रति संबंधित रजिस्ट्रार के समक्ष भी रखी जाएगी और देशभर में आदेश की कड़ाई से अनुपालन के लिए सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को भी आदेश की एक प्रति भेजी जाएगी.
यह बहुत अच्छा आदेश है क्योंकि न्याय के मामले में किसी भी पक्ष के जाति-धर्म से कानून प्रभावित नहीं होता है, जब तक कि जाति-धर्म से जुड़ा कोई मामला नहीं हो!
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https://palpalindia.com/2021/08/04/Delhi-Caste-based-census-banks-made-everyone-indebted-Blood-bank-made-everyone-relative-inter-caste-marriage-caste-reservation-news-in-hindi.html
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