हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है. माता शबरी भगवान राम की परम भक्त थीं. यह दिन मां शबरी की श्री राम के प्रति निस्वार्थ भक्ति भाव को समर्पित है. इस दिन मां शबरी की लोग पूजा करते हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान के सच्चे भक्तों की सेवा-सत्कार करने मात्र से प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं. अतः इस मान्यता के अधार पर इस दिन लोग माता शबरी की वंदना करते हैं और भक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. आइए जानते हैं आचार्य श्री गोपी राम से इस बार शबरी जयंती की तिथि कब से कब तक रहेगी.*
*शबरी जयंती की तिथि
*शबरी जयंती- 3 मार्च 2024 दिन रविवार
*सप्तमी तिथि प्रारंभ- 2 मार्च 2024 दिन शनिवार सुबह 7 बजकर 53 मिनट से शुरू.
*सप्तमी तिथि समापन- 3 मार्च 2024 दिन रविवार सुबह 8 बजकर 44 मिनट पर समाप्ति.
*शबरी जयंती पर इस विधि से करें पूजा पाठ
*शबरी जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान के बाद साफ वस्त्र धारण करें और सूर्य देव को अर्घ्य प्रधान करें. इसके बाद ईशान कोण में प्रभु श्री राम और माता शबरी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और विधि-विधान से पूजा करें. भगवान श्री राम और माता शबरी को धूप, दीप, गंध, पुष्प इत्यादि अर्पित करें. इस दिन मीठे बेर का भोग अवश्य लगाएं. इससे प्रभु श्री राम जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं. अंत में प्रभु श्री राम की आरती के साथ पूजा संपन्न करें.*
*शबरी जयंती पूजा विधि-
*•शबरी जयंती के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सबरीमाला मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है.
*•शबरी ने जिस श्रद्धा और आस्था के साथ श्री राम की भक्ति करके उनको पाया था. उसी भक्ति के साथ इस दिन शबरी और भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है.
*•इस दिन शबरी और भगवन विष्णु को बेर का भोग लगाया जाता है.
*•शबरी जयंती के दिन माता शबरी और भगवान् विष्णु को बेर का भोग लगाने के पश्चात पूरा परिवार बेर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है.
*•इस दिन भगवान विष्णु या शबरी की पूजा में लाल सिंदूर या कुमकुम का प्रयोग नहीं किया जाता है.
*•शबरी जयंती के दिन सफेद चंदन के प्रयोग से शबरी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.
*•ऐसा करने से शबरीमाला की पूजा सफल मानी जाती है.
*शबरी जयंती का धार्मिक महत्व
*भगवान राम की परम भक्तों की श्रेणी में जानी जाती हैं माता शबरी. रामायण के दौरान जब भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काट रहे थे. तब वह शबरी माता के आश्रम पधारे और उनको दर्शन दिए थे. शबरी माता ने भक्ति भाव से भगवान राम को बेर खिलाए थे, लेकिन उन्होंने पहले बेर को चखा क्योंकि वह चतिंत थीं कि प्रभु जो बेर खाएं वह मीठे होने चाहिए न की खट्टे. इस कारण उन्होंने बेर को चखा और जो मीठे बेर निकले उसे भगवान राम को खाने के लिए दिया. भगवान राम ने बिना संकोच प्रेम पूर्वक बेर को अंनदित हो कर खाया. शबरी जयंती वही दिन है जब भगवान राम उनके आश्रम पधारे थे और बेर खाए थे.*
*इस जगह है शबरी माता का आश्रम
*वर्तमान समय में यह स्थान कर्नाटक राज्य में रामदुर्ग से लगभग 14 किलोमीटर दूर गुन्नगा गांव के पास सुरेबान में स्थिति है. यहीं माता शबरी रहा करती थीं. इसका वर्णन वाल्मिकी रामायण में भी आता है, रामायण काल में यह स्थान ऋष्यमूक पर्वत नाम से जाना जाता था. शबरी माता की यहां वन शंकरी और शाकंभरी देवी के रूप में पूजा की जाती है. माता शबरी अपने गुरु के आश्रम के पास एक कुटिया में रहती थीं. इनके गुरु का नाम मातंग ऋषि था.
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