*सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता हैं. नवरात्रि के नौ दिन माता आदिशक्त के नौ अलग – अलग रूपों का पूजन विधि विधान से किया जाता है. नवरात्रि में कन्या पूजन का भी विशेष महत्त्व होता हैं. कन्या पूजन से माता रानी प्रसन्न होती हैं. व्यक्ति को संसार के सभी सुख प्रदान करती हैं.
*कालाशुर नाम का एक दैत्य था. जिसे ना तो देव मार सकते थे, ना ही देवियां ऐसे में माता दुर्गा ने अष्टमी के दिन कंजिका अर्थात कन्या का रुप धारण कर जन्म लिया. कालाशुर का वध कर दिया तभी से कन्या पूजन प्रारंभ हुआ.
*दो विधानो से संपन्न होता है कन्या पूजन*
कन्या पूजन के दो विधान हैं. जिनमें पहला अनुष्ठान विधान जिसमें हम नवरात्रि के नौ अलग – अलग दिन माता के स्वरूप प्रतीक कन्या का पूजन करतें हैं. लौकिक विधान, लौकिक विधान में हम नवरात्रि की नौ देवियों के स्वरूप में नौ कन्याओं का पूजन एक ही दिन करते हैं.ध्यान रहे अष्टमी के दिन कन्या भोज का सब से ज्यादा महत्त्व होता हैं. माता कंजिका (कन्या) रूप में अष्टमी को जन्मी थीं. वहीं नौ दिन का व्रत धारण करने वाले भक्तों को नवरात्रि की नवमी को व्रत पारण के समय नौ कन्याओं का पूजन करना चहिए.
*कन्या पूजन कैसे करें, इन बातों का रखें ध्यान*
कन्या पूजन के लिए 2 वर्ष से 9 वर्ष की तक की कन्याओं का पूजन उत्तम बताया गया है. कन्या पूजन के लिए सब से पहले कन्याओं के घर जाकर अक्षत, पुष्प और सुपारी(पुंगीफल) देकर उनका आमंत्रण, निमंत्रण करें. घर के अंदर कन्या के प्रवेश करते ही उनके ऊपर पुष्प वर्षा करें. पैरों में माहावर लगा कर सफेद वस्त्र ने पद चिन्ह लें. कन्याओं के चरणों को धूलें. चरण धुले जल को घर मे छिड़क उपयुक्त जगह में डाल दें. जिसके बाद मां दुर्गा स्वरूप उन्हे सजाएं. कन्याओं का अक्षत, चन्दन, महावर, पुष्प, अर्पित उन्हे चुनरी उड़ाएं. उनकी आरती करें. फिर, रुचिकर पकवान का भोज कराएं. ध्यान रहे मां आदिशक्ति के सभी रूपों के रूचिकर भोग, नैवेद्य कन्याओं को अवश्य खिलाएं.
*भावपूर्व करें कन्याओं की विदाई*
कन्याओं की विदाई आगामी 6 महीने बाद आने वाली शारदीय नवरात्रि तक कृपा बनाए रखने के मनोभाव से करें और यथा उचित कन्याओं को दक्षिणा दें सामर्थ्यनुसार वस्त्र, द्रव्य, कन्याओं को रूचिकर वस्तु, सामग्री, भेंट करें और घर परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करें.
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