महंगाई बढ़ी: खाने-पीने की चीजें महंगी हुईं, साबुन-तेल जैसे डेली यूज के सामानों की कीमतें भी बढ़ी

महंगाई बढ़ी: खाने-पीने की चीजें महंगी हुईं, साबुन-तेल जैसे डेली यूज के सामानों की कीमतें भी बढ़ी

प्रेषित समय :16:23:55 PM / Tue, May 14th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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नई दिल्ली. अप्रैल महीने में थोक महंगाई बढ़कर 1.26 प्रतिशत हो गई है. यह महंगाई का 13 महीने का उच्चतर स्तर है. इससे पहले मार्च 2023 में थोक महंगाई दर 1.34 प्रतिशत थी. खाने-पीने की चीजों की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ी है. वहीं इससे एक महीने पहले मार्च 2024 में ये 0.53 प्रतिशत रही थी. वहीं फरवरी में थोक महंगाई 0.20 प्रतिशत और जनवरी में 0.27 प्रतिशत रही थी.

अप्रैल में खाद्य महंगाई दर बढ़ी

- खाद्य महंगाई दर मार्च के मुकाबले 4.65 प्रतिशत से बढ़कर 5.52 प्रतिशत हो गई.
- रोजाना की जरूरतों के सामानों की महंगाई दर 4.51 प्रतिशत से बढ़कर 5.01 प्रतिशत हो गई है.
- फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर -0.77 प्रतिशत से बढ़कर 1.38 प्रतिशत रही.
- मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की थोक महंगाई दर -0.85 प्रतिशत से बढ़कर -0.42 प्रतिशत रही.

रिटेल महंगाई में आई गिरावट

इससे पहले अप्रैल में खुदरा महंगाई (रिटेल इन्फ्लेशन) दर 11 महीने में सबसे कम रही. अप्रैल में यह घटकर 4.83त्न पर आ गई है. जून 2023 में यह 4.81 प्रतिशत थी. हालांकि, अप्रैल में खाने-पीने की चीजें महंगी हुई हैं. नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने सोमवार 14 मई को ये आंकड़े जारी किए थे.
वहीं एक महीने पहले यानी मार्च 2024 में महंगाई की दर 4.85 प्रतिशत रही थी. खाद्य महंगाई दर 8.52 प्रतिशत से बढ़कर 8.78 प्रतिशत पर पहुंच गई है. ग्रामीण महंगाई दर 5.45 प्रतिशत से घटकर 5.43 प्रतिशत आ गई और शहरी महंगाई दर 4.14 प्रतिशत से घटकर 4.11 प्रतिशत पर आ गई है.

थोक महंगाई का आम आदमी पर असर

थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है. अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं. सरकार केवल टैक्स के जरिए डबलूपीआई को कंट्रोल कर सकती है. जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी. हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है. डब्ल्यूपीआई में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है.

ऐसे मापी जाती है महंगाई

भारत में दो तरह की महंगाई होती है. एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है. रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है. इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) भी कहते हैं. वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (डबलूपीआई) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है.
महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है. जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75 प्रतिशत, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02 प्रतिशत और फ्यूल एंड पावर 14.23 प्रतिशत होती है. वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86 प्रतिशत, हाउसिंग की 10.07 प्रतिशत और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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