पलपल संवाददाता, जबलपुर. एमपी हाईकोर्ट में शादी की अनुमति के लिए पहुंची हिन्दू लड़की व मुस्लिम लड़के को कोर्ट ने शादी की अनुमति देने से इंकार कर दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं है. इसके साथ ही होने वाले बच्चों को संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा. क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ इस शादी को अवैध मानता है.
गौरतलब है कि अनूपपुर में रहने वाले युवक-युवती ने शादी के लिए कलेक्टर आफिस में 25 अप्रैल को आवेदन दिया था. वहीं परिवालों को देखते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी. कलेक्टर उक्त मांग पूरी करने से इंकार कर दिया था. यहां तक कि विवाह की भी मंजूरी नहीं दी थी. इसके बाद दोनों ने विवाह के लिए हाईकोर्ट की शरण ली लेकिन यहां भी उन्हें अनुमति नहीं मिली. मुस्लिम लड़का एक हिंदू लड़की से विवाह करना चाहता है. विवाह के बाद हिंदू लड़की अपना धर्म छोडऩे नहीं चाहती ऐसी स्थिति में अदालत में दोनों की ओर से दलील रखी गई लेकिन भारतीय कानून में विशेष विवाह अधिनियम में इस तरह का विवाह संभव है लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ इस बात की इजाजत नहीं है कि कोई मुस्लिम लड़का किसी मूर्ति पूजक हिंदू लड़की से विवाह कर सके और जब तक लड़की अपना धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म नहीं अपनाती तब तक विवाह मुस्लिम विवाह अधिनियम के तहत रजिस्टर नहीं किया जा सकता है. इसलिए इस मामले में कोर्ट से कोई मदद नहीं मिलेगी. आदेश में इतना कहते ही जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया गया. इस मामले में युवक व युवती की की ओर से दिनेश कुमार उपाध्याय ने पैरवी की थी जबकि सरकार की ओर के एस बघेल ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान कोर्ट में लड़की के पिता भी उपस्थित रहे. जहां उन्होंने युवत-युवती की शादी का विरोध किया और आशंका जताई थी कि अगर अंतर-धार्मिक विवाह हुआ तो समाज में उनका बहिष्कार कर दिया जाएगा. उन्होंने यह भी दावा किया है कि लड़की जब अपने मुस्लिम साथी से शादी करने के लिए जाने से पहले घर से आभूषण और नगदी भी ले गई थी. याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि जोड़े को पुलिस सुरक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर अपना विवाह पंजीकृत करा सकें. वकील ने यह भी कहा कि अंतर-धार्मिक विवाह, हालांकि व्यक्तिगत कानून के तहत निषिद्ध है. लेकिन विशेष विवाह अधिनियम के तहत वैध होगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विशेष विवाह अधिनियम व्यक्तिगत कानून को दरकिनार कर देगा. न तो महिला और न ही पुरुष विवाह के लिए किसी अन्य धर्म को अपनाना चाहते हैं. महिला हिंदू धर्म का पालन करना जारी रखेगी जबकि पुरुष विवाह के बाद भी इस्लाम का पालन करना जारी रखेगा. कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए अंत में यह भी कहा कि लड़का-लड़की लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं. लेकिन धर्म बदले बिना शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ में है. इसलिए ऐसी शादी को वैध नहीं माना जा सकता हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसे में वह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन करवाने की मांग पर दखल नहीं देगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी में अमानवीयता : युवक को पेशाब पिलाया,मुंडन कर मुंह पर कालिख पोत और जूते की माला पहना घुमाया
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