डॉ. अशोक कुमार वर्मा
आधुनिक भारत के अनेक शहरों में बंदरों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है और अभी-अभी भारत की राजधानी दिल्ली में बंदरों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि मनुष्यों द्वारा बंदरों को भोजन देने से वे मनुष्य पर निर्भर रहना सिख रहे हैं. जिससे वे मनुष्य पर निर्भर होकर रह जाएंगे. उच्च न्यायालय ने नागरिक एजेंसियों को निर्देश दिया है कि इस क्षेत्र में जागरूकता कर लोगों को बताया जाए कि इस प्रकार बंदरों को भोजन देकर उन्हें मनुष्यों पर निर्भर करने का कार्य न करें. उच्च न्यायालय ने कहा कि नागरिक एजेंसियों को लोगों को यह बताने की आवश्यकता है कि कैसे उनके द्वारा खाना खिलाने से बंदरों को कोई लाभ नहीं हो रहा है. मुख्य न्यायाधीश श्री मनमोहन और न्यायमूर्ति श्री तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि "भोजन जानवरों को कई तरीकों से क्षति पहुंचाता है. इससे उनकी मनुष्यों पर निर्भरता बढ़ती है और जंगली जानवरों और मनुष्यों के बीच प्राकृतिक दूरी कम हो जाती है." मुख्य पीठ ने कहा कि न्यायालय मानता है कि दिल्ली के लोगों को अगर एहसास होगा कि जंगली जानवरों को खाना खिलाना जानवरों के कल्याण के साथ-साथ मानव कल्याण के लिए हानिकारक है तो वे अपना व्यवहार बदल देंगे. पीठ ने कहा कि सिविक एजेंसियों को दिल्ली के लोगों को यह बताने के लिए लगातार एक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए कि कैसे उनके भोजन से बंदरों को कोई फायदा नहीं हो रहा है. कचरा प्रबंधन पर पीठ ने कहा कि सार्वजनिक पार्कों, फूड हब, ढाबा और कैंटीन आदि में खुले में फैला कूड़ा बंदरों की आबादी को आकर्षित करता है."
यह समस्या न केवल दिल्ली की है अपितु भारत के अनेक क्षेत्रों की है. प्राय: देखने में आता है कि विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को लोग गाड़ियां भर भर कर बंदरों के लिए खाने-पीने की सामग्रियां लेकर पहुँच जाते हैं क्योंकि उनकी यह आस्था हैं कि वे बंदरों को भोजन देकर भगवान हनुमान जी को प्रसन्न कर पाएंगे. त्रेतायुग में भगवान राम की सेना के रूप में वानरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और भगवान राम के सेवक श्री हनुमान जी की पूजा श्रद्धा-पूर्वक सम्पूर्ण भारत और यहां तक कि विदेशों में भी की जाती है. श्री हनुमान जी का वानर रूप है. इसीलिए भारत में वानर अर्थात बंदरों को श्रद्धा भाव से देखा जाता है. वानर अर्थात बंदर भारत के बड़े हिस्से में पाए जाते हैं, जिनमें उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, शुष्क झाड़ीदार क्षेत्र, शंकुधारी वृक्ष, पर्णपाती वृक्ष, अल्पाइन वन से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप के शहरी क्षेत्रों के कंक्रीट के जंगल शामिल हैं. वे विभिन्न क्षेत्रों में अच्छी तरह से रह सकते हैं.
आस्था में कोई त्रुटि नहीं हैं लेकिन मनुष्य को यह भी स्मरण रखना चाहिए कि भगवान हनुमान जी केवल वानर रूप थे. उनके गुणों का व्याख्यान श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में लिखा है, "अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामअग्रगण्यम्. सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियं भक्तं वातंजातं नमामि." अर्थात “अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कांतियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं.” अभिप्राय है कि श्री हनुमान जी वानरों के स्वामी थे. वानर का अर्थ है वन में विचरण करने वाला. दूसरी और वानर का आहार वन में मिलने वाले फल और पत्ते आदि होते हैं.
मनुष्य कहीं न कहीं प्रकृति के इस नियम को भी तोड़ने का प्रयास कर रहा है कि बंदर को अलग से खाद्य सामग्री देकर उसके जीवन प्रक्रिया में परिवर्तन करने का कारण बन रहा है. चूंकि बंदर अधिकतर वनों में अथवा पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं और इसीलिए मनुष्य उनके खाने का सामान लेकर वहीं पहुँच रहा है. दूसरी और बंदरों के रहने के स्थानों पर मनुष्य अतिक्रमण कर रहा है. आज पहाड़ी क्षेत्रों को भी काटकर मनुष्य ने अपने प्रयोग में ले लिया है. अनेक शहरों जैसे गुरुग्राम और फरीदाबाद के मध्य में पहाड़ी मार्ग में भी लोग बंदरों के लिए खाना लेकर पहुंच रहे हैं और अनेक बार बंदर सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं और उनकी मृत्यु हो रही है.
भारतीय संविधान में भी पशु-पक्षियों के प्रति दया भाव के लिए कई प्रावधान हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A (g) के अनुसार, भारतीय नागरिकों का कर्तव्य है कि वे सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखें और वन्यजीवों की रक्षा करें. भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में कहां गया है कि राज्य का लक्ष्य पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से संगठित करना है. इसके अतिरिक्त गायों, बछड़ों, और अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के संरक्षण और सुधार के लिए कदम उठाने का प्रयास करना है.
पूर्व में बने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 428 और 429 के अनुसार किसी भी पालतू या आवारा पशु को प्रताड़ित करना, मारना या अपंग करना दंडनीय अपराध है. पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण (वधशाला) नियम, 2001 के अनुसार देश के किसी भी भाग में पशु बलि अवैध है. पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम अधिनियम 1960 के अंतर्गत किसी भी पशु-पक्षी का वध बूचड़खाने/वधशाला में ही किया जा सकता है.
सभी धर्मों में प्रत्येक जीव के प्रति दया-भाव रखना और उनकी यथा-योग्य सेवा करना बतलाया गया गया है. कहा भी गया है- सब जीवों से प्रेम करो यदि भगवान को पाना है और सब जीवों के हृदय में भगवान का ठिकाना है. जी हां यह सत्य है की प्रत्येक प्राणी में आत्मा का वास है. प्रकृति ने सृष्टि के निर्माण में सभी जीवों की प्रकृति को अलग अलग बनाया है. यद्यपि यह सर्वथा उचित है कि मनुष्य की भांति पशु पक्षियों को भी स्वतन्त्रतापूर्वक जीवन जीने और विचरण करने और रहने का अधिकार है तथापि यदि कोई पशु मनुष्य के जीवन के लिए संकट बनता है तो मनुष्य को अधिकार है कि अपनी रक्षा के लिए उचित व्यवस्था करे. दूसरी और बंदर चंचल और चतुर प्रकृति का जीव है. यदि बंदर मनुष्य पर निर्भर हो जाता है तो वह शहरों एवं गाँवों में अपना बसेरा करेगा और मनुष्य के लिए कष्टकारी हो सकता है क्योंकि जब उसे भोजन नहीं मिलेगा तो वह निश्चित रूप में आक्रामक हो सकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-