शनि किसी भी मनुष्य की 'खबर' लेने से पहले दो ढैया और एक साढ़ेसाती के रूप में पहले तीन बार चेतावनी देता!

शनि किसी भी मनुष्य की

प्रेषित समय :19:35:31 PM / Fri, Oct 11th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

शनि वायवीय ग्रह है. यह कार्मिक ग्रह है और न्याय का कारक है. बृहस्पति यदि सौभाग्य का कारक है, तो शनि दुर्भाग्य का, परन्तु स्थायित्व, सहिष्णुता व धैर्यदोनों के समान गुण हैं. शनि लोहा, मशीन, श्रम, अन्धकार, चाचा, बड़ा भाई, नींद, वायु या वात, नशा, आध्यात्म, वैराग्य तथा मीमांसा का कारक है. शुभ स्थितीय सेनापति की यह वैज्ञानिक, ऋषि या तपस्वी बना सकता है. दार्शनिक बना सकता है. कर्मठ बनाता है, किन्तु अशुभ स्थिति में यह शराबी, जुआरी, निकम्मा, आलसी, उचक्का दरिद्र व दण्ड पाने वाला बनाता है.

शनि कर्मानुसार न्याय करके फल प्रदान करने वाला प्रमुख न्यायाधीश ग्रह है. यह विदेशी भाषा और जनता का कारक है. भाग्य रेखा शनि पर्वत से ही हाथ में निकलती है. कर्म व श्रम के कारक होने के साथ- साथ कालपुरुष की कुण्डली में ये दसवें भाव (कर्म) तथा ग्यारहवें भाव (लाभ, आय, कर्मफल) का स्वामी होता है. अतः नाड़ी ज्योतिष में शनि के आधार पर व्यवसाय या जीविका निर्धारित करने का चलन है. तकनीकी रूप से या सिद्धान्त की दृष्टि से यह बिल्कुल सही बात है. जीविका के निर्णय में शनि की स्थिति विचारी ही जानी चाहिए. लाल किताब ने मृत्यु के भाव (आठवें) को शनि का हेड क्वार्टर कहा है. शनि स्वयं रोग, शोक, वृद्धत्व तथा मृत्यु का कारक भी है. (सूर्य यदि जगत् को प्राणशक्ति देकर प्राणियों का अस्तित्व बनाये रखने की भूमिका निभाता है, तो उसके ठीक विपरीत (प्रकाश-अन्धकार या उष्णता-ठिठुरन) और उसका शत्रु ग्रह शनि मृत्यु, निर्बलता व रोग का कारक होना भी चाहिए). इसलिए शनि को यम का ही स्वरूप मानते हैं. (यम शनि का भाई है. दोनों सूर्य पुत्र हैं. दोनों का मृत्यु, दुःख, पीड़ा, शोक, रोग, वृद्धावस्था से सम्बन्ध है. भैंस या भैंसा दोनों का प्रतिनिधि है).

शनि चाचा (रात्रि के जन्म में कुछ विद्वान् पिता का कारक भी मानते हैं), बड़ा भाई, सहायक, कर्म या जीविका का प्रतीक है. यह अच्छी स्थिति में न हो, तो काम नहीं करने देता या खराब काम करता है. रुकावट, देरी, आलस्य, निठल्लापन भी शनि के ही कारकों में है और परिश्रम, कर्मठता व तपस्या भी. न्यायकर्ता होने से इसे ईश्वर भी माना है और धर्मराज या यम भी शनि को ही माना जा सकता है; क्योंकि वह भी कर्म अनुसार न्याय ही करता है. वैसे भी शनि यमराज का बड़ा भाई माना जाता है. काला, अंधेरा, रूखा, ठण्डा इसके कारकों में विशेष हैं. सन्देशवाहक और डाकिये का प्रतिनिधि भी शनि ही है. नाड़ी ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, केतु शनि के शत्रु और मंगल प्रबल शत्रु हैं. बुध, शुक्र, गुरु, राहु मित्र हैं (पराशर ने गुरु को शनि के लिए सम माना है). मंगल शनि का संयोग अकसर परिश्रम और भाग्य में तालमेल नहीं रहने देता या काम ही नहीं करने देता. फलित शास्त्रों के अनुसार यह विशेष स्थितियों में' भ्रातृऋण' दिखाता है और दुर्घटनाओं की सम्भावना बनाताहै. चूंकि मंगल तो आग है और शनि वायु, अतः यह योग उत्तम नहीं होता.

विवस्वान् मनु, यम और यमी (दोनों जुड़वां पैदा हुए. यमी को यमुना भी कहते हैं), शनि तथा अश्विनीकुमार (देवताओं के शल्य चिकित्सक) सूर्य की ही सन्तानें कही गयी हैं. सूर्य की पत्नी सूर्य का ताप नहीं झेल पार्थी, अतः अपने प्रतिरूप या छाया को छोड़कर सूर्यलोक से चली गयीं. सूर्य और छाया के समागम से शनि उत्पन्न हुआ. कालान्तर में सूर्य को सत्य ज्ञात हुआ, तो वह छाया की उपेक्षा कर अपनी पत्नी सन्ध्या को ढूंढ़ने गया. सन्ध्या के पिता देवशिल्पी विश्वकर्मा को यह सब ज्ञात हुआ, तो उसने सूर्य के तेज को उसकी स्वीकृति से तराशकर उसे सन्ध्या के लिए सहनीय बना दिया और तराशकर निकाले गये तेज से सुदर्शन चक्र आदि अस्त्र-शस्त्र देवताओं के लिए बना दिये. ऐसी पौराणिक कथा है. कथा प्रतीकात्मक है. शनि को अपनी वास्तविक माता का (छाया का) अनादर सहन नहीं हुआ और उसने अपनी मां के अधिकारों को लेकर विरोध किया. सूर्य के न मानने पर उसने विद्रोह कर दिया. शुक्र को अपना मन्त्री व पुरोहित तथा राहु-केतु को अपने अनुचर बनाकर उसने अपना साम्राज्य तैयार स्थित सेनापति की आवश्यकता ही नहीं. दैत्यों के महाप्रतापी सेनापति राहु को तो उसने अपना अनुचर बनाया हुआ है. ये सब सांकेतिक कथाएं हैं. इनसे शनि का स्वभाव, गुण तथा विशेषताएं सिद्ध होती हैं. छाया या अंधेरा, सूर्य, राहु, यम, यमुना आदि से उसके घनिष्ठ सम्बन्ध सिद्ध होते हैं. इससे सिद्ध होता है कि शनि कितना न्यायप्रिय व समदर्शी है. उचित बात या न्याय के लिए वह किसी के प्रताप, पद, दबदबे, सामर्थ्य तथा उससे अपने गहन सम्बन्धों की भी परवाह नहीं करता. ग्रहों का राजा हो, महातेजस्वी हो, अपना पिता हो-शनि न्याय के लिए उसका विरोध कर सकता है. अपने अधिकार, पद तथा सुख-सुविधाएं छोड़ सकता है. इससे सिद्ध होता है कि वह अपनी माता से अत्यन्त प्रेम करता है. इससे सिद्ध होता है कि वह बहुत आदर्शवादी या सिद्धान्तवादी और दृढ़निश्चयी या हठी है. इससे सिद्ध होता है कि वह निर्भय और हिम्मत वाला है. साथ ही भौतिक सुख-साधनों के प्रति, पद-प्रतिष्ठा-मान के प्रति उसका विरक्त या तटस्थ होना सिद्ध होता है. वह उसूलों या धर्म के लिए उनका सहर्ष त्याग कर सकता है. अतः वह निर्लिप्त और तपस्वी है. जाहिर है कि ऐसे को न्याय, तपस्या, संन्यास, वैराग्य, आध्यात्म, त्याग, सेवा, दृढ़निश्चय आदि का कारक माना ही जायेगा. शनि निष्ठुर या निर्मम होकर न्याय करता है, परन्तु जातक को पहले तीन चेतावनी देकर सुधरने के मौके भी देता है. अतः क्रूर होते हुए भी शनि दयालु है. अपनी 19 साल की महादशा में जातक की 'खबर' लेने से पहले वह दो ढैया और एक साढ़ेसाती के रूप में पहले तीन बार चेतावनी दे देता है. उसे शीघ्रता कभी नहीं होती. परीक्षा लेता है. लोहा हो, तो गला देता है. कोयला हो, तो जलाकर राख कर देता है, परन्तु सोना हो, तो तपाकर कुन्दन बना देता है.

Narender Pal Bhardwaj

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-