Astrologer के अनुसार सूर्य राहु का कट्टर शत्रु है!

Astrologer के अनुसार सूर्य राहु का कट्टर शत्रु है!

प्रेषित समय :18:41:56 PM / Sat, Oct 12th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

सूर्य-राहु सम्बन्ध
सूर्य और राहु की शत्रुता विचारें. सूर्य की गणना देवताओं या देवपक्ष में होती है, जबकि राहु दानव है. स्वरभानु दैत्य और सिंहिका राक्षसी का पुत्र है. पैठीनस गोत्रीय है. दैत्य और राक्षस दो जातियों के मेल के कारण वर्णसंकर या दोगला है. राहु का वर्णन दैत्यों के महापराक्रमी सेनापति के रूप में हुआ है, अतः देवताओं, सूर्य से उसकी शत्रुता सहज ही सिद्ध है. दोगलेपन के कारण वह सन्देह तथा धोखे (विश्वासघात) का कारक है. वह महामायावी असुर है. पाठकों को रामायण में वर्णित सिंहिका राक्षसी का स्मरण होगा, जो महामायाविनी थी और समुद्र में रहते हुए आकाश में उड़ने वाले जीवों को पानी में पड़ने वाली परछाई से पकड़ लेती थी. हनुमान्जी द्वारा उसे मार डाला गया था (मंगल से राहु की शत्रुता का यह भी एक कारण है). राहु में माया का गुण तथा ग्रसने का गुण वहीं से आया (राहु ग्रहणकारक है).

माया, प्रपंच, छल, मरीचिका, भ्रम, सन्देह, दुविधा, अविश्वास, धूम्र, धुंधलका, परछाई, सर्प, विष, ग्रहण, पूर्वजन्म, मोह, उड़ान, कल्पना, बिजली, आकस्मिकता, पृथक्ता, सीढ़ी, कब्रिस्तान, विकृति, संक्रमण, म्लेच्छ, विधर्मी, उद्दण्डता, ढीठता, अभद्रता, जादू, आकाशवाणी, सम्मोहन, टोटका-तन्त्र, भूत-प्रेत आदि का कारक राहु है, परन्तु आविष्कार, आइडिया (क्योंकि आकस्मिकता व कौंधने का कारक है) का भी कारक है और बड़ा ऊर्जावान् है. इसे चन्द्रादित्यविमर्दक कहा गया है. यह अति रहस्यमयी ग्रह है और रहस्य, पहेली, शोध, उलझन, गांठ, गुत्थी आदि का भी कारक ग्रह है; क्योंकि यह मात्र भ्रम या छाया है (छाया ग्रह), इसलिए इसकी क्रिया प्रणाली को बिल्कुल सही-सही जान पाना बड़ी टेढ़ी खीर है.

विष्णु के सुदर्शन द्वारा राहु का सिर काट देने की कथा अमृत-मन्थन या समुद्र मन्थन प्रसंग में आती है, परन्तु छल से अमृत पान कर लेने के कारण राहु फिर भी मरा नहीं. किन्तु सुदर्शन चक्र के अमोघ प्रभाव के कारण वह अखण्ड भी नहीं रह सका. वह 'सिर' और 'धड़' दो पृथक् भागों में जीवित रहा और 'एक' होते हुए भी 'दो' हो गया. इनको ही क्रमशः राहु (सिर) व केतु (धड़ या पूंछ) के रूप में ज्योतिष में छाया ग्रहों के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है. यह सब प्रतीकात्मक कथा है. राहु भ्रम या सन्देह का कारक है, जो बुद्धि का होता है. ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से होता है और सिर या गर्दन से ऊपरी भाग में बुद्धि सहित पांचों ज्ञानेन्द्रियां मौजूद होती हैं, अतः राहु का केवल 'सिर' माना, जबकि आस्था और विश्वास के कारक (मोक्षकारक भी) केतु के अधिकार में हृदय और कर्मेन्द्रियां (वाणी को छोड़कर) आर्यों, जो 'धड़' में ही रहती हैं, अलबत्ता 'त्वचा' नामक एक ज्ञानेन्द्रिय (स्पर्शानुभूति) केतु के पास भी है, जैसे 'वाणी' नामक एक कर्मेन्द्रिय राहु के पास भी है. राहु से प्रभावित व्यक्ति इसीलिए बोलता बहुत है और सोचता (कल्पना, योजना, उधेड़बुन, चिन्ता, चिन्तन) भी बहुत है, परन्तु उस अनुपात के करता कम है (करता है, तो निरन्तरता नहीं होती).

सूर्य ज्ञान व प्रकाश का कारक है. आत्म (Self/स्व) कारक है. चन्द्र को मन का कारक कहा जाता है (चन्द्रमा मनसो जातकः). जब मन-आत्मा मोह, माया, अविद्या, भ्रम (राहु) द्वारा ग्रस लिये जाते हैं, तो ग्रहण या जड़ता हो जाती है (विमोहन होता है). परिणामतः जीव को पुनर्जन्म चक्र में फंसे रहना पड़ता है. यही वास्तव में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण का प्रतिकार्थ है, इसीलिए राहु पूर्वजन्म, सम्मोहन, जड़ता, माया, भ्रम, मोह, अविद्या आदि का कारक है. जब सूर्य (आत्म) और चन्द्र (मन), राहु (ग्रहण) के प्रभाव से मुक्त (केतु) हो जाते हैं, तब जीव आवागमन चक्र से मुक्ति पा जाता है. अतः मोक्ष या मुक्ति का कारक केतु है, परन्तु भौतिक रूप में भी राहु कभी पृथ्वी, कभी चन्द्र की 'छाया' के रूप में चन्द्र व सूर्यग्रहण करता है. यह प्रतीकात्मक वर्णन है, जो आध्यात्म तथा संसार-दोनों ही मामलों में लागू है.

राहु आरोप, स्कैण्डल, अपयश आदि में फंसाकर जातक के यश, पद, प्रतिष्ठा (सूर्य) को कलंकित करता है. दुर्घटना (आकस्मिकता) में हड्डी (सूर्य) को तोड़ता है. हृदय (सूर्य) के आघात (आकस्मिकता) या हार्टअटैक का कारण बनता है. संक्षेप में यह कि सूर्य के लिए घातक व कट्टर शत्रु सिद्ध होता है (शनि हृदय रोग दे सकता है, पर हार्टअटैक नहीं. जोड़ों, हड्डियों में दर्द या गठिया दे सकता है, किन्तु हड्डी तोड़ता नहीं. अवरोध या मन्थरता या विलम्ब दे सकता है, परन्तु विषाक्तता, संक्रमण, विकृति, पृथक्ता, सड़ान्ध आदि नहीं). यह शनि व राहु की सूर्य से शत्रुता में अन्तर है.

भ्रम सदा अपर्याप्त प्रकाश, धुन्धलके या अपूर्ण ज्ञान के कारण होता है (अज्ञान या घुप्प अंधेरा भ्रम के योग्य ज्ञान भी नहीं होने देता. 'भ्रम' अज्ञान नहीं, अपितु मिथ्या ज्ञान या अर्धज्ञान से ही होता है). सूर्य, प्रकाश, ज्ञान भ्रम का निवारक है, अतः सूर्य भी राहु का कट्टर शत्रु है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-