अभिमनोज
एक मुस्लिम पति-पत्नी ने 2010 में शादी की थी, कुछ समय बाद पति ने पत्नी को ट्रिपल तलाक दे दिया, उसके बाद वर्ष 2017 में तमिलनाडु की तौहीद जमात (शरियत काउंसिल) ने इन्हें तलाक का सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया.
शरियत काउंसिल से तलाक का सर्टिफिकेट मिलने के बाद पति ने दूसरी शादी कर ली, तो पीड़िता पत्नी ने तिरुनेलवेली ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में इस तलाक सर्टिफिकेट के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत याचिका पेश की, वर्ष 2021 में अदालत ने पीड़िता पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि- पति को घरेलू हिंसा के लिए 5 लाख रुपए का मुआवजा और अपने नाबालिग बच्चे के देखभाल के लिए 25,000 रुपए हर महीने देने होंगे.
इसे फैसले के खिलाफ पति ने सेशन कोर्ट में याचिका लगाई थी, जो खारिज हो गई थी, तब पति ने मद्रास हाईकोर्ट की शरण ली, लेकिन.... पति की याचिका हाईकोर्ट से भी खारिज हो गई है.
खबरों की मानें तो.... इस मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वामीनाथन का कहना था कि- पति को शरियत काउंसिल नहीं, बल्कि अदालत जाकर तलाक लेना होगा.
अदालत का साफ कहना था कि- इस मुद्दे को पति के एकतरफा निर्णय पर नहीं छोड़ा जा सकता, ऐसा करके तो पति ही जज बन जाएगा?
क्योंकि.... पति ने दो बार शादी की है, जोकि पहली पत्नी के लिए भावनात्मक दर्द था, जो क्रूरता भी है.
अदालत का मानना है कि.... यह स्पष्ट रूप से घरेलू हिंसा का मामला है, जिसमें पत्नी को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत मुआवजा पाने का अधिकार है, यह प्रस्ताव मुसलमानों के मामले में भी लागू होगा.
यह निर्णय महिलाओं के संरक्षण के नजरिए से प्रेरणास्पद है!
मद्रास हाईकोर्ट: शरियत काउंसिल कोई अदालत नहीं, इसे डिवोर्स सर्टिफिकेट देने का हक नहीं!
प्रेषित समय :20:43:51 PM / Tue, Oct 29th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर