एमपी: हाईकोर्ट जस्टिस बोले, यदि हमारे पास अधिकार है तो हमारा कर्तव्य है कि सी निर्दोष को सजा न मिले..!

एमपी: हाईकोर्ट जस्टिस बोले, यदि हमारे पास अधिकार है तो हमारा कर्तव्य है कि सी निर्दोष को सजा न मिले..!

प्रेषित समय :14:39:14 PM / Sun, Jan 12th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

पलपल संवाददाता, जबलपुर. समाज में विसंगतियां भी हैं और अच्छाई भी है. यह जरूरी है कि हम इन विसंगतियों को छानकर सही चीज़ को सामने लाएं. यदि हमारे पास अधिकार है तो हमारा कर्तव्य भी बनता है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को सजा न मिले. उक्ताशय के विचार मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कंट्र्रोल रुम में आयोजित पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशाला में मुख्य अतिथि की आसंदी से व्यक्त किए.

जस्टिस अग्रवाल ने आगे कहा कि अभियोजन और पुलिस अधिकारियों से अपील की कि जब भी कोई अपराध होता है तो उस मामले की गहराई से जांच करे कि मामला सत्य है या झूठा. उन्होने कहा कि हम  जानते हैं कि अब कोर्ट में दलालों का नेटवर्क सक्रिय हो गया है. जो एसटी-एससी से संबंधित झूठे मामलों को लगवाकर व मुआवजा दिलवाने के नाम पर बेगुनाहों को फंसाते हैं फिर अपना प्रतिशत लेते हैं. इस मामले में प्रशासन, पुलिस व न्यायपालिका तीनों के स्तर पर कहीं न कहीं कुछ कमी है.

लेकिन आप सभी समझदार हैं इसलिए इस दिशा में अच्छे प्रयासों की आवश्यकता है. ताकि विसंगतियों को दूर किया जा  सके. अगर हमारा अभियोजन सच्चा है, जांच ईमानदारी से की गई है और केस सच्चा है, तो उसका परिणाम भी अच्छा होगा. सभी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दलालों के कारण हमारी विश्वसनीयता खराब न हो. जस्टिस श्री अग्रवाल ने यह भी कहा कि कास्ट सर्टिफिकेट को लेकर कुछ समस्याएं आती हैं लेकिन कोर्ट ने कभी यह नहीं कहा कि सवर्ण जाति के लोगों का सर्टिफिकेट लेकर आइए.

कुछ जिलों में कुछ जातियां एससी में आती हैं जबकि कहीं नहीं आतीं. हम ऐसे मुकदमे देख रहे हैं जहां आरोपी एससी-एसटी वर्ग से होने के बाद भी उसके खिलाफ गलत धाराएं लगाई गई हैं. इसमें अभियोजनए जांच अधिकारी और न्यायपालिका सभी की कुछ जिम्मेदारी हैए जिससे समाज में गलत संदेश जाता है. कार्यशाला के दौरान जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है कि चार्जशीट की वेटिंग संख्या बहुत ज्यादा है. कई बार यह देखा जाता है कि चार्जशीट सही जांच न होने के कारण या फिर यह कहते हुए कि इसमें केस नहीं बनता है या फिर अन्य धाराओं के तहत मामला बनता है, उसे वापस कर दिया जाता है.

इसे समझने की आवश्यकता है. विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) जबलपुर गिरीश दीक्षित ने एससी-एसटी एक्ट के संबंध में विवेचना की कमियां और विचारण के दौरान प्रमाणिकताए साथ ही उक्त अधिनियम से संबंधित नियमों के बारे में उपस्थित अभियोजन अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को जानकारी दी. इस दौरान उपसंचालक अभियोजन विजय कुमार उइके, जिला अभियोजन अधिकारी अजय कुमार जैन, पुलिस अधिकारी एवं अभियोजन-कर्मचारी उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन एडीपीओ सरिका यादव के द्वारा किया गया.

इन अपराधों का दुरुपयोग भी किया जाता है-

उन्होने कहा कि  हमारे पास कुछ ऐसे प्रकरण भी आते हैं जहां महिलाओं से संबंधित अपराधों का दुरुपयोग किया जाता है. जैसे कि मुआवजा प्राप्त करने के लिए या फिर किसी व्यक्ति को प्रताडि़त करने के लिए. इन मामलों में पुलिस की संलिप्तता होती है. इसमें पुलिस अधिकारियों का मार्गदर्शन भी प्रतीत होता है. जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा कि जहां भी हमारे पास अधिकार हैंए वहां कर्तव्य भी है.

एससी-एसटी एक्ट के मामलों में पुलिस संवेदनशीलता से काम करे-

कार्यक्रम के अध्यक्ष बीएल प्रजापति ने अपने उद्बोधन में कहा कि एससी-एसटी एक्ट के मामलों में पुलिस को संवेदनशीलता के साथ कार्य करना चाहिए. प्रकरण को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए. कलेक्टर दीपक सक्सेना ने भी अपने संबोधन में कहा कि कमजोर वर्ग की संवेदनाओं को समझकर कार्य करना चाहिए. एसपी संपत उपाध्याय ने एससी.एसटी एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तारी किए जाने से पहले बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में निर्देशित किया. जिला न्यायाधीश मनीष शर्मा ने नवीन क्रिमिनल लॉ के बारे में बताया .

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-