सियासी कियादत के दबाव में पाक फौज

पाकिस्तान  की तारीख में पाक फौज शायद पहली बार सियासी ताकतों के इतने दबाव में है. पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि इस बार सियासी पार्टियां और सिविलियन इदारे अपनी बालादस्ती कायम करने के काफी आसपास हैं, हालांकि पाकिस्तानी सियासत में यह एक मिराज की तरह है. अगर सिविलियन बालादस्ती कायम नहीं भी हो पाई तब भी सिविलियन कियादत अपनी ताकत में इजाफा जरूर कर लेगी. यानी वह अच्छा बारगैन करने की स्थिति में है. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, आप कुछ घटनाक्रम देखिए-
पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के हालिया एक भाषण में फौज के नैरेटिव में आए बड़े शिफ्ट का पता लगता है. बाजवा ने कहा कि पाकिस्तान में जो (इमरान सरकार और एस्टाब्लिशमेंट की) तीखी आलोचना हो रही है, इसे हाइब्रिड वार का हिस्सा नहीं मानना चाहिए. अब तक यह होता था कि सिविलियन या फौजी इदारों की जो भी आलोचना होती थी, उसे हाइब्रिड वार करार दे दिया जाता था. फौजी एस्टाब्लिशमेंट की शब्दावली में हाइब्रिड वार यानी दुश्मन मुल्क भारत की ओर से छेड़ा गया छद्मयुद्ध. जिसे आईएसआई प्रोपैगंडा में फिफ्थ जनरेशन वार भी कहा जाता है.#नवाजशरीफ ने विदेश में बैठकर पाकिस्तान के टीवी नेटवर्क पर खुले तौर पर फौज की आलोचना एक ऐसी बैठक में की, जो खुद पाक आर्मी चीफ   ने बुलाई थी. एक समय इमरान की कैबिनेट ने फैसला किया था कि नवाज शरीफ के भाषण का प्रसारण नहीं किया जाएगा, लेकिन अगले दिन सारे चैनलों पर प्रसारण किया गया. जो चैनल रात दिन नवाज शरीफ को कोसते हैं और फौज के कसीदे पढ़ते हैं, उन पर भी नवाज शरीफ यह कहते दिखाई पड़े कि उनकी लड़ाई इमरान खान से नहीं है, बल्कि उनसे है, जो इमरान को सत्ता में लाए हैं. उनका निशाना सीधा पाक के फौजी एस्टाब्लिशमेंट पर था. शरीफ ने चुनावों को इंजीनियर करने और सिलेक्टिव पीएम चुनने की बात करके आईएसआई को निशाने पर लिया. यह अब तक की व्यवस्था पर सबसे बड़ा हमला है.पाक मीडिया   को आमतौर पर फौजी लाइन पर चलने वाला माना जाता है, क्योंकि उसके बगैर वह चल भी नहीं सकता, लेकिन जब नवाज शरीफ सहित 42 सियासी लोगों के खिलाफ सेक्शन 6 के तहत देशद्रोह का मामला कायम हुआ तो ज्यादातर मीडिया ने इसकी सख्त आलोचना की. बहुत से पाकिस्तानी पत्रकार खतरे उठाकर फौज के खिलाफ खुलकर पहले से ही बोलते रहे हैं और सिविलियन बालादस्ती की बात करते रहे हैं, उन्हें अपहरण, हत्या का शिकार होना पड़ा है अथवा मुल्क छोड़ना पड़ा. इस बार यह मीडिया फौज के समर्थन में दिखाई नहीं दे रहा. गिलगिट  बलिस्तान जैसे आंदोलनों ने फौज पर नागरिक अधिकारों की बहाली के लिए दबाव बना दिया है. यही कारण है कि पाक फौज ने स्वीकार कर लिया है कि सिविल आंदोलन को भारतीय डिजाइन कहना ठीक नहीं है. यानी वह मान रही है कि लोगों में भारी नाराजगी है.पाकफौज के करीबी कई तरजियाकार मानते हैं कि फौज जानबूझकर ढील दे रही है ताकि लोगों में पैदा हुई नाराजगी को निकलने का मौका दिया जाए. वह पाकिस्तान की 11 विरोधी पार्टियों और गैर सियासी आंदोलनों का इस्तेमाल सेफ्टी वाल्व की तरह करना चाहती है, ताकि इमरान सरकार को बचाया जा सके. लेकिन वह इन सारे आंदोलनों को एक सीमा से बाहर कभी नहीं निकलने देगी. ज्यादा विरोध करने पर शरीफ परिवार को भी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है, इसलिए नवाज शरीफ के मामले में भी यही माना जा रहा है कि वह खुद अपने और परिवार के खिलाफ मुकदमेबाजियों से सुरक्षा की बारगैनिंग का प्रयास कर रहे हैं.  

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