ग्रीन रिकवरी के नाम पर किये वादे का सिर्फ़ 18 फ़ीसद हुआ खर्च: संयुक्त राष्ट्र

ग्रीन रिकवरी के नाम पर किये वादे का सिर्फ़ 18 फ़ीसद हुआ खर्च: संयुक्त राष्ट्र

प्रेषित समय :18:55:49 PM / Wed, Mar 10th, 2021

संयुक्त राष्ट्र. कोविड महामारी की शुरुआत हुए एक वर्ष से अधिक हो चुका है और आज अगर तमाम देशों की ग्रीन रिकवरी की प्रतिबद्धताओं के सापेक्ष उनके द्वारा किये गये खर्च का आंकलन करें तो हम पाते हैं कि वो खर्च किये वादों से काफ़ी कम है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और ऑक्सफोर्ड युनिवेर्सिटी की आर्थिक सुधार परियोजना और  के एक साझा आंकलन, ग्लोबल रिकवरी ऑब्जर्वेटरी रिपोर्ट, के अनुसार दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा ग्रीन रिकवरी के नाम पर किये गये खर्चों में से कुल 18 फ़ीसद को ही वाक़ई ग्रीन, या हरित अर्थव्यवस्था निर्माण को समर्पित खर्च, माना जा सकता है.

यह रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है आर वी बिल्डिंग बैक बेटर? एविडेंस फ्रॉम 2020 एंड पाथ्वेज़ फॉर इन्क्लुज़िव ग्रीन रिकवरी स्पेंडिंग, तमाम सरकारों का समावेशी ग्रीन रिकवरी खर्च के लिए आह्वाहन करती है जिससे महामारी से हुई तबाही के मद्देनजर हरित या पर्यावरण अनुकूल विकास को प्रोत्साहित किया जा सके.

यह रिपोर्ट, जो कि अर्थव्यवस्थाओं द्वारा COVID19 संबंधित राजकोषीय बचाव और पुनर्प्राप्ति प्रयासों का सबसे व्यापक विश्लेषण है, बताता है कि साल 2020 में 50 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा किये गए $14.6 ट्रिलियन डॉलर के खर्च में से केवल $368 बिलियन डॉलर ही असल मायने में एक पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए थे.

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक, इंगर एंडरसन कहते हैं, “फ़िलहाल, पृथ्वी की पूरी मानवता एक साथ तीन चुनौतियों से जूझ रही है. जहाँ सबसे बड़ी चुनौती है महामारी, तो उसी के साथ खड़ा है आर्थिक संकट और एकोलौजिक्ल संतुलन के बिगड़ने की तीव्र सम्भावना. हम इनमें से किसी से भी नहीं हार सकते. इसलिए सरकारों के पास अब एक अनूठा मौका है जब वो अपने देश को स्थायी विकास यात्रा पर लगा सकते हैं इसके लिए प्राथमिकता का आधार होगा आर्थिक अवसर, गरीबी कम करना और हमारे पर्यावरण की सेहत पर ध्यान केंद्रित करना. और ऐसे में ऑब्जर्वेटरी रिपोर्ट कि सहायता से अधिक स्थायी और समावेशी विकास की दिशा की ओर बढ़ने के साधन प्राप्त होंगे."

आगे, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के आर्थिक सुधार परियोजना के प्रमुख शोधकर्ता और रिपोर्ट के लेखक ब्रायन ओ’कल्हन के अनुसार, "कुछ एक देशों को छोड़ दें तो हम पाएंगे कि ज्यादातर देश एक बेहतर रिकवरी के मामले में फेल हुए हैं. लेकिन यही देश अगर बुद्धिमानी से खर्च करें तो एक बेहतर कल के अवसर अभी खत्म नहीं हुए हैं.”

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए UNDP के प्रशासक एशिम स्टीनर कहते हैं, “COVID-19 महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को दूर करने के लिए देशों द्वारा किए गए निवेश को बेहतर ढंग से बताने और उसकी निगरानी करना काफी महत्वपूर्ण साबित होगा, इससे हमें हरित पर्यावरण और समग्र विकास हासिल होगा . इस संबंध में, ग्लोबल रिकवरी ऑब्जर्वेटरी और यूएनडीपी के डेटा फ्यूचर्स प्लेटफॉर्म नीति निर्माताओं को पूरी परख के साथ नए डेटा पॉइंट्स का एक सेट प्रदान करते हैं, इस तरह के संसाधनों तक पहुंच बढ़ाने के लिए अब तक किए जा रहे निवेशों की पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रभावशीलता को बढ़ाने में मदद मिलेगी और हमारे भविष्य पर उनका अच्छा प्रभाव पड़ेगा.”

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पर्यावरण अर्थशास्त्र के प्रोफेसर केमरून हेपबर्न के अनुसार, “यह रिपोर्ट एक वेक-अप कॉल है एक अलार्म है. ग्लोबल रिकवरी ऑब्जर्वेटरी के आंकड़ों से पता चलता है कि हम बेहतर कल का निर्माण नहीं कर रहे हैं, कम से कम अभी तक तो नहीं. हम जानते हैं कि हरे-भरे पर्यावरण की रिकवरी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ जलवायु के लिए भी एक जीत होगी - अब इसके साथ जुड़ने का वक्त आ गया है.”

रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि हरे-भरे पर्यावरण की रिकवरी वैश्विक आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने और संरचनात्मक असमानता को दूर करने में मदद करते हुए मजबूत आर्थिक विकास ला सकती है. दशकों से गरीबी को खत्म करने की प्रगति को बनाए रखने के लिए, कम आय वाले देशों को अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों से पर्याप्त रियायती वित्त की आवश्यकता होगी .

लंबे समय तक चल सकने वाली पर्यावरण की रिकवरी की राह हासिल करने के लिए पांच महत्वपूर्ण सवाल उठाये गए है:

• क्या दांव पर लगा है? क्योंकि देशों ने रिकवरी की राह हासिल करने के लिए अभूतपूर्व संसाधन के लिए वचनबद्ध किया हैं

• कौन से खर्च करने वाले रास्ते आर्थिक सुधार और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ा सकते हैं?

• COVID-19 की वजह से बढ़ी हुई असमानताओं को दूर करने में पर्यावरण की रिकवरी में होने वाले खर्च की भूमिका क्या है?

• वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण की हानि और प्रदूषण से निपटने के लिए किस - किस तरह के रिकवरी निवेश देश कर रहे हैं?

• स्थायी और न्यायसंगत रिकवरी निवेश सुनिश्चित करने के लिए और क्या करने की आवश्यकता है?

समग्र रूप से, अब तक वैश्विक हरित पर्यावरण पर होने वाला खर्च "चल रहे पर्यावरणीय संकटों के पैमाने पर असंगत रहा है"  रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण की हानि और प्रदूषण की वजह से महत्वपूर्ण सामाजिक और दीर्घकालिक आर्थिक लाभ गायब हैं.

हरित पर्यावरण की रिकवरी पर खर्च के संदर्भ में विश्लेषण के मुख्य निष्कर्ष कुछ इस प्रकार हैं:

• $ 341 बिलियन डॉलर या 18.0% ही 'हरियाली' के लिए खर्च हुआ है, इसमें ज्यादातर उच्च आय वाले देशों के एक छोटे समूह का योगदान रहा है . वैश्विक रिकवरी खर्च अब तक हरित पर्यावरण निवेश का अवसर चूक रहा है.

• $ 66.1 बिलियन डॉलर को कम कार्बन ऊर्जा में निवेश किया गया था, मोटे तौर पर अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं और हाइड्रोजन और बुनियादी ढांचे के निवेश के लिए स्पेनिश और जर्मन ही सब्सिडी के लिए जिम्मेदार रहे .

• इलेक्ट्रिक वाहन की ओर स्थानान्तरण और सब्सिडी, सार्वजनिक परिवहन में निवेश, साइकिल चलाना और बुनियादी ढाँचा हेतु ग्रीन ट्रांसपोर्ट के लिए $ 86.1 बिलियन डॉलर की घोषणा की गई.

• ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए ग्रीन बिल्डिंग अपग्रेड के लिए $ 35.2 बिलियन डॉलर की घोषणा की गई, विशेष रूप से रेट्रोफिट्स के माध्यम से और ये ज्यादातर फ्रांस और यूके में हुआ.

प्राकृतिक पूंजी या प्रकृति आधारित समाधान (NbS) के लिए 56.3 बिलियन डॉलर की घोषणा की गई  - पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्जनन की पहल और जंगलों को फिर से बढ़ाना . 2 /5 हिस्से को सार्वजनिक पार्कों और प्रदूषण रोकने और कम करने के उपायों की ओर निर्देशित किया गया विशेष रूप से अमेरिका और चीन में, जीवन की गुणवत्ता में सुधार और पर्यावरण संबंधी सुधार करने के लिए.

हरित पर्यावरण पर आरएंडडी के लिए $28.9 बिलियन डॉलर की घोषणा की गई. हरित पर्यावरण पर आरएंडडी में नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी, कृषि, विमानन क्षेत्र और प्लास्टिक जैसे क्षेत्रों के लिए डीकोर्बाइजिंग प्रौद्योगिकियां शामिल हैं इसमें कार्बन को अलग करके उसका इस्तेमाल करने की गतिविधि भी शामिल है . हरित पर्यावरण पर आरएंडडी में प्रगति के बिना पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बहुत अधिक धन और जीवन शैली में आधारभूत बदलाव की आवश्यकता होगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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