नेहरू की नकल करके कोई जवाहरलाल नहीं हो जाता!

नेहरू की नकल करके कोई जवाहरलाल नहीं हो जाता!

प्रेषित समय :07:32:36 AM / Sat, Apr 24th, 2021

प्रदीप द्विवेदी. किसी भी व्यक्ति को उस व्यक्ति पर सबसे ज्यादा गुस्सा आता है, जो लाइन में उसके आगे खड़ा हो!

विश्व में महात्मा गांधी का सबसे ज्यादा सम्मान है, लेकिन बतौर राजनेता नहीं, बल्कि महान विश्वनेता के रूप में वे सदैव स्मरणीय रहेंगे.

परन्तु, बतौर राजनेता तो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ही सबसे आगे हैं और आगे ही रहेंगे. यही वजह भी है कि पीएम मोदी के लिए पं. नेहरू परेशानी का सबब रहे हैं.

नेहरू, नेहरू थे, कोई मुखौटा नहीं था. वे सहज ही बच्चों के लिए चाचा नेहरू थे. इसके लिए उन्हें न तो परीक्षा पे चर्चा करनी पड़ती थी और न ही बाल मित्रों को संबोधित करने की जरूरत थी.

नेहरू को गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने जो प्रतिष्ठा दी, वह हासिल करना आसान नहीं है. यह सोशल मीडिया पर हंगामे से या न्यूज चैनल के सर्वे से प्राप्त नहीं की जा सकती है और न ही बगैर कोई महान कार्य किए यह विश्व के इतिहास में दर्ज करवाई जा सकती है.

उल्लेखनीय है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन राष्ट्रों की एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है. यह आंदोलन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासर और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रॉज टीटो ने शुरू किया था, जिसकी स्थापना अप्रैल 1961 में हुई थी. हालांकि, इसे बनाने का विचार 1950 में आया था. संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद देश की सदस्यता के मामले में गुटनिरपेक्ष आंदोलन विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है.

पीएम मोदी ने विश्व में अपनी इमेज बनाने के लिए कई प्रयास किए हैं, अच्छी बात है, लेकिन देश की जरूरत को नजरअंदाज करके विदेशों को वैक्सीन देने, ऑक्सीजन देने, दवाइयां देने से अस्थाई प्रशंसा तो हासिल हो सकती है, स्थाई उपलब्धि नहीं मिल सकती है.

भारत में कोरोना के खिलाफ जंग में हमने भले ही अपने आप को विजेता घोषित कर दिया हो लेकिन, विदेशी अखबारों ने किस नजरिए से देखा है, यह देखेंगे तब समझ में आएगा.

खबरों की माने तो द गार्डियन का मानना है कि- वायरस हो गया है गायब समझ कर जल्दी दे दी गई ढील. इस ब्रिटिश अखबार का कहना है कि भारत में अस्पताल में व्यवस्था चरमराने की कगार पर हैं. सोशल मीडिया पर मदद मांग रहे लोगों की बाढ़ आयी हुई है, कोई अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर ढूंढ रहा है, तो कोई अस्पताल के बेड का बंदोबस्त कर रहा है. यही नहीं, विशेषज्ञों के हवाले से गार्जियन का कहना है कि- वायरस गायब हो गया है, ऐसा मानते हुए सुरक्षा उपायों में बहुत जल्दी ढील दे दी गयी. विवाह, बड़े त्योहारों आदि आयोजित करने की स्वीकृति तो थी ही, नेता भी स्थानीय चुनावों में भीड़ भरी चुनावी रैलियां कर रहे थे.

अल जजीरा का कहना है कि ‘सुपर-स्प्रेडर’ भीड़ बनी जिम्मेदार, त्योहारों ने बढ़ाया संक्रमण. अल जजीरा ने भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के हवाले से कहा है कि सर्दियों के दौरान जब वायरस नियंत्रित दिख रहा था, तब भारत निश्चिंत हो गया था और शादियों, त्योहारों जैसे बड़े कार्यक्रमों की स्वीकृति दे दी गयी थी. इसके अलावा स्थानीय चुनावों में भीड़ भरी रैलियों को संबोधित करने के कारण हालात अनियंत्रित हुए.

समाचार एजेंसी एपी ने अपनी रिपोर्ट- बेड, ऑक्सीजन की कमी, भारत में 3.14 लाख वायरस के मामले में, रिकॉर्ड प्रतिदिन के मामलों, ऑक्सीजन और बेड की कमी, नासिक में बीस से ज्यादा लोगों की मौत, दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश आदि को जगह दी. इतना ही नहीं, यह भी बताया कि लॉकडाउन, कड़े प्रतिबंधों के कारण दिल्ली और दूसरे शहरों में कई लोगों को डर, दुख और यातना का सामना करना पड़ रहा है.

कुछ समय पहले तक कहां तो कोरोना के खिलाफ जंग में भारत के नेतृत्व की चर्चा थी और कहां अब भारत की सहायता के लिए कई देशों ने की पेशकश की है.

खबरें हैं कि रूस ने भारत को रेमडेसिवीर और ऑक्सीजन की सप्लाई का ऑफर दिया है, तो चीन ने भी भारत को कोरोना से निपटने में सहायता की पेशकश की है. उधर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कोरोना से जूझ रहे भारतीयों के प्रति एकजुटता का संदेश दिया है और मदद की पेशकश की है, तो कई अमेरिकी सांसदों ने भी भारत को लेकर संवेदना जताई है.

बहरहाल, विश्व के इतिहास में अपनी स्थाई प्रतिष्ठित जगह प्राप्त करना किसी राज्य के चुनाव जीतने जैसा आसान नहीं है, अच्छा होगा यदि पीएम मोदी इस ओर गंभीरता से ध्यान दें, क्योंकि नेहरू की नकल करके, उनके जैसे कपड़े पहनने, विश्वनेताओं से मिलने, उनकी जैसी लाइफ स्टाइल अपनाने से कोई जवाहरलाल नहीं हो जाता.

सियासी सयानों का मानना है कि पं. नेहरू की सबसे बड़ी कमी थी- गुजरात में पैदा नहीं होना. यदि वे गुजरात में जन्म लेते तो इतना विरोध नहीं होता!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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