नरेंद्र देवांगन. पहाड़ी और ढलानदार इलाकों में खेती के लिए ढालू कृषि भूमि प्रौद्योगिकी, जिसे अंग्रेजी में स्लोपिंग एग्रीकल्चरल लैंड टेक्नोलॉजी यानी साल्ट के नाम से जाना जाता है, कारगर साबित हो सकती है। यह तकनीक एक ओर जहां छोटे किसानों को आजीविका से जोड़े रखती है, वहीं दूसरी ओर कुदरती संसाधनों का बचाव करती है।
केंद्रीय मृदा एवं जल संरक्षण अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के चंडीगढ़ केंद्र के वैज्ञानिक इस तकनीक पर काम कर रहे हैं। इनका मानना है कि कम व ज्यादा ढलान वाली जमीन, अनियमित और ज्यादा बरसात व कम बरसात वाले इलाकों में यह विधि छोटे किसानों के लिए लाभदायक है।
वैज्ञानिकों ने हिमालय के शिवालिक इलाके में अपने केंद्र पर एक हेक्टेयर जमीन को 3 हिस्सों में बांट कर सबसे ऊपर वानिकी बागवानी, बीच में सीढ़ीदार खेत और निचले व अंतिम हिस्से की सपाट जगह पर अन्य फसलों को लिया और पाया कि इस विधि को अपना कर किसान अपने खेत में एक साथ कई तरह की पैदावार हासिल कर सकते
हैं।
ऊपरी हिस्से में चारा, ईंधन, फल, लकड़ी मिल जाती है जबकि बाकी भाग में फसल ले सकते हैं। साथ ही मिट्टी और पानी का बचाव भी किया जा सकता है। बचे पानी मे मछली पालन कर अलग से आमदनी की जा सकती है। खेत की मेंड़ पर बबूल पहरेदार का काम करते हैं।
प्रयोग के तौर पर देखा गया कि साल्ट प्रणाली मिट्टी के कटाव को रोकने में बहुत कामयाब रही है। साल्ट तकनीक वाले हिस्से में मिट्टी का कटाव 3.4 टन प्रति हेक्टेयर देखा गया जबकि गैर साल्ट तकनीक पर मिट्टी का कटाव 193.4 टन प्रति हेक्टेयर पाया गया। साल के दौरान ज्यादा मिट्टी के बह जाने से पैदावार कम होने से एक ओर जहां किसान को नुकसान उठाना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर ऊपरी मिट्टी का नुकसान होता है।
साल्ट तकनीक में एक किसान अपने खेत को 3 भागों में बांट कर उसे सीढ़ीनुमा तैयार करता है। पहले भाग पर पेड़ और उद्यानिकी फसल, दूसरे हिस्से में जरूरी फासले और अंतिम भाग में अन्य फसलों के अलावा पानी रोक कर सिंचाई के साथ मछली का पालन कर सकता है। ऊपरी भाग में और खेत की मेंड़ पर बबूल के पेड़ लगा कर इसकी छोटी बारीक पत्तियों को चारे के काम में ले सकते हैं।
ये पत्तियां मिट्टी में मिल कर उसका कटाव रोकने के साथ जमीन की उर्वरा ताकत को बनाए रखने में काम आती हैं। यहां मिट्टी का कटाव एक बड़ी समस्या है। बबूल ज्यादा व कम बरसात वाले इलाकों दोनों के लिए अच्छे हैं। भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में पानी का भारी बहाव मिट्टी के कटाव का प्रमुख कारण है। बारहमासी वनस्पति पानी के बहाव को कम कर देती है।
इससे मिट्टी का बहाव घट जाता है जबकि मध्यम बरसात वाले इलाकों में जहां सालाना बरसात 1100 मिलीमीटर या इससे कम होती है, वहां यह तकनीक पानी को ज्यादा समय तक रोकती है। इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है जो सर्दियों में बोई जाने वाली फसलों के लिए फायदेमंद रहती है।
दरअसल, इस तकनीक की शुरुआत फिलीपींस में तब की गई थी, जब वहां के किसानों की पैदावार व कृषि आय में जबरदस्त गिरावट आई थी। इसकी मुख्य वजह मिट्टी और पोषक तत्वों का कटाव था। इस चुनौती का सामना करते हुए वहां के रे हेरोल्ड वाटसन और उनके साथियों ने साल्ट विधि को अपनाया और इसमें उन्हें सफलता मिली। ऐसी ही सफलता यहां के किसान जो पहाड़ी व ढलानदार क्षेत्र में रहते हैं, ले सकते हैं।
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