प्रदीप द्विवेदी. दिल्ली देश की राजधानी है, यहां सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट से जुड़े जज, वकीलों सहित देश के प्रमुख राजनेता और उनके परिवार रहते हैं, बावजूद इसके, मोदी सरकार की लापरवाही के चलते कोरोना का भयानक रूप दिल्ली में नजर आ रहा है.
ऑक्सीजन की कमी और कोरोना संक्रमण के चलते लंबे समय से दिल्ली में आमजन ही नहीं, पत्रकारों की मौत के बाद भी मीडिया, सिस्टम पर प्रश्नचिन्ह लगाता रहा है, तो अदालतें सरकारों से सवाल पूछती रहीं हैं, परन्तु इसका कोई फायदा नहीं है, क्योंकि जब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिम्मेदारी तय नहीं होगी, सीधा उनसे जवाब नहीं मांगा जाएगा, उनका नाम नहीं लिया जाएगा, तब तक सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा.
कोरोना लापरवाही के मुद्दे पर हस्तक्षेप करने के मामले में अदालतों ने पहले ही बहुत देर कर दी है और अब भी यदि कोर्ट सीधी जिम्मेदारी तय नहीं करेगा, तो दिल्लीवासियों सहित देशवासियों को भी इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी, क्योंकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन राजनेताओं में से नहीं हैं, जो नैतिकता के आधार पर जिम्मेदारी ले कर इस्तीफा दे दें, इसलिए सांकेतिक भाषा उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखती है. पूछते रहिए, केंद्र सरकार से सवाल, कुछ नहीं होना है.
खबर है कि ऑक्सीजन संकट के मुद्दे पर केंद्र की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार सुनवाई हुई, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश का पालन करना केंद्र की जिम्मेदारी है.
यह सुझाव भी दिया गया कि वैज्ञानिक तरीके से इसके वितरण की व्यवस्था की जाए. दिल्ली में कोविड वैश्विक महामारी बहुत गंभीर चरण में है इसलिए केंद्र से पिछले तीन दिन में की गई ऑक्सीजन सप्लाई के बारे में भी पूछा गया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने बफर स्टॉक बनाने का संकेत दिया था. अधिक जनसंख्या वाले शहर मुंबई में किया जा सकता है, तो निश्चित रूप से यह दिल्ली में भी किया जा सकता है. हमें सोमवार तक बताइए कि दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन कब और कैसे मिलेगा?
देखना होगा कि अब दिल्ली को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है या कोई नया जवाब मिलता है!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-इसका मतलब तो.... नरेंद्र मोदी कोरोना अपराधी हैं?
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