इंदौर. सत्र न्यायालय ने एक व्यक्ति को 2008 में ही हत्यारा मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी. 13 साल 9 महीने से वह जेल में बंद है. कई बार जमानत के लिए हाई कोर्ट में गुहार भी लगाई लेकिन राहत नहीं मिली. जेल की सलाखों के पीछे न्याय के लिए वह छटपटाता रहा. आखिर अब हाई कोर्ट ने माना कि उसका हत्या से कोई लेना देना नहीं था. 13 साल पुराने सत्र न्यायालय के फैसले को पलटते हुए कोर्ट ने उसे बरी करने के आदेश दे दिए.
मामला उज्जैन निवासी संजय मेहर का है. 12 सितंबर 2008 को उज्जैन जिला एवं सत्र न्यायालय ने उसे दो अन्य लोगों के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. आरोप था कि संजय ने आपसी विवाद में राम उर्फ नीरज नामक व्यक्ति की हत्या की थी. घटना 17 दिसंबर 2006 की थी. पुलिस के मुताबिक संजय मेहर और दो अन्य लोगों का राहुल नामक व्यक्ति से विवाद चल रहा था. आरोपितों ने राहुल पर चाकू से हमला कर उसे घायल कर दिया. बीचबचाव करने आए राम उर्फ नीरज पर भी आरोपितों ने हमला किया. घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया जहां राम की मौत हो गई.
पुलिस ने संजय मेहर और दो अन्य के खिलाफ धारा 302-34 के तहत प्रकरण दर्ज कर आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने बाद में इस मामले में सात और लोगों को आरोपित बना दिया. 2008 में सत्र न्यायालय ने सात आरोपितों को बरी करते हुए संजय मेहर सहित तीन आरोपितों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी. संजय ने एडवोकेट धर्मेंद्र चेलावत के माध्यम से सत्र न्यायालय के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी. एडवोकेट चेलावत ने बताया कि हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय के फैसले को निरस्त करते हुए संजय को बरी कर दिया.
इन बिंदुओं पर पलटा फैसला
- एडवोकेट चेलावत ने हाई कोर्ट में तर्क रखा कि प्रकरण का मुख्य गवाह राहुल (जो वारदात में घायल हुआ था) खुद विचारण न्यायालय में बयान दे चुका है कि उसे नहीं पता कि उस दिन क्या हुआ था. उसे पक्षद्रोही घोषित किया गया था.
- पुलिस ने मानेंद्र की शिकायत पर संजय के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी लेकिन मानेंद्र खुद कोर्ट में अपने बयान से पलट गया.
- हाई कोर्ट ने यह भी माना कि एफआइआर विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि पहले तीन लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई, बाद में सात और लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली गई.
- पुलिस ने प्रकरण में गवाहों के बयान घटना के तीन महीने बाद दर्ज किए थे
- कोर्ट ने माना कि गवाहों के बयान विरोधाभासी हैं.
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