नजरिया. सियासत में समय देखकर खामोश रहना और सही समय पर सियासी हमला करना यदि नहीं आता है, तो किसी को राजनीतिक हीरो से जीरो बनने में वक्त नहीं लगता है?
अव्वल तो मुकेश सहनी ने असमय मोदी टीम से सियासी पंगा ले लिया और फिर तसल्ली से बयान देते रहे, नतीजा? बीजेपी ने न केवल उनके तीन विधायक ले लिए, बल्कि उन्हें भी अकेला कर दिया!
यदि, मुकेश सहनी बगावत कर रहे थे, तो उन्हें जल्दी-से-जल्दी आरजेडी का हाथ थाम लेना था, अब जबकि उनकी सियासी मुट्ठी खुल चुकी है, तो पक्ष या विपक्ष, किसी को भी उनकी खास जरूरत नहीं है?
जाहिर है, उनका सियासी समीकरण बिखर चुका है और अब उन्हें नए सिरे से इसे संवारने की जरूरत है!
खबर है कि जैसी कि राजनीतिक आशंका थी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार शाम वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष और पशुपालन मंत्री मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया.
मजेदार बात यह है कि इस सम्बंध में नीतीश कुमार टीम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मुकेश सहनी की बर्खास्तगी का फैसला उनका नहीं, बल्कि बीजेपी के कहने और उनके लिखित अनुशंसा पर लिया है.
हालांकि, खबरों की मानें तो जैसे ही मुकेश सहनी की बर्खास्तगी की खबर आई, आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने सियासी निशाना साधते हुए कहा कि- बीजेपी के इशारे पर नीतीश कुमार ने मुकेश सहनी की राजनीतिक हत्या की है?
सबसे मजेदार बात बीजेपी के बड़े नेता और बिहार सरकार के मंत्री शाहनवाज हुसैन ने कही, एनबीटी के नेशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने बातचीत में जब उनसे पूछा कि- आप लोगों पर इल्जाम है कि आपने अपने एक सहयोगी की पार्टी तोड़ दी, उनके सारे विधायकों को अपने पाले में कर लिया, ऐसा करना क्यों जरूरी हुआ?
तो.... शाहनवाज हुसैन बोले- तोड़ना शब्द का इस्तेमाल गलत है, हमने मुकेश सहनी की पार्टी को तोड़ा नहीं है, उनके विधायकों ने घर वापसी की है, यह जो तीन विधायक विकासशील इंसान पार्टी को छोड़कर बीजेपी में आए हैं, वे मूल रूप से बीजेपी के ही हैं, विधानसभा चुनाव के समय जब सीटों का बंटवारा हुआ तो मुकेश सहनी के पास चुनाव जीतने वाले लोग ही नहीं थे, तो कुछ सीटों पर हमने उन्हें अपने आदमी दिए थे, हमारे ही आदमी चुनाव जीते, उनके तो सब हार गए थे!
बहरहाल, लोकसभा और विधानसभा, दोनों चुनावों में अभी बहुत वक्त है, लिहाजा मुकेश सहनी के लिए सत्ता की कोई उम्मीद तो बची नहीं है, इसलिए लंबा सियासी संघर्ष करते रहना होगा, क्योंकि अब बहुमत का पूरा हिसाब बीजेपी और जेडीयू के नियंत्रण में आ गया है?
दलबदल को लेकर प्रमुख कार्टूनिस्ट राजेंद्र का धारदार कार्टून....
— Rajendra dhodapkar (@Rajendradhodap2) March 23, 2022
नीतीश कुमार को पांच साल, लेकिन उद्धव ठाकरे को ढाई साल भी नहीं, काहे?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अभिमनोजः सत्ता का समीकरण! मूल भाजपाई मुक्त हो रही है भाजपा?
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