नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं को कौन नियंत्रित करे और इस मुद्दे को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं इसको लेकर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है. सिविल सर्विसेज पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार ने केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि वह मामले को 5 जजों के संविधानिक पीठ के पास भेज सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मामला संविधान पीठ के पास जाता है तो कोशिश करेंगे कि 15 मई तक सुनवाई पूरी हो जाए.
दिल्ली सरकार की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंधवी ने कहा, इस मामले में संविधान पीठ का फैसला पहले से ही है. केंद्र सरकार 6 बार केस की सुनवाई टालने का आग्रह कर चुकी है. अब केस को बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग कर रही है. संविधानिक पीठ के फैसले में गलती निकली जा सकती है, इसका मतलब यह नहीं है कि मामले को फिर बड़ी बेंच के पास भेजा जाए. यह एक दुर्लभ मामला होगा. इससे पहले दिल्ली सरकार बनाम सेंट्रल गवर्नमेंट की लड़ाई पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग पर उसका नियंत्रण होना चाहिए, क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है और पूरी दुनिया भारत को दिल्ली की नजर से ही देखती है. वहीं, दिल्ली सरकार ने केंद्र के रुख पर आपत्ति जताई.
सॉलिसिटर जनरल ने की 239एए की व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 239एए की व्याख्या करते हुए बालकृष्णन समिति की रिपोर्ट का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, चूंकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है, इसलिए यह आवश्यक है कि केंद्र के पास लोक सेवकों की नियुक्तियों और तबादलों का अधिकार हो. दिल्ली, भारत का चेहरा है.दिल्ली के कानूनों के बारे में आवश्यक विशेषता इस बात से निर्देशित है कि इस देश की महान राजधानी को कैसे प्रशासित किया जाएगा. यह किसी विशेष राजनीतिक दल के बारे में नहीं है.
अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में रखा दिल्ली सरकार का पक्ष
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने तर्क दिया, केंद्र के सुझाव के मुताबिक मामले को बड़ी पीठ को भेजने की जरूरत नहीं है. पिछली दो-तीन सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार इस मामले को संविधान पीठ को भेजने के लिए बहस कर रही है. बालकृष्णन समिति की रिपोर्ट पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे खारिज कर दिया गया था. गौरतलब है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार केंद्र पर राजधानी के प्रशासन को नियंत्रित करने और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के फैसलों में उपराज्यपाल के जरिए व्यवधान उत्पन्न करने का आरोप लगाती रही है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली में भरभरा कर गिरी 3 मंजिला इमारत, मलबे में दबने से एक मजदूर की मौत
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