बाल श्रम राष्ट्रीय व सामाजिक कलंक, बढ़ती संख्या चिंता का विषय: मुकेश गालव

बाल श्रम राष्ट्रीय व सामाजिक कलंक, बढ़ती संख्या चिंता का विषय: मुकेश गालव

प्रेषित समय :18:38:36 PM / Wed, Aug 3rd, 2022

नई दिल्ली. हिन्द मजदूर सभा (एचएमएस) के राष्ट्रीय सचिव कामरेड मुकेश गालव ने देश में लगातार बढ़ रही बाल श्रमिकों की संख्या पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय व सामाजिक कलंक है. इसे दूर करने के लिए सभी को मिलजुलकर गंभीर प्रयास करना वक्त की जरूरत है. श्री गालव नई दिल्ली में बुधवार 03 अगस्त 2022 को आयोजित इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) की परामर्श बैठक में बालश्रम नीति के वैश्विक परिपेक्ष्य, भारत में उन्मूलन, बाल श्रम कानून, बालश्रम पर बचाव और पुनर्वास और हितधारकों की भूमिका, बाल श्रम के उन्मूलन के लिये नीति पर समर्थन और संचार रणनीति पर अपने सारर्भित उद्बोधन व्यक्त कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि आर्थिक असुरक्षा के कारण गरीब परिवारों के बच्चों को मजबूरी में बाल श्रम करना पड़ रहा है. लगातार बढ़ती बाल श्रमिकों की संख्या वैसे ही चिंता का विषय बनी हुई थी. कोरोना संकट ने इसे और भयावह बना दिया है. बाल श्रम बालकों को उन मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित करता है जिस पर उनका नैसर्गिक अधिकार होता है. यह भौतिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास को भी बाधित करता है.

बाल श्रम उन्मूलन किये बेहतर भविष्य की कल्पना बेमानी

बाल श्रम विश्व में एक ऐसी समस्या है जिसके निदान के बगैर बेहतर भविष्य की कल्पना संभव नहीं है. यह स्वयं में एक राष्ट्रीय और सामाजिक कलंक तो है ही, अन्य समस्याओं की जननी भी है. देखा जाए तो यह नौनिहालों के साथ जबरन होने वाला ऐसा व्यवहार है जिससे राष्ट्र या समाज का भविष्य खतरे में पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर वर्ष 1924 में पहल तब हुई, जब जिनेवा घोषणापत्र में बच्चों के अधिकारों को मान्यता देते हुए पांच सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की गई. इसके चलते बाल श्रम को प्रतिबंधित किया गया. साथ ही बच्चों के लिए कुछ विशिष्ट अधिकारों को स्वीकृति दी गई. बाल मजदूरी और शोषण के अनेक कारण हैं जिनमें गरीबी, वयस्कों तथा किशोरों के लिए अच्छे कार्य करने के अवसरों की कमी, प्रवास आदि शामिल हैं. ये सब सिर्फ कारण नहीं, बल्कि भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम भी हैं. बच्चों का काम स्कूल जाना है, न कि मजदूरी करना. बाल मजदूरी बच्चों से स्कूल जाने का अधिकार छीन लेती है. और वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते हैं.

बच्चों को स्कूल भेजने प्रेरित करें, बेहतर वातावरण, सुविधाएं उपलब्ध कराएं

भारत में बाल श्रम निषेध के लिए 1948 के कारखाना अधिनियम से लेकर कई कानून बनाए गए हैं. बावजूद इसके बाल श्रमिकों की संख्या में निरंतर वृद्धि दर्ज की गई है. इसको रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है. माता-पिता को प्रोत्साहित करना होगा कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें. ऐसा माहौल भी तैयार करना होगा, जहां बच्चों को काम न करना पड़े. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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