पलपल संवाददाता, जबलपुर. एमपी हाईकोर्ट ने जबलपुर में नगर निगम कर्मचारी की पदोन्नति के मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हाईकोर्ट धृतराष्ट्र नहीं हो सकता है और नगर निगम के अधिकारियों व उसके अधिवक्ता को संजय नहीं बनने दिया जा सकता है. इस मत के साथ हाईकोर्ट ने नगर निगम कर्मचारी की याचिका को स्वीकार करते हुए वर्ष 2003 से तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति करते हुए सारे लाभ देने के लिए निर्देश दिए है.
जबलपुर में नगर निगम के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी लक्षण बरौआ की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने हाईकोर्ट में अपने तर्क प्रस्तुत करते हुए बताया कि याचिकाकर्ता को वर्ष 2003 में चतुर्थ श्रेणी के पद से चतुर्थ श्रेणी के पद पर ही पदोन्नत कर दिया गया, जो नियमानुसार नहीं है. जबकि चतुर्थ श्रेणी से तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति दी जाती है. वहीं याचिकाकर्ता लक्षमण के साथ काम करने वाले अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति दी गई. ऐसे में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि नगर निगम ने उसके साथ भेदभाव किया है.
याचिका की सुनवाई के दौरान नगर निगम की ओर से हाईकोर्ट को संतोषप्रद जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया. कोर्ट के आदेश के बाद भी मूल अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गए. यहां तक कि निगमायुक्त, स्थापना अधिकारी व अधिवक्ता के कथनों में विरोधाभास रहा. जिसपर कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी करते हुए मैं अपने आप को धृतराष्ट्र नहीं मान सकता व नगर निगम के अधिकारी एवं उनके अधिवक्ता को संजय की तरह कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के साथ ना केवल भेदभाव किया गया है बल्कि नगर निगम के अधिकारियों ने उसको तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति ना देकर नियमों का उल्लंघन किया है. प्रकरण में हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता को तृतीय श्रेणी के पद पर 15 दिन के अंदर पदोन्नति सहित सभी लाभ दिए जाए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी हाईकोर्ट ने सहारा प्रमुख सुब्रत राय को तलब किया, 5 लाख रुपए का जमानती वारंट भी जारी किया
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