ज्योतिषशास्त्र में कुछ ऐसे योगों का जिक्र किया गया है जो कुंडली में मौजूद होने पर व्यक्ति काम वासना, धन-दौलत और सुख सुविधाओं की चाहत से दूर रहता है. ऐसे व्यक्ति को संसारिकता की बजाय संन्यास पसंद होता है.
मानव जीवन को शास्त्रों में चार भागों में बांटा है. मानव जीवन की यात्रा ब्रह्मचर्य से शुरू होकर संन्यास पर खत्म होती है.
इस बीच इंसानी जिंदगी की इस यात्रा में कई अहम पड़ाव भी आते हैं, जिनका निर्वाह इंसान को करना पड़ता है.
मानव के जन्म के साथ ही उसका भाग्य तय हो जाता है और उसकी जिंदगी में वह किस राह पर जाएगा यह भी निर्धारित हो जाता है.
ज्योतिष में कई ऐसे योग होते हैं जो इंसान को महापुरुष, दिव्य पुरुष से लेकर योगी और संन्यासी बनाते हैं.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चार या उससे ज्यादा ग्रह एक साथ बैठे हों तो व्यक्ति के संन्यासी बनने के योग प्रबल होते हैं, लेकिन संन्यासी बनने के लिए इनमें से एक ग्रह का बली होना जरूरी है.
साथ ही बली ग्रह के अस्त होने से भी जातक संन्यास की राह पर अग्रसर नहीं हो पाता है बल्कि किसी विख्यात संन्यासी का अनुयायी बन कर रह जाता है.
अशुभ ग्रहों की दृष्टि होने पर भी संन्यासी बनने की ख्वाहिश तो होती है, लेकिन वह कभी पूरी नहीं हो पाती है.
जन्मपत्री में शनि से तीसरे, सातवें या दसवें स्थान पर कुण्डली पहले घर में स्थित राशि का स्वामी यानी लग्नेश मौजूद हो तो व्यक्ति में संन्यास की भावना आती है.
इसके साथ चन्द्रमा बलवान नहीं हो तो व्यक्ति दुनियादारी से विमुख रहने वाला होता है.
चन्द्रमा के बलवान होने पर व्यक्ति कपाली होता है. सूर्य बलवान होने पर व्यक्ति कंद, मूल और फलों का सेवन करने वाला तपस्वी बन जाता है
इसके साथ ही कुछ योग इतने प्रबल होते हैं कि दुनिया की सारी खुशियां और धन-दौलत होते हुए भी आदमी विरक्त होकर संन्यास की राह पकड़ लेता है.
शनि यदि नवम भाव में हो और उसके ऊपर किसी ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति चक्रवती सम्राट हो तो भी संन्यासी बन जाता है.
यदि चंद्रमा नवम भाव में हो और उसके ऊपर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति की कुंडली में राजयोग होते हुए भी वह संन्यासी बन जाता है और संन्यासियों में भी परम पद की प्राप्ति करता है.
यदि कुंडली में नवमेश बली होकर नौवें या पांचवें स्थान पर हो और उस पर वृहस्पति और शुक्र की दृष्टि हो या वह वृहस्पति और शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति अव्वल दर्जे का संन्यासी बनता है.
दशम स्थान पर तीन ग्रह बली हों और दशमेश भी बली हों तो सर्वश्रेष्ठ संन्यासी होता है.
यदि लग्नेश वृहस्पति , मंगल या शुक्र में से कोई एक हो और लग्नेश पर शनि की दृष्टि हो और वृहस्पति नवम भाव में बैठा हो तो व्यक्ति तीर्थनाम का संन्यासी होता है .
इसके साथ ज्योतिष के कुछ योग ऐसे भी होते हैं जब व्यक्ति संन्यासी होते हुए भी छल,कपट में लिप्त होता है या सब कुछ छोड़ने् के बाद भी विरक्त जीवन में दुर्भाग्य को भोगता है.
कुंडली में संन्यास योग के ग्रहों का साथ सूर्य,शनि और मंगल दे रहे हो तो व्यक्ति दुनिया की जिम्मेदारी और जवाबदारियों से घबराकर वैराग्य अपना लेता है.
कुंडली विशेषज्ञ एवं ज्योतिष आचार्य : शिवम भारद्वाज
Acharya Shivam Bharadwaj
जन्म कुंडली के बिना नंदी नाड़ी ज्योतिष से जानिए सटीक भविष्य
कुंडली के ये 6 खतरनाक दोष, जो हर समय परेशानिया देते हैं!
जन्म कुंडली में सिर्फ विंशोत्तरी दशा ही महत्वपूर्ण क्यों?
धन योग: कुंडली में मौजूद यह योग बना सकता है आपको रंक से राजा!
Leave a Reply