दो कविताएं: मां क्यों तूने मुझे रोका? / ज़ुल्म का शिकार क्यों हैं लड़कियां?

दो कविताएं: मां क्यों तूने मुझे रोका? / ज़ुल्म का शिकार क्यों हैं लड़कियां?

प्रेषित समय :19:48:29 PM / Mon, Oct 2nd, 2023
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मां क्यों तूने मुझे रोका?

वर्षा आर्या
उम्र - 13 वर्ष
कपकोट, उत्तराखंड

मां क्यों तूने मेरी उड़ान को
घर की चारदीवारी में कैद करके रखा?
क्यों तूने शाम चार बजे के बाद
घर से बाहर जाने से रोका?
क्यों तूने सपनों को पंख लगाने से रोका?
इन हैवानों के डर से मेरी इच्छा को तोड़ा?
एक बार मुझे भी कदम तो उठाने देती,
शैतानों को नारी शक्ति का एहसास कराने देती,
मैं नारी हूँ, शक्ति का स्वरूप हूँ,
जीवनदायिनी हूँ, पुरुषों पर अकेली भारी हूँ,
इनको एक पल में समझाने तो देती..

ज़ुल्म का शिकार क्यों हैं लड़कियां?

सिमरन कुमारी
मुजफ्फरपुर, बिहार

क्यों अपने सपनों को पूरा ना कर पाए लड़कियां?
क्यों मर्यादा की जंजीरों में बांध के रखी जाए लड़कियां?
क्यों अपनी उड़ानों को ना भर पाए लड़कियां?
क्यों घुट-घुट कर घर में रहती है लड़कियां?
क्यों चारदीवारी के भीतर दम तोड़ देती हैं लड़कियां?
क्यों अपनी मर्जी का कुछ ना कर पाए लड़कियां?
क्यों अपने ही घर में डर-डर के जियें लड़कियां?
क्यों घर में भी महफूज नहीं रहती लड़कियां?
क्यों बालपन में ही शादी का बोझ उठाए लड़कियां?
क्यों झूठे रस्मों के नीचे दब के रह जाए लड़कियां?
क्यों बचपन को भूल, चूल्हा चौका संभाले लड़कियां?
क्यों सुकून के दो पल ना बिताएं लड़कियां?
क्यों अपने ही घर में नजरअंदाज होती हैं लड़कियां?
क्यों घर में ही भेदभाव का शिकार होती हैं लड़कियां?
क्यों लड़की होने की कीमत चुकाये लड़कियां?
क्यों आजादी के बाद भी आजाद नहीं हैं लड़कियां?
आखिर वह भी तो इंसान है, जीने का उसे भी अधिकार है,
फिर क्यों गर्भ में ही मार दी जाती हैं लड़कियां?
आखिर क्यों हैं ज़ुल्म का शिकार लड़कियां?

चरखा फीचर

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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